सूरजमल

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राजा सूरजमल / Raja Surajmal

राजा सूरजमल
Raja Surajmal

(सन 1755−1763)
राजा सूरजमल सुयोग्य शासक था। उसने ब्रज में एक स्वतंत्र हिन्दू राज्य को बना इतिहास में गौरव प्राप्त किया। उसके शासन का समय सन 1755 से सन 1763 है। वह सन 1755 से कई साल पहले से अपने पिता बदनसिंह के शासन के समय से ही वह राजकार्य सम्भालता था। राजा सूरजमल के दरबारी कवि 'सूदन' ने राजा की तारीफ में 'सुजानचरित्र' नामक ग्रंथ लिखा। इस ग्रंथ में सूदन ने राजा सूरजमल द्वारा लड़ी लड़ाईयों का आँखों देखा वर्णन किया है। इस ग्रन्थ में सन 1745 से सन 1753 तक के समय में लड़ी गयी लड़ाईयों (7 युध्दों )का वर्णन है। इन लड़ाईयों में सूदन ने भी भाग लिया था, इसलिए उसका वर्णन विश्वसनीय कहा जा सकता है। इस ग्रंथ में आमेर के राजा जयसिंह के निधन के बाद उसके बड़े बेटे ईश्वरीसिंह का मराठों के खिलाफ लड़ा गया सन 1747 का युध्द, आगरा और अजमेर के सूबेदार सलावत ख़ाँ से लड़ा गया सन 1748 का युध्द और सन 1753 की दिल्ली की लूट का वर्णन उल्लेखनीय है। इस ग्रंथ में सूरजमल की सन 1753 के बाद की घटनाओं का वर्णन नहीं है। राजकवि सूदन का निधन सम्भवतः सन 1753 के लगभग ही हो गया होगा। सम्भवतः इसी से बाद में लड़ी लड़ाईयों का विवरण नहीं मिलता है। इस पुस्तक में दिल्ली की लूट का विवरण महत्वपूर्ण है।

दिल्ली की लूट

सल्तनत काल से मुग़लकाल तक लगभग छह सौ सालों में ब्रज पर आयीं मुसीबतों का कारण दिल्ली के मुस्लिम शासक थे, इस कारण ब्रज में इन शासकों के लिए बदले, क्रोध और हिंसा की भावना थी जिसका किए गये विद्रोहों से पता चलता है। दिल्ली प्रशासन के सैनिक अधिकारी अपनी धर्मान्धता की वजह से लूटमार थे।

महाराजा सूरजमल के समय में परिस्थितियाँ बदल गईं थी। यहाँ के वीर व साहसी पुरुष किसी हमलावर से स्वसुरक्षा में ही नहीं, बल्कि उस पर हमला करने में ख़ुद को काबिल समझने लगे। सूरजमल द्वारा की गई 'दिल्ली की लूट' का विवरण उनके राजकवि सूदन द्वारा रचित 'सुजान चरित्र' में मिलता है। सूदन ने लिखा है कि महाराजा सूरजमल ने अपने वीर एवं साहसी सैनिकों के साथ सन 1753 के बैसाख माह में दिल्ली कूच किया। मुग़ल सम्राट की सेना के साथ राजा सूरजमल का संघर्ष कई माह तक होता रहा और कार्तिक के महीने में राजा सूरजमल दिल्ली में दाखिल हुआ। दिल्ली उस समय मुग़लों की राजधानी थी। दिल्ली की लूट में उसे अथाह सम्पत्ति मिली, इसी घटना का विवरण काव्य के रूप में 'सुजान−चरित्र' में इस प्रकार किया है [1]
महाराजा सूरजमल का यह युध्द जाटों का ही नहीं वरन ब्रज के वीरों की मिलीजुली कोशिश का परिणाम था। इस युध्द में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य के अलावा गूजर, मैना और अहीरों ने भी बहुत उल्लास के साथ भाग लिया। सूदन ने लिखा है।<balloon title="गूजर गरूर गाढ़े गरजि मैना मलूक मदमत्त धीर। बेपीर वीर चाले अहीर।।" style="color:blue">*</balloon> इस युद्ध में गोसाईं राजेन्द्र गिरि और उमराव गिरि भी अपने नागा सैनिकों के साथ शामिल थे। महाराजा सूरजमल को दिल्ली की लूट में जो अपार धन मिला था, उसे जनहित कार्यों और निर्माण कार्यों में प्रयोग किया गया। दिल्ली विजय के बाद महाराजा सूरजमल ने गोवर्धन जाकर श्री गिरिराज जी की पूजा थी; और मानसी गंगा पर दीपोत्सव मनाया।

