गाय

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गौ (गायें)

हिंदू धर्म में यह विश्वास है कि गाय देवत्व और प्राकृतिक कृपा की प्रतिनिधि है, और इसलिए इसकी रक्षा तथा पूजा की जानी चाहिए। हिन्दू धर्म में गाय की पूजा का मूल आरंभिक वैदिक काल में खोज जा सकता है। भारोपीय लोग, जिन्होंने दूसरी सहस्राब्दी ई.पू. में भारत में प्रवेश किया, वे पशुपालक थे। पशुओं का बड़ा आर्थिक महत्त्व था, जो वैदिक धर्म में भी दिखाई देता है। यद्यपि प्राचीन भारत में गायों और बैलों की बलि दी जाती थी और उनका माँस खाया जाता था। लेकिन दुधारू गायों की बलि क्रमश: बंद की जा रही थी। जैसे महाभारत व मनु स्मृति के हिस्सों में और ऋग्वेद में दुधारू गाय को पहले से ही 'अवध्य' कहा गया था। गाय की पूज्यता का संकेत उपचार शुद्धिकरण और प्रायश्चित के संस्कारों में पंचगव्य, गाय के पांच उत्पादन, दूध दही, मक्खन, मूत्र और गोबर के प्रयोग से मिलता है। बाद में अहिंसा के आदर्श के उदय के साथ गाय अहिंसक उदारता के जीवन का प्रतीक बन गई। साथ ही इस तथ्य के आधार पर कि उसके उत्पादन पोषण प्रदान करते हैं। गाय को मातृत्व और धरती माँ से भी संबद्ध किया गया। गाय को पहले पहल ब्राह्मण (या पुरोहित) वर्ग के साथ भी जोड़ा गया और उसे मारना कभी-कभी (ब्राह्मणों द्वारा) ब्रह्म हत्या जैसा निंदनीय कार्य माना जाता था। ईसा की पहली शताब्दी के मध्य में गुप्त राजाओं द्वारा गाय की हत्या करने पर मृत्युदंड का प्रावधान किया गया।

देवताओं का वास

गौ

भारतीय परंपरा के अनुसार गाय के शरीर में 33 करोड़ देवता वास करते है, एवं गौ-सेवा करने से एक साथ 33 करोड देवता प्रसन्न होते हैं। गाय का विशिष्ट संबंध कई देवताओं, विशेषकर शिव जिनका वाहन बैल है। इंद्र मनोकामना पूर्ण करने वाली गाय, कामधेनु से निकट से संबद्ध, कृष्ण अपनी युवावस्था में एक ग्वाले और सामान्य रूप से देवियों के साथ उनमें से कई के मातृवत गुणों के कारण जोड़ा जाता है। 19 शताब्दी के बाद के दशकों में विशेषकर उत्तरी भारत में एक गो रक्षा आंदोलन शुरू हुआ, जिसने हिंदुओं को एकीकृत करने और एक समूह के रूप में उन्हें मुसलमानों से अलग करने का प्रयास यह मांग करके किया कि सरकार गो हत्या पर प्रतिबंध लगाए। राजनीतिक और धार्मिक उद्देश्यों का यह घालमेल समय-समय पर कई दंगों का कारण बना और अंतत: 1947 में भारतीय उपहाद्वीप के विभाजन में भी इसकी भूमिका रही।

गौ माता

हिन्दू संस्कृति के अनुसार जिस घर में गाय निवास करती हैं एवं जहाँ गौ सेवा होती है, उस घर से समस्त समस्याएँ कोसों दूर रहती हैं। भारतीय संस्कृति के अनुसार गाय को अपनी माता के समान संम्मान दिया जाता हैं इस लिये गाय को गौ-माता कहकर पुकारते है।

