"मातृ दिवस": अवतरणों में अंतर
('मां को खुशिया और सम्मान देने के लिए पूरी जिंदगी भी कम...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
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मां को खुशिया और सम्मान देने के लिए पूरी जिंदगी भी कम होती है। फिर भी विश्व में मां के सम्मान में मदर्स डे अर्थात मातृ दिवस मनाया जाता है। `मदर्स डे' विश्व के अलग - अलग भागों में अलग - अलग तरीकों से मनाया जाता है। परन्तु मार्च माह के दूसरे रविवार को सर्वाधिक महत्व दिया जाता है। हालांकि भारत के कुछ भागों में इसे 19 अगस्त को भी मनाया जाता है, परन्तु अधिक महत्ता अमरीकी आधार पर मनाए जाने वाले `मदर्स डे' की है, अमेरिका में यह दिन इतना महत्वपूर्ण है कि यह एकदम से उत्सव की तरह मनाया जाता है। इसी तरह आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका, ग्रेट ब्रिटेन आदि जगहों पर हर बच्चा मां के प्रति श्रद्धा व सेवा करने में गौरवान्वित होता है। मातृदिवस का इतिहास सदियों पुराना एवं प्राचीन है। यूनान में बंसत ऋतु के आगमन पर रिहा परमेश्वर की मां | मां को खुशिया और सम्मान देने के लिए पूरी जिंदगी भी कम होती है। फिर भी विश्व में मां के सम्मान में मदर्स डे अर्थात मातृ दिवस मनाया जाता है। `मदर्स डे' विश्व के अलग - अलग भागों में अलग - अलग तरीकों से मनाया जाता है। परन्तु मार्च माह के दूसरे रविवार को सर्वाधिक महत्व दिया जाता है। हालांकि भारत के कुछ भागों में इसे 19 अगस्त को भी मनाया जाता है, परन्तु अधिक महत्ता अमरीकी आधार पर मनाए जाने वाले `मदर्स डे' की है, अमेरिका में यह दिन इतना महत्वपूर्ण है कि यह एकदम से उत्सव की तरह मनाया जाता है। इसी तरह आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका, ग्रेट ब्रिटेन आदि जगहों पर हर बच्चा मां के प्रति श्रद्धा व सेवा करने में गौरवान्वित होता है। | ||
==इतिहास== | |||
मातृदिवस का इतिहास सदियों पुराना एवं प्राचीन है। आदि यूनान, जो वर्तमान यूरोपीय सभ्यता का मूल रहा है, में बंसत ऋतु के आगमन पर रिहा परमेश्वर की मां साइपिली के सम्मान में मदर्स डे ( मातृत्व दिवस ) मनाया जाता है। इसी तरह से रोम में वहां की देवी - देवताओं की मां जूनो के सम्मान में 15 से 18 मार्च तक उत्सव मनाया जाता था। इन दिनों सब अपनी माताओं को बढिय़ा से बढिय़ा उपहार देते थे। इसी क्रम में यूरोप में मदरिंग संडे मनाया जाता है, विशेषकर एंग्लेकिन चर्च में तो लैंड के उत्सव का चौथा इतवार मां के सम्मान को ही समर्पित रहता है। तथा 16वीं सदी में इग्लैण्ड का इसाई समुदाय ईशु की मां मदर मेरी को सम्मानित करने के लिए यह त्योहार मनाने लगा। `मदर्स डे' मनाने का मूल कारण समस्त माओं को सम्मान देना और एक शिशु के उत्थान में उसकी महान भूमिका को सलाम करना है। | |||
