डाक सूचक संख्या / पिन कोड
हम सबका सामना कभी न कभी चिट्ठियों से जरूर होता है। इन चिट्ठियों में चाहे वे पोस्टकार्ड हों, लिफाफे या अंतर्देशीय पत्र, एक पता लिखने का स्थान तय होता है। इस स्थान में सबसे नीचे छह खाने बने होते हैं, जिस पर डाक सूचक संख्या या पोस्टल इंडेक्स नंबर या पिन नंबर (Postal Index Number or PIN or Pincode) लिखा जाता है। पिन कोड लिखने से पत्र को सही स्थान पर पहुँचाने में मदद मिलती है। पिन नंबर एक ऐसी प्रणाली है जिसके माध्यम से किसी स्थान विशेष को एक विशिष्ट सांख्यिक पहचान प्रदान की जाती है। भारत में पिन कोड में 6 अंकों की संख्या होती है और इन्हें भारतीय डाक विभाग द्वारा छांटा जाता है।
[1] दरअसल, हमारा देश अति विशाल है। यहाँ लाखों गाँव व कस्बे हैं। यहाँ एक ही नाम वाले दो या इससे भी अधिक स्थान हो सकते हैं। जैसे - औरंगाबादमहाराष्ट्र में है और बिहार में भी। जयपुर एक शहर भी है और एक गाँव भी। ऐसी स्थिति में डाक विभाग को चिट्ठी सही जगह और समय से पहुँचाने में बड़ी परेशानी होती थी। इससे बचने के लिए भारतीय डाक विभाग ने पिन कोड की व्यवस्था स्वतन्त्रता की 25वीं वर्षगाँठ पर 15 अगस्त, 1972 से शुरू की गई, जिससे डाक सेवा तीव्र हो सके। इस व्यवस्था के अंतर्गत देश को कुल 9 मुख्य क्षेत्रों में बांटा गया। फिर इसके उपक्षेत्र बनाए गए। अंत में डाक बांटने वाले डाकघरों को भी एक कोड द्वारा निर्धारित किया गया। इस व्यवस्था में 6 अंकों के पिनकोड का पहला अंक भारत देश के क्षेत्र को दर्शाता है। पहले 2 अंक मिलकर इस क्षेत्र में उपस्थित उपक्षेत्र या डाक वृतों मे से किसी एक डाक वृत को दर्शाते हैं। पहले 3 अंक मिलकर छंटाई / राजस्व ज़िले (सार्टिंग यूनिट) को दर्शाते हैं जबकि अंतिम 3 अंक सुपुर्दगी (वितरण) करने वाले डाकखाने का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये सांख्यिक कूट भौगोलिक क्षेत्र के अनुसार डाक को छांटने का कार्य अत्यन्त सरल बना देते हैं। 9 मुख्य क्षेत्रों को एक से लेकर 9 संख्या तक निर्धारित किया गया है, जिसके अंतर्गत निम्न स्थान या क्षेत्र आते हैं-