शहद
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परिचय
शहद (मधु) हर किसी के जीवन में महत्व रखता है। फिर चाहे वह खानपान, चिकित्सा से संबंधित हो या फिर सौंदर्य से। इसमें प्रचुर मात्रा में गुण हैं। आज से हजारों वर्ष पहले से ही दुनिया के सभी चिकित्सा शास्त्रों, धर्मशास्त्रों, वैधों-हकीमों ने शहद की उपयोगिता व महत्व को बताया है। आयुर्वेद के ऋषियों ने भी माना है कि तुलसी व मधुमय पंचामृत का सेवन करने से संक्रमण नहीं होता और इसका विधिवत ढंग से सेवन कर अनेक रोगों पर विजय पाई जा सकती है। इसे पंजाबी भाषा मे माख्यों भी कहा जाता है। शहद तो देवताओं का भी आहार माना जाता रहा है। कहते हैं कि महापराक्रमी दैत्य महिषासुर के साथ युद्ध करते समय जगन्माता चंडिका ने बार-बार शहद का पान करके दैत्य का वध किया था।
मधु या शहद मानव को प्रकृति का अनमोल वरदान है। शहद में खास गुण यह है कि वह कभी खराब नहीं होता। प्राचीनकाल में मधुमक्खियों द्वारा फूलों के रस से प्राकृतिक रूप से तैयार मधु ही एकमात्र मिष्ठान्न का ज्ञात स्रोत था और यही सभी धार्मिक रीति-रिवाजों, सामाजिक कार्यक्रमों, प्रत्येक धर्म एवं समाज में प्रमुख रूप से प्रयोग में लाया जाता था। आयुर्वेद में इसका काफी प्रयोग हुआ है। शहद में सदा उपयोगी एवं शुध्द बने रहने का गुण विद्यमान है। ज्यों-ज्यों यह पुराना पडता जाता है, गुणवत्ता बढती जाती है। 1923 ई. में मिस्त्र के फराओ नूनन खामेन के पिरामिड में रूसी वैज्ञानिक को एक शहद से भरा पात्र मिला। उस समय हैरत में डाल देने वाली बात यह थी कि यह शहद 3300 वर्ष पुराना होने के बावजूद खराब नहीं हुआ था। उसके स्वाद और गुण में कोई अंतर नहीं आया था।
मधुमक्खियाँ
आज के वैज्ञानिक युग में भी शहद का बनना मानवी बुध्दि से परे हैं, शहद बनाने का गुण प्रकृति ने केवल मधुमक्खियों को ही प्रदान किया है। शहद को शहद की मक्खियां / Honey Bee बनाती है। इनका जो घर होता है, उस को छत्ता कहते है, इन छत्तों मे मधुमक्खियाँ रहती है। मधुमक्खियों के जीवन की 4 अवस्थाये अंडा, लार्वा, प्यूपा, वयस्क मक्खी होती है। ये मधुमक्खियाँ निम्न प्रकार की होती है - 1. श्रमिक 2. नर 3. रानी । रानी मधुमक्खी आकार मे सबसे बड़ी होती है। एक छत्ते मे एक ही या ज्यादा होती है ये अंडे देती है। जिन अण्डों को नर निषेचित करते है। यदि रानी मधुमक्खी को पकड़ ले तो शाही सैनिक और श्रमिक मक्खियाँ आक्रमण कर देंगी परन्तु छत्ते मे रानी मधुमक्खी को ढूँढना आसान काम नहीं है।