वर्तमान में नौ मई को मनाए जाने वाले मदर्स डे वास्तव में युद्धों की विभीषिका से जुड़ा है। प्रथम महायुद्ध और उससे पहले फ्रांसीसी क्रुसुइन युद्ध की विभीषिका को देखकर महसूस किया कि दुनिया को ऐसे भीषण समय में सिर्फ कोई बचा सकता है तो मां की ममता। मां की ममता में ही वह शक्ति छिपी है, जो महायुद्धों से दुनिया को बचाकर उसे सुंदरतम बनाएगी। इस भावना के साथ 1907 में फिलाडेल्फिया की सुश्री लुलिया वर्ड ओवे एवं सुश्री एना जार्विन ने अपनी मां अन्ना मारिया रीव्स जारविस के नाम पर अंतरराष्ट्रीय मदर्स डे मनाया। उन्होंने तत्कालीन सरकारी पदाधिकारियों और व्यवसायियों को 100 से भी ज्यादा पत्र लिखकर एक दिन मां के नाम करने का निवेदन किया। 10 मई 1908 को अन्ना की मां की तीसरी पुण्यतिथि पर श्रीमति जारविस की याद में मदर्स डे मनाया गया। 8 मई, 1914 में अन्ना की कठिन मेहनत के बाद तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति वुडरो विल्सन ने मई के दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाने और मां के सम्मान में एक दिन के अवकाश की सार्वजनिक घोषणा की। वे समझ रहे थे कि सम्मान, श्रद्धा के साथ माताओं का सशक्तीकरण होना चाहिए, जिससे मातृत्व शक्ति के प्रभाव से युद्धों की विभीषिका रुके। तब से हर वर्ष मई के दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाया जाता है। | वर्तमान में नौ मई को मनाए जाने वाले मदर्स डे वास्तव में युद्धों की विभीषिका से जुड़ा है। प्रथम महायुद्ध और उससे पहले फ्रांसीसी क्रुसुइन युद्ध की विभीषिका को देखकर महसूस किया कि दुनिया को ऐसे भीषण समय में सिर्फ कोई बचा सकता है तो मां की ममता। मां की ममता में ही वह शक्ति छिपी है, जो महायुद्धों से दुनिया को बचाकर उसे सुंदरतम बनाएगी। इस भावना के साथ 1907 में फिलाडेल्फिया की सुश्री लुलिया वर्ड ओवे एवं सुश्री एना जार्विन ने अपनी मां अन्ना मारिया रीव्स जारविस के नाम पर अंतरराष्ट्रीय मदर्स डे मनाया। उन्होंने तत्कालीन सरकारी पदाधिकारियों और व्यवसायियों को 100 से भी ज्यादा पत्र लिखकर एक दिन मां के नाम करने का निवेदन किया। 10 मई 1908 को अन्ना की मां की तीसरी पुण्यतिथि पर श्रीमति जारविस की याद में मदर्स डे मनाया गया। 8 मई, 1914 में अन्ना की कठिन मेहनत के बाद तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति वुडरो विल्सन ने मई के दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाने और मां के सम्मान में एक दिन के अवकाश की सार्वजनिक घोषणा की। वे समझ रहे थे कि सम्मान, श्रद्धा के साथ माताओं का सशक्तीकरण होना चाहिए, जिससे मातृत्व शक्ति के प्रभाव से युद्धों की विभीषिका रुके। तब से हर वर्ष मई के दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाया जाता है। | ||
एक अलग कहानी के अनुसार अमरीका में एक कवयित्री और लेखिका जूलिया वार्ड होव ने सन् 1870 में 10 मई को माँ के नाम समर्पित करते हुए कई रचनाएँ लिखीं और तभी से दुनियाभर में मातृ दिवस मनाया जाने लगा। तथा धीरे - धीरे मदर्स डे पूरे विश्व में मनाया जाने लगा। | एक अलग कहानी के अनुसार अमरीका में एक कवयित्री और लेखिका जूलिया वार्ड होव ने सन् 1870 में 10 मई को माँ के नाम समर्पित करते हुए कई रचनाएँ लिखीं और तभी से दुनियाभर में मातृ दिवस मनाया जाने लगा। तथा धीरे - धीरे मदर्स डे पूरे विश्व में मनाया जाने लगा। | ||