  • गाय का दूध अमृत के समान है, गाय से प्राप्त दूध, घी, मक्खन से मानव शरीर पुष्ट बनता है।
  • गाय के गोबर का प्रयोग चुल्हें बनाने, आंगन लिपने एवं मंगल कार्यो मे लिया जाता है, और यहाँ तक की गाय के मूत्र से भी विभिन्न प्रकार की दवाइयाँ बनाई जाती है, गाय के मूत्र में कैंसर, टीवी जैसे गंभीर रोगों से लड़ने की क्षमता होती हैं, जिसे वैज्ञानिक भी मान चुके है, तथा गौ-मूत्र के सेवन करने से पेट के सभी विकार दूर होते हैं।
  • भारतीय संस्कृति के अनुसार गाय ही ऐसा पशुजीव है, जो अन्य पशुओं में सर्वश्रेष्ठ और बुद्धिमान माना है।
  • ज्योतिष शास्त्र में भी नव ग्रहों के अशुभ प्रभाव से मुक्ति पाने के लिये गाय का ही वर्णन किया गया हैं।
  • यदि बच्चे को बचपन में गाय का दूध पिलाया जाए तो बच्चे की बुद्धि कुशाग्र होती है।
  • गाय की सेवा से भगवान शिव भी प्रसन्न होते हैं।
  • गाय के मूत्र में पोटेशियम, सोडियम, नाइट्रोजन, फास्फेट, यूरिया, यूरिक एसिड होता है, दूध देते समय गाय के मूत्र में लेक्टोज की वृद्धि होती है। जो हृदय रोगों के लिए लाभकारी है।
  • गाय का दूध फैट रहित परंतु शक्तिशाली होता है उसे पीने से मोटापा नहीं बढ़ता तथा स्त्रियों के प्रदर रोग आदि में लाभ होता है। गाय के गोबर के कंडे से धुआं करने पर कीटाणु, मच्छर आदि भाग जाते हैं तथा दुर्गंध का नाश होता है।
  • गाय के समीप जाने से ही संक्रामक रोग कफ सर्दी, खांसी, जुकाम का नाश हो जाता है। गौमूत्र का एक पाव रोज सुबह खाली पेट सेवन करने से कैंसर जैसा रोग भी नष्ट हो जाता है।
  • गाय एकमात्र ऐसा प्राणी है, जो ऑक्सीजन ग्रहण करता है और ऑक्सीजन ही छोड़ता है।
  • गाय के सींग गाय के रक्षा कवच होते है। गाय को इसके द्वारा सीधे तौर पर प्राकृतिक ऊर्जा मिलती है। यह एक प्रकार से गाय को ईश्वर द्वारा प्रदत्त एंटीना उपकरण है।
  • गाय की मृत्यु के 45 साल बाद तक भी यह सुरक्षित बने रहते है। गाय की मृत्यु के बाद उसके सींग का उपयोग श्रेठ गुणवत्ता की खाद बनाने के लिए प्राचीन समय से होता आ रहा है।
  • गाय के गोबर में विटामिन बी-12 प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह रेडियोधर्मिता को भी सोख लेता है। हिंदुओं के हर धार्मिक कार्यों में सर्वप्रथम पूज्य गणेश उनकी माता पार्वती को गाय के गोबर से बने पूजा स्थल में रखा जाता है।

कामधेनु

कामधेनु का वर्णन पौराणिक गाथाओं में एक ऐसी चमत्कारी गाय के रूप में मिलता है जिसमें दैवीय शक्तियाँ थी और जिसके दर्शन मात्र से ही लोगो के दुःख व पीड़ा दूर हो जाती थी यह कामधेनु जिसके पास होती थी उसे हर तरह से चमत्कारिक लाभ होता था। उसका दूध अमृत के समान था। कृष्ण कथा में अंकित सभी पात्र किसी न किसी कारणवश शापग्रस्त होकर जन्मे थे। कश्यप ने वरुण से कामधेनु माँगी थी फिर लौटायी नहीं, अत: वरुण के शाप से वे ग्वाले हुए। जैसे देवताओं में भगवान विष्णु, सरोवरों में समुद्र, नदियों में गंगा, पर्वतों मे हिमालय, भक्तों में नारद, सभी पुरियों में कैलाश, सम्पूर्ण क्षेत्रों में केदार क्षेत्र श्रेष्ठ है, वैसे ही गऊओं में कामधेनु सर्वश्रेष्ठ है। कामधेनु सबका पालन करने वाली है। माता स्वरूपिणी हैं- सब इच्छाएँ पूर्ण करने वाली है। जब भगवान विष्णु स्वयं कच्छपरूप धारण करके मन्दराचल के आधार बनें। इस प्रकार मन्थन करने पर क्षीरसागर से क्रमश: कालकूट विष, कामधेनु, उच्चैश्रवा नामक अश्व, ऐरावत हाथी, कौस्तुभ्रमणि, कल्पवृक्ष, अप्सराएँ, लक्ष्मी, वारूणी, चन्द्रमा, शंख, शांर्ग धनुष धनवन्तरि और अमृत प्रकट हुए।

औषधीय गुणकारी

  • हाथ-पांव में जलन होने पर गाय के घी से मालिश करने पर आराम मिलेगा।
  • शराब, गांजे या भांग का नशा ज़्यादा हो जाय तो गाय का घी में दो तोला चीनी मिलाकर देने में 15 मिनट में नशा कम हो जायेगा।
  • जल जाने वाले स्थान या घाव को पानी से धोकर गाय का घी लगाने से फफोले कम हो जाते हैं और जलन कम हो जाती है।
  • बच्चों को सर्दी या कफ की शिकायत हो जाये तो गाय के घी से छाती और पीठ पर मालिश करने से तुरन्त आराम मिलता है
  • किसी मनुष्य को अगर हिचकी आये तो उसे रोकने के लिये आधा चम्मच गाय का घी पिलाने से हिचकी रुक जाती है।
  • यदि किसी मनुष्य को सर्प काट जाये तो उसे 70 या 150 ग्राम गाय का ताजा घी पिलाकर 40-50 मिनट बाद जितना गर्म पानी पी सकें, पिलायें। इसके बाद उल्टी-दस्त होंगे, इसके बाद विष का प्रभाव कम होने लगेगा।[1]