एक मधुमक्खी को एक पौंड शहद बनाने का लिए तीन-चार सौ पौंड पुष्परस इकट्ठा करना पडता है। अपने भार का आधे वजन का पुष्परस लादे उन्हें 4000 मील की यात्रा करनी पडती है। मधु या शहद एक मीठा, चिपचिपाहट वाला अर्ध तरल पदार्थ होता है जो मधुमक्खियों द्वारा पौधों के पुष्पों में उपस्थित मकरन्द के कोशों से निकलने वाले मकरंद जिसे नेक्टर नाम का रस भी कहते है, से तैयार किया जाता है और आहार के रूप में छत्ते की कोठियों मे संग्रह किया जाता है। मधुमक्खी के पेट मे एक थैलीनुमा संरचना होती है जो एक वाल्व से जुडी होती है। मधुमक्खी अपनी जीभ की सहायता से फूल की नली में विद्यमान पुष्परस की छोटी मात्रा चुस्ती है और इस मधु संग्रही थैली मे एकत्र करती रहती है और छत्ते मे आकर इस रस को वाल्व के द्वारा मधुकोशों मे उगल देती है। और मकरंद मे जो पानी होता है वो वाष्पीकरण के द्वारा उड़ जाता है और बाकी पदार्थ रासायनिक क्रिया के फलस्वरूप शहद मे बदल जाता है। मधुमक्खी दिनभर जिस पुष्परस को इकट्ठा करती जाती है उसे मधु के रूप में बदलने के लिए सक्रिय रहती है। पी.ई. नेरिस (प्रसिध्द रसायनविद) के अनुसार मधु मात्र पुष्परसों का संग्रह ही नहीं है, वरन यह मधुमक्खी का श्रमतत्व ही है, जिसको पाकर पुष्परस मधुरस के रूप में परिणित हो जाता है। इसे गाढा बनाने के लिए अपने सिर को भीतर की ओर उसके द्वारों पर डैनों से पंखा किया करती है। इस मेहनत के कारण ही छत्तों के आसपास मधुर-मधुर गुंजन सुनाई पडता है, जो अच्छा भी लगता है।
शहद इकठ्ठा करने के लिए मधुमक्खियों को बहुत ही परिश्रम करना पड़ता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि मधुमक्खियां अपने छत्ते के सभी खानों को महीनों में भर पाती हैं। मधुमक्खी के फूलों पर बैठने से परागण जैसी महत्वपूर्ण क्रिया सम्पन्न हो जाती है और मधुमक्खियों को बदले मे मिला मीठा रस जो की वो अपने और अपने बच्चों के लिए सुरक्षित रखती है को ही मनुष्य और अन्य जीव खाते है। वास्तव मे शहद मधुमक्खियों के बच्चों और उन का भविष्य का संचित आहार है। मनुष्य व जानवरों बंदर और भालू आदि ने शहद को अपने आहार मे शामिल कर लिया है। यह शहद यदि सूक्ष्मदर्शीय अध्ययन से गुज़ारे तो हमे इस के अंदर परागकण भी दिखते है। शहद के लिए यदि मधुमक्खियाँ गन्ने के रस पर बैठे तो रस से बना शहद सर्दियों मे जम जाता है, उस मे शूगर की मात्रा ज्यादा होगी।
शहद के तत्व (घटक)
मधु गाढ़ा, चिपचिपा, हल्के भूरे रंग का, अर्द्ध पारदर्शक, सुगन्धित, मीठा तरल पदार्थ है। शहद विभिन्न प्रकार का होता है इनमें यह वर्गीकरण प्रायः उन मधुमक्खियों द्वारा मधुरस एकत्रित किये जाने वाले प्रमुख स्रोतों के आधार पर होता है। इसके अतिरिक्त शहद के संसाधन और शोधन की प्रक्रिया के आधार पर भी किया जाता है। शहद के विशिष्ट तत्वों का संयोजन उसे बनाने वाली मधुमक्खियों पर व उन्हें उपलब्ध पुष्पों पर निर्भर करता है। एक किलोग्राम शहद से लगभग 5500 कैलोरी ऊर्जा मिलती है। एक किलोग्राम शहद से प्राप्त ऊर्जा के तुल्य दूसरे प्रकार के खाद्य पदार्थो में 65 अण्डों, 13 कि.ग्रा. दूध, 8 कि.ग्रा. प्लम, 19 कि.ग्रा. हरे मटर, 13 कि.ग्रा. सेब व 20 कि.ग्रा. गाजर के बराबर हो सकता है।