भारतीय संस्कृति में मातृ शक्ति का प्राचीन काल से ही महत्व रहा है। सालभर में चार नवरात्रा जिसमें क्वार के शारदीया, चैत्र के बासंतिक मे 9 - 9 दिन तक मां के विभिन्न रूपों की आराधना की जाती है। इसके साथ माघ व आषाढ़ में गुप्त नवरात्रि आती है। इसके साथ सालभर में कई अवसर आते हैं, जब हम मां की आराधना करते हैं। | |||
==कुछ बाते माँ से जुङी== | |||
;दुर्गा सप्तशती के देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम् से | |||
पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहव: सन्ति सरला:, | |||
परं तेषां मध्ये विरलतरलोहं तव सुत:। | |||
मदीयोयं त्याग: समुचितमिदं नो तव शिवे, | |||
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति।। | |||
अर्थात् : पृथ्वी पर जितने भी पुत्रों की मां हैं, वह अत्यंत सरल रूप में हैं। कहने का मतलब कि मां एकदम से सहज रूप में होती हैं। वे अपने पुत्रों पर शीघ्रता से प्रसन्न हो जाती हैं। वह अपनी समस्त खुशियां पुत्रों के लिए त्याग देती हैं, क्योंकि पुत्र कुपुत्र हो सकता है, लेकिन माता कुमाता नहीं हो सकती। | |||
;निदा फाजली के दोहे | |||
इक पलड़े में प्यार रख, दूजे में संसार | |||
तोले से ही जानिए, किसमें कितना प्यार | |||
;सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता | |||
'''...बेटा! कहीं चोट तो नहीं लगी''' -- | |||
देश के सुदूर पश्चिम में स्थित अर्बुदांचल की एक जीवंत संस्कृति है, जहां विपुल मात्रा में कथा, बोध कथाएं, कहानियां, गीत, संगीत लोक में प्रचलित है। मां की ममता पर यहां लोक में एक कहानी प्रचलित है, जो अविरल प्रस्तुत किया जाता रहा है। कहते हैं एक बार एक युवक को एक लड़की पर दिल आ गया। प्रेम में वह ऐसा खोया कि वह सबकुछ भुला बैठा। लड़के के शादी का प्रस्ताव रखने पर लड़की ने जवाब दिया कि वह उससे विवाह करने को तैयार तो है, लेकिन वह अपनी सास के रूप में किसी को देखना नहीं चाहती। अत: वह अपनी मां का कत्ल कर उसका कलेजा निकाल लाए, तो वह उससे शादी करेगी। युवक पहले काफी दुविधा में रहा, लेकिन फिर अपनी माशूका के लिए मां का कत्ल कर उसका कलेजा निकाल तेजी से प्रेमिका की ओर बढ़ा। तेजी में जाने की हड़बड़ी में उसे ठोकर लगी और वह गिर पड़ा। इस पर मां का कलेजा गिर पड़ा और कलेजे से आवाज आई, बेटा, कहीं चोट तो नहीं लगी...आ बेटा, पट्टी बांध दूं...। | |||
;मां में छिपी है सृष्टि | |||
मां शब्द में संपूर्ण सृष्टि का बोध होता है। मां के शब्द में वह आत्मीयता एवं मिठास छिपी हुई होती है, जो अन्य किसी शब्दों में नहीं होती। इसका अनुभव भी एक मां ही कर सकती है। मां अपने आप में पूर्ण संस्कारवान, मनुष्यत्व व सरलता के गुणों का सागर है। मां जन्मदाता ही नहीं, बल्कि पालन-पोषण करने वाली भी है। | |||
;मां है ममता का सागर | |||
मां तो ममता की सागर होती है। जब वह बच्चे को जन्म देकर बड़ा करती है तो उसे इस बात की खुशी होती है, उसके लाड़ले पुत्र-पुत्री से अब सुख मिल जाएगा। लेकिन मां की इस ममता को नहीं समझने वाले कुछ बच्चे यह भूल बैठते हैं कि इनके पालन-पोषण के दौरान इस मां ने कितनी कठिनाइयां झेली होगी। | |||
