मीरां
मीरांबाई / मीराबाई
मीरां
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पूरा नाम | मीराबाई |
अन्य नाम | मीरांबाई |
जन्म | 1498 |
जन्म भूमि | मेरता, राजस्थान |
मृत्यु | 1547 |
पति/पत्नी | कुंवर भोजराज |
कर्म भूमि | वृन्दावन |
मुख्य रचनाएँ | बरसी का मायरा, गीत गोविंद टीका, राग गोविंद, राग सोरठ के पद |
विषय | कृष्णभक्ति |
भाषा | ब्रजभाषा |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
प्रसिद्ध कृष्ण-भक्त कवयित्री मीराबाई जोधपुर के मेड़वा राजकुल की राजकुमारी थीं। इनकी जन्म-तिथि के संबंध में मतैक्य नहीं है। कुछ विद्वान् इनका जन्म 1430 ई. मानते हैं और कुछ 1498 ई.। मीरा का जीवन बड़े दु:ख में बीता। बाल्यावस्था में ही मां का देहांत हो गया। पितामह ने देखभाल की परंतु कुछ वर्ष बाद वे भी चल बसे। मीरांबाई कृष्ण-भक्ति शाखा की प्रमुख कवयित्री हैं । उनके पिता का नाम रत्नसिंह था। उनके पति कुंवर भोजराज उदयपुर के महाराणा सांगा के पुत्र थे। विवाह के कुछ समय बाद ही उनके पति का देहांत हो गया।
पति की मृत्यु के बाद उन्हें पति के साथ सती करने का प्रयास किया गया किन्तु मीरां इसके लिये तैयार नहीं हुई। मेवाड़ का शासन भोजराज के सौतेले भाई के हाथ में आया, जिसने हर प्रकार से मीरा को सताया। वे संसार की ओर से विरक्त हो गयीं और साधु-संतों की संगति में हरिकीर्तन करते हुए अपना समय व्यतीत करने लगीं। कुछ समय बाद उन्होंने घर का त्याग कर दिया और तीर्थाटन को निकल गईं। मीरा बचपन से ही आध्यात्मिक विचारों के विपरीत थीं व परिस्थितियों ने उन्हें और भी अंतर्मुखी बना दिया। उन्होंने चित्तौड़ त्याग दिया और संत रैदास की शिष्या बन गयीं। वे बहुत दिनों तक वृन्दावन में रहीं और फिर 1543 ई. के आसपास वे द्वारिका चली गई और जीवन के अंत तक वहीं रही। उनका निधन 1563 और 1573 ई. के बीच माना जाता है। जहाँ संवत 1547 ईस्वी में उनका देहांत हुआ । इनके जन्म को लेकर कई मतभेद रहे हैं।
मीरांबाई ने कृष्ण-भक्ति के स्फुट पदों की रचना की है। ये बचपन से ही कृष्णभक्ति में रुचि लेने लगी थीं । मीरा के कृष्ण-भक्ति के पद बहुत लोकप्रिय हैं। हिन्दी के साथ-साथ राजस्थानी और गुजराती में भी इनकी रचनाएं पाई जाती हैं। हिन्दी के भक्त-कवियों में मीरा का स्थान बहुत ऊंचा है।
रचित ग्रंथ
मीरांबाई ने चार ग्रंथों की रचना की–
- बरसी का मायरा
- गीत गोविंद टीका
- राग गोविंद
- राग सोरठ के पद
इनकी एक रचना इस प्रकार हैं- पायो जी म्हें तो राम रतन धन पायो । |
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