शहद मे बहुत से पोषक तत्व होते है जैसे - फ्रक्टोज 38.2%, ग्लूकोज़: 31.3%, सकरोज़: 1.3%, माल्टोज़: 7.1%, जल: 17.2%, उच्च शर्कराएं: 1.5%, भस्म: 0.2%, अन्य: 3.2% । वैज्ञानिकों ने यह सिध्द कर दिया है कि शहद पौष्टिक तत्वों से युक्त शर्करा और अन्य तत्वों का मिश्रण होता है, इसमे अमीनो एसिड, कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन, आहारीय रेशा और लोहा, तांबा, मैगनीज, पोटेशियम, सोडियम, फारफोरस, कैल्शियम जैसे मानव स्वास्थ्य के लिए उपयोगी खनिज लवणों के साथ ही बहुमूल्य विटामिन - राइबोफ्लेविन, विटामिन B6 , फोलेट, विटामिन C भी उपलब्ध हैं। शहद में विभिन्न अन्य यौगिक भी होते हैं जो एंटीऑक्सीडेंट्स का कार्य करते हैं। सामान्यतः शहद कुछ विशेष चीनीयुक्त क्षार पदार्थों तथा धातु पदाथों का सम्मिश्रण होता है, किन्तु इसकी 75 प्रतिशत चीनी वह नहीं है, जो गन्ना मिलों द्वारा उत्पादित की जाती है। दो प्रकार की चीनी और खोजी गई है - (1) ग्लूकोज अंगूरी, (2) फलों के रस से उत्पादित फ्रक्टोज शर्करा। इन चीनियों का कोई हानिकारक प्रभाव रोगी पर नहीं पडता, जबकि सामान्य चीनी उनके लिए हानिप्रद हुआ करती है। मधु में मिलने वाली अंगूरी शर्करा बहुत आसानी से पचने वाली होती है।
शहद मैं जो मीठापन होता है वो उसमें पाए जाने वाली शर्करा (शुगर) मुख्यतः ग्लूकोज़ और फ्रक्टोज शुगर के कारण होता है, जिसकी मात्रा 70 से 80 प्रतिशत है। इस शर्करा में ग्लूकोस और फ्रुक्टोस बराबर अनुपात में पाया जाता है। ये तत्व सीधे रक्त में शोषित होकर तुरंत ऊर्जा प्रदान करते हैं। प्रोटीन्स और अमीनो एसिड तत्व मुख्यतः पौधों से प्राप्त होते हैं। इनकी मात्रा विभिन्न प्रकार के शहद में अलग- अलग होती है। शहद में यूँ तो कई प्रकार के ऐसे विटामिन्स पाए जाते हैं, जो मनुष्य के लिए अल्प महत्व के होते हैं, परंतु वे शहद के अन्य तत्वों के साथ मिलकर एक पूरक आहार का काम करते हैं। विटामिन बी-कॉम्प्लेक्स, जो विभिन्न विटामिन्स का समूह है, वह भी इसमें मिलता है। यह भूख को बढ़ाने में सहायक है तथा मानव के नाड़ी-तंत्र को दृढ़ता प्रदान करता है। शहद में एंजाइम्स का उद्गम, काम करने वाली मादा मधु मक्खियों की ग्रंथियों का स्त्राव है। यह फूलों के रस के शहद में परिवर्तित होने के समय उसमें मिल जाते हैं। एंजाइम्स पाचन क्रिया को बढ़ाते हैं। लगभग 11 खनिज (मिनरल्स) एवं 17 आंशिक तत्व सामान्य शहद में पाए जाते हैं। इन खनिजों की मात्रा शहद के प्रकार पर निर्भर करती है। गहरे रंग के शहद में खनिज की मात्रा हल्के रंग की तुलना में अधिक होती है।
- शहद का न्यूट्रीशनल वैल्यू चार्ट
100 ग्राम शहद में - एनर्जी - 300 किलो कैलरी / 1270 किलो जुलियन, 82.4 ग्राम कार्बोहाइड्रेट्स, 82.12 ग्राम चीनी, 0 ग्राम वसा, 0.3 ग्राम प्रोटीन, 17.10 ग्राम पानी