==बदलाव== | |||
;समय के साथ बदल रही भूमिकाएं | |||
समय के साथ माताओं की भूमिका बदल रही है। घर की चौखट से बाहर वे अब पुत्र-पुत्रियों के कॅरियर की भी चिंता कर रही हैं। यही नहीं, अब वे वृद्धावस्था में पुत्रों की दया पर जीने वाली भूमिका में जीने को कतई तैयार नहीं हैं। दैनिक भास्कर ने इस संबंध में शहरी व ग्रामीण क्षेत्र में बातचीत की, तो समय के साथ बदल रही भूमिकाएं स्पष्ट हुईं। | |||
;संतान में अपनी सफलता की खोज | |||
इस समय वैसे तो कई महिलाएं हैं, जो पुरुषों से मुकाबला कर रही हैं। वह न सिर्फ मां की भूमिका निभा रही हैं, बल्कि डॉक्टर, इंजीनियर, प्राध्यापक, सरपंच, प्रधान आदि पदों की शोभा बढ़ा रही हैं। हालांकि इसके बावजूद बड़ी संख्या घरेलू महिलाओं की है। जब इस संबंध में मैट्रिक उत्तीर्ण नीलम से बात की गई, जो अपने दो बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी खुद वहन कर रही हैं, वह कहती हैं कि उनका सपना स्पोट्र्स में कुछ करना था, अब वे अपनी बेटियों को पढ़ाने के साथ खेल, व्यायाम आदि पर भी पूरा ध्यान दे रही हैं। वहीं वह घर में ही खाली समय का सदुपयोग करते हुए इंटर की पढ़ाई कर रही हैं। पहले जहां घर से बाहर होस्टल में लड़कियों के रखने पर लोगों का ऐतराज होता था, वहीं अब शायद ही किसी महिला को इस पर ऐतराज है। चाहे बेटी विदेश जाए या कोई महानगर, अब तो उनकी एक ही इच्छा है कि वह अपने क्षेत्र में कुछ कर गुजरे। हालांकि कुछ ऐसी भी मां हैं, जो एकदम से इसे पसंद नहीं करती। उनके अनुसार यदि कोई निकटतम रिश्तेदार है तो ठीक, नहीं तो अपना शहर ही पढ़ाई के लिए काफी है। | |||
;डूब रही रुढिय़ां, छूट रहा घूंघट | |||
इसी क्रम में महिलाएं अब पहले से अधिक जागरूक भी हो गई हैं। रुढिय़ों के बजाय वे आधुनिकता व तरक्की को ज्यादा तवज्जो दे रही हैं। शहरों में वैसी महिलाओं की संख्या बढ़ रही है जो रुढिय़ों के साथ घूंघट को तिलांजलि दे रही हैं। यही नहीं, पहले की तरह सब कुछ समर्पण कर पति के पदचिह्नों पर चलने की भूमिका की जगह, वह सलाहकार की भूमिका में आ चुकी हैं। एमएससी किए सुनीता कहती हैं कि उसके पति सरकारी संस्थान में कार्यरत हैं, लेकिन गंभीर बातों में उनके विचार को पूरी तवज्जो देते हैं। हालंाकि सिरोही में नाइट शिफ्ट में बेटियों को काम करने देने की इजाजत देने वाली मां का प्रतिशत काफी कम है। अधिकांश इसे हर तरह से असुरक्षित मानती हैं। | |||
;मजबूरियां दूरियां बढऩे की | |||
वर्तमान समय ने चाहे जो उपलब्धियां दी हों, लेकिन एक बड़ा दर्द दिया है परिवार बिखरने का। शायद ही कोई परिवार हो, जिसके सभी सदस्य साथ रहते हों। यहां बचपन बीता कि आदमी दूसरे शहर में रोजी-रोटी, नौकरी की तलाश में चला जाता है। ऐसे में लंबी तनहाई समय का सच बन गया है। वृद्ध माता-पिता बेटे-बेटियों के कॅरियर के लिए इतने कठोर भी नहीं बन सकते कि अपने पास रहने को कहें। अब ऐसे में मजबूरी में फोन आदि पर बात कर संतोष करना पड़ता है। इससे कठिनाइयां भले कम नहीं होतीं, लेकिन मन को संतोष हो जाता है। | |||
22:52, 27 दिसम्बर 2010 का अवतरण
