आदित्यवार

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  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • आदित्यवार जब कुछ तिथियों, नक्षत्रों एवं मासों में युक्त होता है, तो इस वार के बारह नाम होते हैं।
  • माघ शुक्ल पक्ष की षष्ठी को यह नन्द कहलाता है, जबकि इस दिन में व्यक्ति केवल रात्रि में ही खाता (नक्त) है।
  • सूर्य प्रतिमा पर घी से लेप करना चाहिए, और अगस्ति वृक्ष के फूल, श्वेत चन्दन, गुग्गुलु-धप एवं अपूप (पूआ) का नैवेद्य चढ़ाते हैं।[1]
  • भाद्रपद शुक्ल पक्ष में यह रविवार भद्र कहलाता है।
  • उस दिन उपवास या केवल रात्रि में ही भोजन किया जाता है।
  • दोपहर को मालती-पुष्प, चन्दन एवं विजय धूप चढ़ायी जाती है।[2]
  • मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की षष्ठी को इसे कामद कहते हैं।
  • दक्षिणायन में रविवार को इसे जय कहते हैं।
  • उत्तरायण में रविवार को इसे जयन्त कहते हैं।
  • शुक्ल पक्ष की सप्तमी को रौहिणी के साथ रविवार हो तब इसे विजय कहते हैं।
  • रौहिणी या हस्त के साथ रविवार हो तब इसे पुत्रद कहते हैं।
  • इस दिन उपवास एवं पिण्डों का श्राद्ध किया जाता है।
  • माघ कृष्ण पक्ष की सप्तमी को रविवार हो तब इसे आदित्याभिमुख कहते हैं।
  • इसमें एकभक्त रहकर प्रातः से सायं तक महाश्वेता मन्त्र का जप करना चाहिए।
  • संक्रान्ति के साथ रविवार हो तब इसे हृदय कहते हैं।
  • इसमें नक्त रहकर सूर्य देवता के मन्दिर में सूर्याभिमुख होना चाहिए। और आदित्यहृदय मन्त्र का 108 बार जप करना चाहिए।
  • पूर्वाफाल्गुनी को रविवार हो तब इसे रोगहा कहते हैं।
  • इस दिन अर्क के दोने में एकत्र किए हुए अर्क और फूलों से पूजा करनी चाहिए।
  • रविवार एवं सूर्यग्रहण के दिन इसे महाश्वेताप्रिय कहते हैं।
  • इस दिन उपवास और महाश्वेता का जप करते हैं।
  • महाश्वेता मन्त्र है—"ह्रीं ह्रीं स इति"[3]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हेमाद्रि व्रतखण्ड 2, 522-23);
  2. हेमाद्रि व्रतखण्ड (2, 523-524), कृत्यकल्पतरु (व्रतखण्ड 12-13
  3. हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 521), कृत्यकल्पतरु (व्रतखण्ड 12-23), हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 524-28)।