शहद का भोजन में उपयोग
शहद जैसा उपयोगी, गुणकारी, पौष्टिक एवं सुपाच्य दूसरा आहार नहीं है। जहा तक संभव हो अच्छे स्वास्थ के लिए इसका सेवन किया जाये। शहद को चिकित्सा विज्ञान द्वारा भी एक पौष्टिक आहार माना गया है। शहद भोजन में अनेक प्रकार से उपयोग में लाया जाता रहा है। यह सभी आयु वर्ग के लोगों के लिए श्रेष्ठ आहार माना जाता है। यह एक ऊष्मा व ऊर्जा से भरपूर आहार है और दूध के साथ इसका सेवन इसे एक पौष्टिक व सम्पूर्ण आहार बनाता है। शहद को दूध, पानी, दही, मलाई, चाय, टोस्ट, रोटी, सब्जी, फलों का रस, नींबू आदि किसी भी वस्तु में मिलाकर स्वादिष्ट भोजन का आनंद ले सकते हैं। शहद को गर्म नही करना चाहिए इससे शहद के गुण समाप्त हो सकते हैं इसको हल्के गरम दूध या जल में मिला कर सेवन करने से लाभ होता है। शहद में पाई जाने वाली शर्करा आसानी व शीघ्रता से पच जाती है। आंतों के ऊपरी भाग में शहद जल्दी ही अपना प्रभाव दिखाता है। शहद का एक प्रमुख लाभ उसके पूर्ण-पाच्य गुण में है, जिससे एक शिशु भी इससे सीधा लाभ उठा सकता है। इसके नियमित सेवन से खोई हुई शक्ति तुरंत प्राप्त करने में सहायता मिलती है। शेरपा तेनजिंग भी नियमित शहद का सेवन करते थे।
शहद का औषधियें गुण
प्राचीनकाल से ही विभिन्न प्रकार के रोगों में शहद से उपचार की विधि प्रचलित है। चोट लगने पर, जलने पर घावों को ठीक करने में यह एक रामबाण मल्हम का काम करता है। आयुर्वेद में तो शहद कई औषधियों का आधार है। सरलता से पच जाना तथा कोई विपरीत प्रभाव न पड़ना, इसका सबसे अच्छा पक्ष है। देशी उपचार की विधियों में शहद का प्रयोग बाह्य एवं आंतरिक रोगों में प्रमुखता से किया जाता है। बच्चों के दाँत निकलने से लेकर युवाओं की त्वचा की देखभाल तथा वृद्धों की तंदुरुस्ती तक के लिए शहद महत्वपूर्ण है।
शहद का प्रयोग औषधि रूप में भी होता है। जिससे कई पौष्टिक तत्व मिलते हैं जो घाव को ठीक करने और ऊतकों के बढ़ने के उपचार में मदद करते हैं। प्राचीन काल से ही शहद को एक जीवाणु-रोधी (एंटीबैक्टीरियल) के रूप में जाना जाता रहा है। शहद एक हाइपरस्मॉटिक एजेंट होता है जो घाव से तरल पदार्थ निकाल देता है और शीघ्र उसकी भरपाई भी करता है और उस जगह हानिकारक जीवाणु भी मर जाते हैं। जब इसको सीधे घाव में लगाया जाता है तो यह सीलैंट की तरह कार्य करता है और ऐसे में घाव संक्रमण से बचा रहता है। शहद के प्रयोग से शरीर की सूजन और दर्द भी दूर हो जाते हैं।
शहद एक उत्तम पूरक आहार है। इसके गुणों के बारे में आयुर्वेद में भी लिखा गया है। थकान के समय यदि शहद का उपयोग किया जाए तो तत्काल राहत मिलती है। शहद रक्त में हीमोग्लोबिन निर्माण में सहायक होता है और रक्त को शुद्ध करता है। यह खून के लाल अणु और हीमोग्लोबिन की संख्या में उचित तालमेल बैठाए रहता है। इसके नियमित सेवन से एनीमिया दूर हो जाता है। इसमें विटमिन बी और विटमिन सी तो होते ही हैं, इसमें एंटीऑक्सीडेंट तत्व भी पाए जाते हैं, जो हमारी रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढाने में सहायक होते हैं। शहद को मोटापा घटाने के लिए भी उपयोग किया जाता है। सुबह उठकर गुनगुने पानी में नीबू के साथ शहद का उपयोग करने पर मोटापा घटता है।