मां को खुशिया और सम्मान देने के लिए पूरी जिंदगी भी कम होती है। फिर भी विश्व में मां के सम्मान में मदर्स डे अर्थात मातृ दिवस मनाया जाता है। `मदर्स डे' विश्व के अलग - अलग भागों में अलग - अलग तरीकों से मनाया जाता है। परन्तु मार्च माह के दूसरे रविवार को सर्वाधिक महत्व दिया जाता है। हालांकि भारत के कुछ भागों में इसे 19 अगस्त को भी मनाया जाता है, परन्तु अधिक महत्ता अमरीकी आधार पर मनाए जाने वाले `मदर्स डे' की है, अमेरिका में यह दिन इतना महत्वपूर्ण है कि यह एकदम से उत्सव की तरह मनाया जाता है। इसी तरह आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका, ग्रेट ब्रिटेन आदि जगहों पर हर बच्चा मां के प्रति श्रद्धा व सेवा करने में गौरवान्वित होता है।
इतिहास
मातृदिवस का इतिहास सदियों पुराना एवं प्राचीन है। आदि यूनान, जो वर्तमान यूरोपीय सभ्यता का मूल रहा है, में बंसत ऋतु के आगमन पर रिहा परमेश्वर की मां साइपिली के सम्मान में मदर्स डे ( मातृत्व दिवस ) मनाया जाता है। इसी तरह से रोम में वहां की देवी - देवताओं की मां जूनो के सम्मान में 15 से 18 मार्च तक उत्सव मनाया जाता था। इन दिनों सब अपनी माताओं को बढिय़ा से बढिय़ा उपहार देते थे। इसी क्रम में यूरोप में मदरिंग संडे मनाया जाता है, विशेषकर एंग्लेकिन चर्च में तो लैंड के उत्सव का चौथा इतवार मां के सम्मान को ही समर्पित रहता है। तथा 16वीं सदी में इग्लैण्ड का इसाई समुदाय ईशु की मां मदर मेरी को सम्मानित करने के लिए यह त्योहार मनाने लगा। `मदर्स डे' मनाने का मूल कारण समस्त माओं को सम्मान देना और एक शिशु के उत्थान में उसकी महान भूमिका को सलाम करना है।
वर्तमान में नौ मई को मनाए जाने वाले मदर्स डे वास्तव में युद्धों की विभीषिका से जुड़ा है। प्रथम महायुद्ध और उससे पहले फ्रांसीसी क्रुसुइन युद्ध की विभीषिका को देखकर महसूस किया कि दुनिया को ऐसे भीषण समय में सिर्फ कोई बचा सकता है तो मां की ममता। मां की ममता में ही वह शक्ति छिपी है, जो महायुद्धों से दुनिया को बचाकर उसे सुंदरतम बनाएगी। इस भावना के साथ 1907 में फिलाडेल्फिया की सुश्री लुलिया वर्ड ओवे एवं सुश्री एना जार्विन ने अपनी मां अन्ना मारिया रीव्स जारविस के नाम पर अंतरराष्ट्रीय मदर्स डे मनाया। उन्होंने तत्कालीन सरकारी पदाधिकारियों और व्यवसायियों को 100 से भी ज्यादा पत्र लिखकर एक दिन मां के नाम करने का निवेदन किया। 10 मई 1908 को अन्ना की मां की तीसरी पुण्यतिथि पर श्रीमति जारविस की याद में मदर्स डे मनाया गया। 8 मई, 1914 में अन्ना की कठिन मेहनत के बाद तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति वुडरो विल्सन ने मई के दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाने और मां के सम्मान में एक दिन के अवकाश की सार्वजनिक घोषणा की। वे समझ रहे थे कि सम्मान, श्रद्धा के साथ माताओं का सशक्तीकरण होना चाहिए, जिससे मातृत्व शक्ति के प्रभाव से युद्धों की विभीषिका रुके। तब से हर वर्ष मई के दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाया जाता है।