सामाजिक महत्त्व

पर्यावरण

गाय की उपस्थिति का पर्यावरण के लिए एक महत्वपूर्ण योगदान है, प्राचीन ग्रंथ बताते हैं कि गाय की पीठ पर के सूर्यकेतु स्नायु हानिकारक विकीरण को रोख कर वातावरण को स्वच्छ बनाते है।

कृषि

कृषि में गाय के गोबर की खाद्य, औषधि और उद्योगों से पर्यावरण में काफ़ी सुधार है। जुताई करते समय गिरने वाले गोबर और गौमूत्र से भूमि में स्वतः खाद डलती जाती है। प्रकृति के 99%कीट प्रणाली के लिये लाभ दायक है, गौमूत्र या खमीर हुए छाछ से बने कीटनाशक इन सहायक कीटों को प्रभावित नहीं करते एक गाय का गोबर 7 एकड़ भूमि को खाद और मूत्र 100 एकड़ भूमि की फसल को कीटों से बचा सकता है।

आहार

चाय, कॉफ़ी जैसे लोकप्रिय पेय पदार्थों में दूध एक जरूरी पदार्थ है, भारत में ऐसी अनेक मिठाइयाँ जो गौ दूध पर आधारित होती है। दही, मक्खन और घी भारतीय भोजन के आवश्यक अंग हैं। घी में तले व्यंजनों का खाद अप्रतिम होता है। छाछ न केवल प्यास बुझाती हैं बल्की बहुत से प्रचलित व्यंजनों का आधार है ।

धार्मिक महत्त्व

  • हमारी संस्कृति के अनुसार गाय और मंदिरों का एक दूसरे से मज़बूत रिश्ता है, धार्मिक अनुष्ठानों में गाय की अपनी एक महत्वपूर्ण भूमिका है।
  • गाय को दैविक माना गया है, तथा हिंदू संस्कृति के अनुसार दिन की शुरूआत गाय की पूजा से शुरू होती है। गाय को खिलाना और उसकी पूजा करना दैविक अनुष्ठान है ।
  • पारिवारिक उत्सवों तथा त्योहारों में गाय की प्रधानता है, ऐसे अनेक त्योहार है, जहाँ गाय अपना एक प्रमुख स्थान रखती है।
  • अनेक मंदिरों के प्रवेशद्वार पर गाय का छप्पर होता है जिससे मनुष्य में पवित्रता की भावना बढ़ती है।
  • हिंदुओं के हर धार्मिक कार्यों में सर्वप्रथम पूज्य गणेश उनकी माता पार्वती को गाय के गोबर से बने पूजा स्थल में रखा जाता है।

गोपाष्टमी

ब्रज संस्कृति का यह एक प्रमुख पर्व है। गायों की रक्षा करने के कारण भगवान श्री कृष्ण जी का अतिप्रिय नाम 'गोविन्द' पड़ा। कार्तिक, शुक्ल पक्ष, प्रतिपदा से सप्तमी तक गो-गोप-गोपियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को धारण किया था। 8वें दिन इन्द्र अहंकाररहित होकर भगवान की शरण में आया। कामधेनु ने श्रीकृष्ण का अभिषेक किया और उसी दिन से इनका नाम गोविन्द पड़ा। इसी समय से अष्टमी को गोपोष्टमी का पर्व मनाया जाने लगा, जो कि अब तक चला आ रहा है। इस दिन प्रात: काल गायों को स्नान कराएँ तथा गंध-धूप-पुष्प आदि से पूजा करें और अनेक प्रकार के वस्त्रालंकारों से अलंकृत करके ग्वालों का पूजन करें, गायों को गो-ग्रास देकर उनकी प्रदक्षिणा करें और थोड़ी दूर तक उनके साथ में जाएँ तो सभी प्रकार की अभीष्ट सिद्धि होती हैं। गोपाष्टमी को सांयकाल गायें चरकर जब वापस आयें तो उस समय भी उनका अभिवादन और पंचोपचार पूजन करके कुछ भोजन कराएँ और उनकी चरण रज को माथे पर धारण करें। उससे सौभाग्य की वृद्धि होती है। भारतवर्ष के प्राय: सभी भागों में गोपाष्टमी का उत्सव बड़े ही उल्लास से मनाया जाता है। विशेषकर गोशालाओं तथा पिंजरा पोलो के लिए यह बड़े ही महत्व का उत्सव है। इस दिन गोशालाओं की संस्था को कुछ दान देना चाहिए। इस प्रकार से सारा दिन गो-चर्चा में ही लगना चाहिए। ऐसा करने से ही गो वंश की सच्ची उन्नति हो सकेगी, जिस पर हमारी उन्नति सोलह आने निर्भर है। गाय की रक्षा को हमारी रक्षा समझना चाहिए। इस दिन गायों को नहलाकर नाना प्रकार से सजाया जाता है और मेंहदी के थापे तथा हल्दी रोली से पूजन कर उन्हें विभिन्न भोजन कराये जाते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गाय के घी का औषधीय गुण (हिन्दी) (पी.एच.पी) merapahadforum.com। अभिगमन तिथि: 5 फ़रवरी, 2011।