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कोणार्क पर्यटन

आध्यात्मिक दृष्टिकोण से कोणार्क भारत का प्रमुख पर्यटन स्थल है।

सूर्य मंदिर

  • सूर्य देवता को समर्पित यह मन्दिर सामान्यतः ‘काले पैगोड़ा’ के नाम से विख्यात है। तेरहवीं सदी के खुर्दा नरेश नरसिंह देव (1238-1263ई.) को मन्दिर के निर्माण का श्रेय दिया जाता है। अब इसके भग्नावशेष ही उपलब्ध हैं।
  • सूर्य मंदिर 875 फुट लम्बे और 540 फुट चौड़े प्रांगण में बनाया गया हैं, इस मन्दिर का अहाता एक दीवार से परिवृत्त है, और इसका मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व में है। सम्पूर्ण मन्दिर पहियों वाले रथ की आकृति में बनाया गया है, जिसे सूर्य के सात घोड़े खींच रहे हैं।
  • अंलकृत घोड़े ऐसे दिखायी देते हैं, जैसे अपने भारी बोझ को आगे खींचने के प्रयास में वे अपने पिछले दोनों पैर उठा रहे हैं, तथा ऐंठ रहे हैं। इसमें आधार पर बारह पहिये या चक्र निर्मित हैं। बारह चक्र बारह राशियों के प्रतीक हैं और सूर्य के सात घोड़े उसकी किरणों के रंगों के प्रतीक हैं।
  • सूर्य मन्दिर के दो भाग हैं- रेखा और भद्र। मन्दिर के दोनों भाग पुरुष और स्त्री के वास्तु प्रतीक हैं,जो अभिन्न रुप से जुड़े हैं। रेखा भाग 180 फुट और भद्र 140 फुट ऊँचा है। मुख्य द्वार पर हाथी की पीठ पर आसीन सिंहों की मूर्तियाँ निर्मित हैं।
  • दक्षिणी प्रवेश द्वार पर दो अश्व मूर्तियाँ और उत्तरी द्वार पर मनुष्यों को सूँड पर उठाये दो हाथी प्रदर्शित हैं। पहले सभी द्वारों पर मूर्तियाँ उत्कीर्ण थीं, किंतु अब केवल पूर्वी द्वार की ही नक्काशी शेष है। द्वार के ऊपर नवग्रहों का अंकन था।
मायादेवी मंदिर
  • सूर्य मंदिर के दक्षिण पश्चिम में स्थित मायादेवी मंदिर कोणार्क का मुख्य आकर्षण है।
  • मायादेवी मंदिर किसको समर्पित है यह स्पष्ट नहीं है।
  • कुछ लोगों का मानना है कि यह मंदिर भगवान सूर्य की पत्नी को समर्पित है जबकि कुछ लोग कहते हैं कि यह मंदिर स्वयं भगवान सूर्य को समर्पित है।
  • मंदिर की दीवारों पर रती क्रियाओं संबंधित प्रतिमाएँ उकेरी गई हैं। मंदिर में नृत्य करती परियों, शिकार, दरबार और फूलों के दृश्य काफ़ी आकर्षण हैं।
  • प्रवेश द्वार पर बने दो शेरों की आकृति और दूसरी तरफ विशालकाय हाथी की प्रतिमा मंदिर की ख़ूबसूरती में वृद्धि करती है।
पुरातात्विक संग्रहालय
  • सूर्य मंदिर के समीप स्थित इस संग्रहालय में मंदिर की खुदाई से प्राप्त अनेक मूर्तियों और नक्कासियों को रखा गया है।
  • संग्रहालय में भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों, सूर्य और बहुत सी अप्सराओं की मूर्तियाँ रखी हुई हैं।
  • पत्थर से बनी नवग्रह की विशाल मूर्ति यहाँ रखी गई है जो पहले सूर्यमंदिर के मुख्य द्वार के ऊपर रखी थी।
  • पुरातात्विक संग्रहालय शुक्रवार के अतिरिक्त सभी दिनों खुला रहता है।
कोणार्क तट
  • सूर्य मंदिर से 3 किमी दूर स्थित यह तट पूर्वी तट के सबसे ख़ूबसूरत तटों में एक है।
  • दूर-दूर फैला समुद्र का नीला पानी देखना और रत पर लेटकर धूप सेंकना पर्यटकों को बहुत पसंद आता है।
  • शाम के समय यहाँ के शांत वातावरण में टहलना और सूर्यास्त के नजार देखना मन को किसी दूसरी ही दुनिया में ले जाते हैं।
  • दिसंबर के महीने में यहां कोणार्क नृत्य पर्व मनाया जाता है।
  • कोणार्क नृत्य पर्व के अवसर पर अनेक शास्त्रीय नृत्यकार भरतनाट्यम, ओडिसी, मणिपुरी, कथक, छाऊ नृत्य कर अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं।
रामचंदी
  • कोणार्क से 7 किमी. की दूर रामचंदी एक छोटा और सुन्दर तट है जो कुशभद्रा नदी और बंगाल की खाड़ी के संगम पर स्थित है।
  • कोणार्क क्षेत्र की अधिष्ठात्री रामचंदी देवी यहाँ पूजी जाती है।
  • पर्यटकों के घुमने के लिए यह एक आदर्श स्थान है।
करूमा
  • करूमा एक छोटा सा गाँव है जो बौद्ध पुरातात्विक खोजों के लिए लोकप्रिय है।
  • करूमा में हुई खुदाई से महात्मा बुद्ध की भूमिस्पर्श मुद्रा में और हुरूका की एक प्राचीन मूर्ति प्राप्त हुई है।
  • विद्वानों का कहना है कि चीनी इतिहासकार ह्वेन त्सांग ने जिन बौद्ध स्तूपों के बार में लिखा था, यह उन्हीं में एक है।
चौरासी
  • यह स्थान लक्ष्मीनारायण, अमरशरस और वसाही के मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है।
  • नौवीं शताब्दी से वसाही को तांत्रिक समुदाय द्वारा पूजा जा रहा है।
  • वसाही यहाँ की मातृदेवी है जिनका मुख सूकर का है।
  • वसाही देवी ने एक हाथ में मछली और दूसर में कप पकड़ा हुआ है।
ककटापुर
  • कोणार्क से 45 किमी. की दूरी पर स्थित ककटापुर प्राची घाटी में स्थित है।
  • ककटापुर मंगला और बनदुर्गा देवी के लिए प्रसिद्ध है।
  • अप्रैल-मई में होने वाली जम्मू यात्रा के लिए ककटापार लोकप्रिय है।