मराठों की गतिविधियाँ

कुसुम सरोवर , गोवर्धन
Kusum Sarovar, Govardhan

जब ब्रज और उसके आस पास महाराजा सूरजमल का साम्राज्य था, उसी समय मराठा पेशवाओं की सैनिक गतिविधियाँ भी तेज हो गयीं। पेशवाओं की शक्ति का विस्तार दक्षिण से दिल्ली तक हो गया था और मुग़ल शासक भी भयभीत था। ऐसे समय में सूरजमल को मुग़लों के साथ साथ मराठों से भी अपने राज्य की रक्षा और अधिकार के लिए लड़ना पड़ा। उसकी शक्ति धीरे धीरे क्षीण हो रही थी।

अब्दाली के आक्रमण

इसी समय अहमदशाह अब्दाली ने देश पर हमला कर दिया, मराठों ने उधर ध्यान नहीं दिया वे जाटों और राजपूतों से लड़कर कमजोर होते रहे। मराठों ने जहाँ ख़ुद को कमजोर किया वहीं राजपूतों को भी कमजोर किया और अहमदशाह अब्दाली को आक्रमण करने का मौक़ा दे दिया ।

लूट के बाद का ब्रज

अब्दाली की लूटमार सन 1756−57 में हुई थी। किसी ने भी लुटेरों का विरोध नहीं किया। लुटेरे आये और दिल्ली से आगरा तक के ही समृद्धिशाली राज्य को लूट कर चले गये। औरंगजेब के अत्याचारों से सहमा ब्रजमंड़ल लम्बे समय तक संभल नहीं पाया। ऐसी परिस्थिति में मराठा सरदार चुप्पी लगा गये और सूरजमल अपने किले में छिपा रहा। इसके बाद अब्दाली ने कई हमले किये, जिनमें वह हमेशा कामयाब रहा।

पानीपत की लड़ाई

सन 1761 में पानीपत का ऐतिहासिक युध्द हुआ, जिसमें राजपूत−जाट−मराठा जैसे शक्तिशाली और वीर सैनिकों के होते हुए भी देश को हार का सामना करना पड़ा। मुख्य कारण हिन्दू शासकों का आपस में मेल न होना था। अहमदशाह अब्दाली के आक्रमणों से सबक़ लेकर मराठों और जाटों ने संधि की; लेकिन वे राजपूतों से गठजोड़ करने में कामयाब नहीं हुए। वे अपने ही बलबूते पर अब्दाली को ख़त्म करने के लिए प्रतिज्ञाबध्द थे। इस लड़ाई में मराठा सरदार सदाशिवराव भाऊ और सूरजमल नीतिगत मतभेद हो गये। भाऊ ने सूरजमल के साथ अपमान पूर्ण वार्ता की थी । सूरजमल नाराज़ होकर अपनी सेना के साथ वापिस चला गया। मराठा सरदार को अपनी ताक़त पर बहुत भरोसा था, उसने जाटों की बिल्कुल परवाह नहीं की।