शहद श्रम की परिणति होने के कारण पौष्टिक, सुपाच्य और दुर्बलता को सरलता से दूर करने वाला है। कठिन शारीरिक श्रम करने वालों को शक्ति देता है और स्फूर्तिवान बनाता है। यह आमाशय में जाते ही सरलता से पच जाता है। पाचनतंत्र को अतिरिक्त श्रम नहीं करना पडता। औषधि के रूप में शहद की आयुर्वेद में प्रशंसा की गई है। इसका श्रेष्ठ अनुपात हानिरहित, मृदु, कफनाशक और जीवनीशक्ति बढाने वाला है। इसमें उत्कृष्ट कोटि का अल्कोहल और इथीरियल ऑयल होता है, जो कि श्वास फूलने, दमे के रोग और उसके तीव्र प्रकोप में लाभदायक पाया गया है। टाइफाइड, निमोनिया जैसे रोगों में यह लीवर और आंतों की कार्यक्षमता को बढाता है। फोडे-फुंफ्सियों, जहरीले घाव, फफोले आदि में इसका उपयोग यूरोप जैसे देशों में किया जाता है। प्रयोग के आधार पर देखा गया है कि गहरे घावों पर मधु की पट्टी बांध देने पर घाव आसानी से भर जाता है और किसी प्रकार के इंफेक्शन का डर नहीं रहता।
मधु हर आयु वर्ग के लिए उत्कृष्ट कोटि का टॉनिक भी है। प्रसिध्द डॉ. केलोग के अनुसार छोटे बच्चे जिनका शारीरिक विकास ठीक ढंग से हो नहीं पाता, इसे दूध के साथ पिलाने से शारीरिक विकास सहज ही हो जाता है। वृध्दावस्था में ठंड अधिक सताती है, ऐसे व्यक्ति भी यदि दूध के साथ इसका सेवन करें तो शरीर में शीघ्र ही गर्मी आ जाती है। मोटापा, कब्ज और रक्त की कमी में शहद का शरबत कुछ ही दिनों में लाभ पहुंचाता है। पौष्टिक तत्वों के अतिरिक्त मधु में एक चमत्कारी गुण यह भी होता है कि किसी भी बीमारी के कीटाणु मधु के संपर्क में आते ही या तो जीवनहीन हो जाते हैं अथवा गतिहीन। मधु उन समस्त बीमारियों में उपयोगी पाया गया है जो किसी प्रकार के किटाणु द्वारा उत्पन्न होती है। वैद्यक ग्रंथों में कहा गया है कि मधुमय पंचामृत पान करने से राजयक्ष्मा (टीबी) से बचाव होता है। यह हृदय उत्तेजक मात्र नहीं होता, वरन उसको ऊष्मा देने वाला घटक होता है।
नींबू पानी में शहद मिलाकर पीने से कब्ज की समस्या से निजात मिलती है। इसका सेवन त्वचा के रोगों से निजात दिलाता है। त्वचा पर निखार लाने के लिए भी यह गुणकारी तत्व है। गुलाब जल मे नींबू और शहद मिलाकर चेहरे पर लगाने से त्वचा मुलायम एवं कोमल बनती है। शहद के नियमित सेवन से शरीर स्वस्थ रहता है। इसकी उचित मात्रा शरीर को स्वस्थ, सुंदर एवं बलवान बनाती है।
बाजार का शहद