एक अलग कहानी के अनुसार अमरीका में एक कवयित्री और लेखिका जूलिया वार्ड होव ने सन् 1870 में 10 मई को माँ के नाम समर्पित करते हुए कई रचनाएँ लिखीं और तभी से दुनियाभर में मातृ दिवस मनाया जाने लगा। तथा धीरे - धीरे मदर्स डे पूरे विश्व में मनाया जाने लगा।
भारतीय संस्कृति में मातृ शक्ति का प्राचीन काल से ही महत्व रहा है। सालभर में चार नवरात्रा जिसमें क्वार के शारदीया, चैत्र के बासंतिक मे 9 - 9 दिन तक मां के विभिन्न रूपों की आराधना की जाती है। इसके साथ माघ व आषाढ़ में गुप्त नवरात्रि आती है। इसके साथ सालभर में कई अवसर आते हैं, जब हम मां की आराधना करते हैं।
कुछ बाते माँ से जुङी
- दुर्गा सप्तशती के देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम् से
पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहव: सन्ति सरला:,
परं तेषां मध्ये विरलतरलोहं तव सुत:।
मदीयोयं त्याग: समुचितमिदं नो तव शिवे,
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति।।
अर्थात् : पृथ्वी पर जितने भी पुत्रों की मां हैं, वह अत्यंत सरल रूप में हैं। कहने का मतलब कि मां एकदम से सहज रूप में होती हैं। वे अपने पुत्रों पर शीघ्रता से प्रसन्न हो जाती हैं। वह अपनी समस्त खुशियां पुत्रों के लिए त्याग देती हैं, क्योंकि पुत्र कुपुत्र हो सकता है, लेकिन माता कुमाता नहीं हो सकती।
- निदा फाजली के दोहे
इक पलड़े में प्यार रख, दूजे में संसार तोले से ही जानिए, किसमें कितना प्यार
- सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता
...बेटा! कहीं चोट तो नहीं लगी --
देश के सुदूर पश्चिम में स्थित अर्बुदांचल की एक जीवंत संस्कृति है, जहां विपुल मात्रा में कथा, बोध कथाएं, कहानियां, गीत, संगीत लोक में प्रचलित है। मां की ममता पर यहां लोक में एक कहानी प्रचलित है, जो अविरल प्रस्तुत किया जाता रहा है। कहते हैं एक बार एक युवक को एक लड़की पर दिल आ गया। प्रेम में वह ऐसा खोया कि वह सबकुछ भुला बैठा। लड़के के शादी का प्रस्ताव रखने पर लड़की ने जवाब दिया कि वह उससे विवाह करने को तैयार तो है, लेकिन वह अपनी सास के रूप में किसी को देखना नहीं चाहती। अत: वह अपनी मां का कत्ल कर उसका कलेजा निकाल लाए, तो वह उससे शादी करेगी। युवक पहले काफी दुविधा में रहा, लेकिन फिर अपनी माशूका के लिए मां का कत्ल कर उसका कलेजा निकाल तेजी से प्रेमिका की ओर बढ़ा। तेजी में जाने की हड़बड़ी में उसे ठोकर लगी और वह गिर पड़ा। इस पर मां का कलेजा गिर पड़ा और कलेजे से आवाज आई, बेटा, कहीं चोट तो नहीं लगी...आ बेटा, पट्टी बांध दूं...।
- मां में छिपी है सृष्टि
मां शब्द में संपूर्ण सृष्टि का बोध होता है। मां के शब्द में वह आत्मीयता एवं मिठास छिपी हुई होती है, जो अन्य किसी शब्दों में नहीं होती। इसका अनुभव भी एक मां ही कर सकती है। मां अपने आप में पूर्ण संस्कारवान, मनुष्यत्व व सरलता के गुणों का सागर है। मां जन्मदाता ही नहीं, बल्कि पालन-पोषण करने वाली भी है।
- मां है ममता का सागर
मां तो ममता की सागर होती है। जब वह बच्चे को जन्म देकर बड़ा करती है तो उसे इस बात की खुशी होती है, उसके लाड़ले पुत्र-पुत्री से अब सुख मिल जाएगा। लेकिन मां की इस ममता को नहीं समझने वाले कुछ बच्चे यह भूल बैठते हैं कि इनके पालन-पोषण के दौरान इस मां ने कितनी कठिनाइयां झेली होगी।