युद्ध में अफगान सैनिक और भारत के मुसलमान रूहेले थे, जो लगभग 62 हजार थे, दूसरी तरफ अकेले मराठा सैनिक थे, जिनकी संख्या 45 हजार थीं। दोनों सेनाओं में भीषण युध्द हुआ। उसमें मराठाओं ने बहुत वीरता दिखलाई; किंतु संख्या की कमी और प्रबंधकीय शिथिलता होने के कारण मराठा हार गये। उस युद्ध में सैनिक बहुत संख्या में मारे गये। भरतपुर के 'मथुरेश' कवि ने इस स्थिति पर दुख जताते हुए कहा है −

"नाँच उठी भारत की भावी सदाशिव शीश, ओंधी हुई बुद्धि उस जनरल महान की ।

होती न हीन दशा हिन्दी−हिन्द−हिन्दुओं की, मानता जो भाऊ, कहीं सम्मति सुजान की।।"

पानीपत के युद्ध में पराजित और घायल सैनिकों के खान−पान और सेवा−शुश्रूषा और दवा−दारू की व्यवस्था सूरजमल की ओर से की गई थी।

जाटों का विस्तार

पानीपत में अफगानी पठानों और रूहेलों की जीत ज़रूर हुई ; लेकिन हानि मराठाओं से कम नहीं हुई। अहमदशाह अब्दाली अफगानिस्तान लौट गया। रूहेले भी थके होने से प्रभावशाली क़दम उठाने में असमर्थ थे। पराजय से मराठों की तो जैसे कमर ही टूट गई थी । हालांकि वे शीघ्र ही फिर से बलशाही हो गये थे, निजाम दक्षिणी शक्तियों का दमन करने के कारण उत्तर की ओर देखने की स्थिति में नहीं थे। यह परिस्थितियाँ सूरजमल को अपनी शक्ति विस्तृत करने के लिए अनुकूल लगी। पानीपत से बिना लड़े वापिस आने से उसकी शक्ति सुरक्षित थी। सूरजमल ने मुग़लों की राजधानी आगरा को लूटा और अधिकार कर अपने राज्य में मिला लिया। इसके बाद हरियाणा के बलूची शासक मुसब्बीख़ाँ पर हमला कर उसे हराया और कैद कर भरतपुर भेज दिया। उसकी राजधानी फर्रूखनगर को उसने अपने बड़े पुत्र जवाहर सिंह को सौंपा और उसे मेवाती क्षेत्र का स्वामी बना दिया। आगरा से लेकर दिल्ली के पास तक सूरजमल की तूती बोलने लगी। उसे अपने अधिकृत क्षेत्र की प्रभु−सत्ता को दिल्ली के मुग़ल सम्राट् से स्वीकृत कराना था। उस समय शक्तिहीन मुग़ल सम्राट का संरक्षक उसका शक्तिशाली रूहेला वज़ीर नजीबुद्धोला था, जिसे अहमदशाह अब्दाली का भी समर्थन प्राप्त था। वह जाटों का कट्टर बैरी था। उसने मुग़ल सम्राट की ओर से जाट राजा की इस माँग को ठुकरा दिया। सूरजमल ने अपने अधिकार को स्वीकृत कराने के उद्देश्य से अपनी सेना को दिल्ली चलने का आदेश किया। रूहेला वज़ीर भी जाटों का सामना करने की तैयारी करने लगा। उसने अहमदशाह अब्दाली और अन्य रूहेले सरदारों के पास संदेश भेजकर सहायतार्थ दिल्ली आने का निमन्त्रण भेजा। फिर उसने चारों ओर के फाटक बंद करा कर उसकी समुचित रक्षा के लिए शाही सेना को तैनात कर दिया। जाट सेना ने दिल्ली पहुँच कर उसे चारों ओर से घेर लिया।