आजकल चीन से आयातित शहद और मुनाफा कमाने मे अंधी कम्पनीयों के एक घपले को उजागर किया गया है जिसमे सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (C.S.E.) के शोध के अनुसार बाजार में बिक रहे बड़ी-बड़ी कम्पनीयों के शहद में प्रतीजैवीक एंटी-बायोटिक्स की मात्रा अंतर्राष्ट्रीय मानकों से दोगुना तक मिली है। ऐसे शहद को अगर लगातार खाया जाता है तो हमारे शरीर के एंटी बायटिक के प्रति रजीस्ट बनने का खतरा हो जाएगा। और बिना जरूरत के इन प्रतीजैवीक पदार्थों के शरीर मे जाने से जो साइड इफेक्ट्स होंगे वो भी खतरनाक होंगे। इनके दवारा जांचे गए शहद में एजिथ्रोमाइसिन, सिप्रोफ्लॉक्सेसिन और ऑक्सीटेट्रासाइक्लिन, क्लोरैंमफेनिकल, एंफीसिलीन आदि प्रतिजैविक पदार्थ पाए गए। यह प्रतीजैवीक शहद मे आते कहाँ से है जब मधु पालन के छत्तों मे इनको बीमारी से बचने के लिए इन प्रतिजैविक का प्रयोग किया जाता है तब ये शहद मे आते है ठीक उसी प्रकार जैसे गाय भैंस को बीमार होने पर प्रतिजैविक का कोर्स दिया जाता है तो उनके दूध मे भी प्रतिजैविक का असर आ जाता है इस दूध को पीने वाले के शरीर मे अनायास ही ये एंटीबायोटिक चले जाते है और हानि करते है।
शुद्ध शहद
शुद्ध शहद को जब धार बना कर छोड़ा जाता है। तो वह सांप की तरह कुंडली बना कर गिरता है जबकि नकली फ़ैल जाता है।
मधुमक्खी पालन
जो लोग मधुमक्खी पालन का व्यवसाय करते हैं उन्हें मधुमक्खी नहीं काटती क्याकि वह शहद निकलते हुए विशेष कपडे पहनते हैं। जिसके कारण मधुमक्खी उनको काट नहीं पाती हैं। इसी समय में पालनकर्ता उनके स्वभाव को जनता है तथा कोई ऐसा काम ही नहीं करता है की मधुमक्खी को काटने की जरूरत पड़े। सर एडमंड हिलेरी स्वयं मधुमक्खी पालक थे। मधुपालन में कोई कठिनाई नहीं है। इसके बारे में थोड़ी जानकारी ही पर्याप्त है।
मधुमक्खी के एक छत्ते में कितना शहद निकलता है और पूरा भरा हुआ छत्ता कितने दिन में बन जाता है? प्राकृतिक छत्ते का तो पता नही, लेकिन एक मधुमक्खी पालक के अनुसार यह दो बातों पर निर्भर करता है। 1. फूलों की उपलब्धता पर, वर्ष के सभी महीनों मे फूलों की उपलब्धता एक समान नहीं होती है। 2. मौसम की अनुकूलिता पर, अनुकूल मौसम यानी उस स्थान का जहां मधुमक्खी पाली गयी है। वैसे मधुमक्खी पालक के अनुसार जहां उस ने पाली है वहाँ वह साल मे 3-3 महीनों मे दो बार यील्ड लेता है।
शहद की उपयोगिता
- बच्चों को एक चम्मच पानी में दो बूंद शहद मिलाकर चटाने से उनकी ग्रोथ अच्छी होती है और वे सेहतमंद रहते हैं।
- शहद, अदरक और तुलसी के पत्तों का रस बराबर मात्रा में मिलाकर चाटने से जुकाम में राहत मिलती है।
- पूरे परिवार की सेहत के लिए बादाम भिगोकर दूध में पीस लें और उसे सबको एक चम्मच शहद में मिलाकर खिलाएं।
- एक बडे चम्मच शहद में एक बडी इलायची पीसकर मिलाकर पीने से पेट दर्द में राहत मिलती है।
- लगातार हिचकी आ रही हो तो शहद चाटें।
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