बदलाव
- समय के साथ बदल रही भूमिकाएं
समय के साथ माताओं की भूमिका बदल रही है। घर की चौखट से बाहर वे अब पुत्र-पुत्रियों के कॅरियर की भी चिंता कर रही हैं। यही नहीं, अब वे वृद्धावस्था में पुत्रों की दया पर जीने वाली भूमिका में जीने को कतई तैयार नहीं हैं। दैनिक भास्कर ने इस संबंध में शहरी व ग्रामीण क्षेत्र में बातचीत की, तो समय के साथ बदल रही भूमिकाएं स्पष्ट हुईं।
- संतान में अपनी सफलता की खोज
इस समय वैसे तो कई महिलाएं हैं, जो पुरुषों से मुकाबला कर रही हैं। वह न सिर्फ मां की भूमिका निभा रही हैं, बल्कि डॉक्टर, इंजीनियर, प्राध्यापक, सरपंच, प्रधान आदि पदों की शोभा बढ़ा रही हैं। हालांकि इसके बावजूद बड़ी संख्या घरेलू महिलाओं की है। जब इस संबंध में मैट्रिक उत्तीर्ण नीलम से बात की गई, जो अपने दो बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी खुद वहन कर रही हैं, वह कहती हैं कि उनका सपना स्पोट्र्स में कुछ करना था, अब वे अपनी बेटियों को पढ़ाने के साथ खेल, व्यायाम आदि पर भी पूरा ध्यान दे रही हैं। वहीं वह घर में ही खाली समय का सदुपयोग करते हुए इंटर की पढ़ाई कर रही हैं। पहले जहां घर से बाहर होस्टल में लड़कियों के रखने पर लोगों का ऐतराज होता था, वहीं अब शायद ही किसी महिला को इस पर ऐतराज है। चाहे बेटी विदेश जाए या कोई महानगर, अब तो उनकी एक ही इच्छा है कि वह अपने क्षेत्र में कुछ कर गुजरे। हालांकि कुछ ऐसी भी मां हैं, जो एकदम से इसे पसंद नहीं करती। उनके अनुसार यदि कोई निकटतम रिश्तेदार है तो ठीक, नहीं तो अपना शहर ही पढ़ाई के लिए काफी है।
- डूब रही रुढिय़ां, छूट रहा घूंघट
इसी क्रम में महिलाएं अब पहले से अधिक जागरूक भी हो गई हैं। रुढिय़ों के बजाय वे आधुनिकता व तरक्की को ज्यादा तवज्जो दे रही हैं। शहरों में वैसी महिलाओं की संख्या बढ़ रही है जो रुढिय़ों के साथ घूंघट को तिलांजलि दे रही हैं। यही नहीं, पहले की तरह सब कुछ समर्पण कर पति के पदचिह्नों पर चलने की भूमिका की जगह, वह सलाहकार की भूमिका में आ चुकी हैं। एमएससी किए सुनीता कहती हैं कि उसके पति सरकारी संस्थान में कार्यरत हैं, लेकिन गंभीर बातों में उनके विचार को पूरी तवज्जो देते हैं। हालंाकि सिरोही में नाइट शिफ्ट में बेटियों को काम करने देने की इजाजत देने वाली मां का प्रतिशत काफी कम है। अधिकांश इसे हर तरह से असुरक्षित मानती हैं।
- मजबूरियां दूरियां बढऩे की
वर्तमान समय ने चाहे जो उपलब्धियां दी हों, लेकिन एक बड़ा दर्द दिया है परिवार बिखरने का। शायद ही कोई परिवार हो, जिसके सभी सदस्य साथ रहते हों। यहां बचपन बीता कि आदमी दूसरे शहर में रोजी-रोटी, नौकरी की तलाश में चला जाता है। ऐसे में लंबी तनहाई समय का सच बन गया है। वृद्ध माता-पिता बेटे-बेटियों के कॅरियर के लिए इतने कठोर भी नहीं बन सकते कि अपने पास रहने को कहें। अब ऐसे में मजबूरी में फोन आदि पर बात कर संतोष करना पड़ता है। इससे कठिनाइयां भले कम नहीं होतीं, लेकिन मन को संतोष हो जाता है।
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