सूरजमल की मृत्यु

रूहेला वज़ीर अब्दाली की सेना आने तक युद्ध को टालना चाहता था; किंतु सूरजमल इसके लिए तैयार न था। जाटों की सेना दिल्ली के निकट यमुना और हिंडन नदियों के दोआब में एकत्र थी और शाही सेना दिल्ली नगर की चारदीवारी के अंदर थी। सूरजमल की सेना की एक टुकड़ी ने दिल्ली पर गोलाबारी आरंभ कर दी। जवाब देने के लिए शाही सेना को भी बाहर आकर मोर्चा जमाना पड़ा; किंतु उन्हें जाटों की मार के कारण पीछे हटना पड़ा। उसी समय सूरजमल ने केवल 30 घुड़सवारों के साथ शत्रु की सेना में घुसने की दुस्साहसपूर्ण मूर्खता कर डाली और व्यर्थ में ही अपनी जान गँवानी पड़ी। सूरजमल की मृत्यु अचानक और अप्रत्याशित ढंग से हुई। एक विवरण के अनुसार सूरजमल अपने कुछ घुड़सवारों के साथ युद्ध स्थल का निरीक्षण कर रहा था कि अचानक ही वह शत्रु सेना से घिर गया। उसने अपने मुट्ठी भर सैनिकों से एक बड़ी सेना का सामना किया और वीरता पूर्वक युद्ध करता हुआ मारा गया।<balloon title="(हिस्ट्री ऑफ दि जाट्स, पृष्ठ 155)" style="color:blue">*</balloon> उसकी मृत्यु सं. 1820 (ता. 25 दिसंबर सन 1763 रविवार) में हुई थी। उस समय उसकी आयु 55 वर्ष की थी।

सूरजमल का मूल्यांकन

ब्रज के जाट राजाओं में सूरजमल सबसे प्रसिद्ध शासक, कुशल सेनानी, साहसी योद्धा और सफल राजनीतिज्ञ था। उसने जाटों में सब से पहले राजा की पदवी धारण की थी; और एक शक्तिशाली हिन्दू राज्य का संचालन किया था। उसका राज्य विस्तृत था, जिसमें डीग−भरतपुर के अतिरिक्त मथुरा, आगरा, धौलपुर, हाथरस, अलीगढ़, एटा मैनपुरी, गुडगाँव, रोहतक, रेवाड़ी, फर्रूखनगर और मेरठ के ज़िले थे। एक ओर यमुना से गंगा तक और दूसरी ओर चंबल तक का सारा प्रदेश उसके राज्य में सम्मिलित था। सूरजमल की सेना विशाल थी। उसमें 60 हाथी, 500 घोड़े, 1500 अश्वारोही, 25000 पैदल और 300 तोपें थीं। अपनी मृत्यु के समय उसने लगभग 10 करोड़ रूपया राजकोश में छोड़ा था ।<balloon title="(ब्रजभारती वर्ष 13 अंक 2 )" style="color:blue">*</balloon>


शिकार खेलते हुए
During Hunting

सूरजमल ब्रजभाषा साहित्य का प्रेमी और कवियों का आश्रयदाता था। उसके दरबार में अनेक कवि थे, जिनमें सूदन कवि का नाम प्रसिद्ध था। सूरजमल की कई रानियाँ थी; जिनमें किशोरी और हंसा प्रमुख थीं। उसके 5 पुत्र थे, जिनके नाम निन्नांकित हैं −

  1. जवाहर सिंह
  2. रतन सिंह
  3. नवल सिंह
  4. रणजीत सिंह और
  5. नाहर सिंह।

सूरजमल के बाद जवाहर सिंह जाटों का राजा हुआ। जाटों की आरंभिक राजधानी डीग थी; किंतु सूरजमल ने भरतपुर के कच्चे किले को पक्का बनाकर वहाँ अपनी राजधानी बनाई थी।


टीका-टिप्पणी

  1. देस देस तजि लच्छमी, दिल्ली कियौ निवास।
    अति अधर्म लखि लूट मिस, चली करन ब्रज−वास ।।
    अथवा−कलि क आदि क्रूर मघवा ने ब्रज पर कोप जनायौ है।
    वही अकस धरि श्री ब्रजेश−सुत, इन्द्रपुरहि लुटवायौ है।।"।