जल यातायात
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जल यातायात किसी भी देश को सबसे सस्ता यातायात प्रदान करता है क्योंकि इसके निर्माण में परिवहन मार्गो का निर्माण नहीं करना पड़ता और केवल परिवहन के साधनों से ही यातायात किया जाता है। इतना अवश्य है कि इसके लिए प्राकृतिक अथवा कृत्रिम जलपूर्ण मार्ग आवश्यक होते हैं। हमारे देश में आन्तरिक एवं सामुद्रिक दोनों प्रकार का जल परिवहन किया जाता है। आन्तरिक जल परिवहन की दृष्टि से देश में प्राचीनकाल से ही नदियों के माध्यम से यातायात किया जाता था। वर्तमान में देश में लगभग 14,500 किमी लम्बा नौगम्य जलमार्ग है, जिसमें नदियाँ, नहरें, अप्रवाही जल यथा झीलं आदि संकरी खड़ियाँ शामिल हैं। देश की प्रमुख नदियों में 3,700 किमी लम्बे मार्ग का ही उपयोग किया जा रहा है। जहाँ तक नहरों का प्रश्न हैं, 4,300 किमी लम्बी नौगम्य नहरों से मात्र 900 किमी तक की दूरी की नौकाओं द्वारा परिवहन के उपयुक्त है। वर्तमान में आन्तरिक जल परिवहन के माध्यम से लगभग 160 लाख टन माल की ढुलाई प्रतिवर्ष की जा रही है।
राष्ट्रीय जलमार्ग
आज भी देश की गंगा, हुगली, यमुना, ब्रह्मपुत्र, नर्मदा, ताप्ती, माण्डवी, गोदावरी, कृष्णा, महानदी आदि नदियों द्वारा आन्तरिक जलमार्ग की सुविधा उपलब्ध कराई गयी है। गंगा-भागीरथी-हुगली नदी प्रणाली के हल्दिया-इलाहाबाद खण्ड को 22 अक्टूबर 1986 को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित[1] किया जा चुका है, जिसके विकास एवं प्रबन्धन का पूर्ण दायित्व केन्द्र सरकार के हाथों में हैं। इसके लिए सम्पूर्ण मार्ग को 3 उपखण्डों में बाँटा गया है।
- हल्दिया-फरक्का
- फरक्का-पटना
- पटना-इलाहाबाद
नौगम्य नहरों की दृष्टि से ऊपरी गंगा नहर [2], निचली गंगानहर [3], कुर्नूल-कुडप्पा नहर [4], बंकिघम नहर [5]., केरल की पश्चिम तटीय नहर [6], उड़ीसा में केन्द्रपाड़ा नहर (120 किमी), तलदाना नहर (90 किमी), उड़ीसा तटीय नहर (15 किमी) आदि महत्वपूर्ण है।
26 दिसम्बर, 1980 को ब्रह्मपुत्र नदी [7], की सादिया-धुबरी सीमा को राष्ट्रीय जलमार्ग सं. 2 घोषित किया गया है। सरकार द्वारा पश्चिमी तटीय नहर (केरल), के कोल्लम-कोट्टपुरम क्षेत्र को तथा चम्पकारा एवं उद्योगमण्डल नहरों को भी राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने का फैसला किया गया है।
अन्तर्देशीय जलमार्गों का विकास
भारत के अन्तर्देशीय जलमार्गों के विकास, रख-रखाव तथ नियमन के लिए 27 अक्टूबर, 1986 को भारतीय अन्तर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण की स्थापना की गयी। 1987 में केन्द्रीय अन्तर्देशीय जल परिवहन निगम की स्थापना सार्वजनिक क्षेत्र के एक संस्थान के रूप में की गयी। इसका मुख्यालय कोलकाता में हैं। इसके द्वारा बांग्लादेश होकर कोलकाता तथा असम के बीच एवं इल्दिया-पटना जलमार्ग की परिवहन सेवाओं का प्रबन्धन किया जाता है।
जलमार्ग | कहाँ से कहाँ तक | दूरी (किमी) |
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एन.डब्ल्यू-1 | इलाहाबाद से हल्दिया | 1,629 |
एन.डब्ल्यू-2 | बांग्लादेश सीमा से सादिया | 891 |
एन.डब्ल्यू-3 | कोट्टापुरम से कोल्लम | 205 |
एन.डब्ल्यू-4 | काकीनाडा से मरक्कानम | 1,100 |
देश की अधिकांश नदियाँ वर्षा काल के अतिरिक्त समय में प्रायः जल की अल्पता का शिकार हो जाती है, जिसके कारण उनमें परिवहन का कार्य रुक जाता है। भारत सरकार के भूतल परिवहन मन्त्रालय द्वारा कराये गये सर्वेक्षण के अनुसार देश में 10 नदी मार्ग ऐसे हैं, जहाँ वर्ष भर पर्याप्त मात्रा में जल उपलब्ध रहता है। ऐसे नदी मार्गो को ही राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया गया है। ऐसी सुविधा वाली प्रमुख नदी घाटियाँ गोवा, महानदी, गोदावरी, नर्मदा, कृष्णा, ताप्ती तथा पश्चिमी तट एवं सुन्दर वन क्षेत्र में विद्यमान हैं। इनमें से 3 राष्ट्रीय जलमार्ग इस समय क्रियाशील हैं -
- गंगा (भागीरथी) - हुगली नदी पर हल्दिया एवं इलाहाबाद के बीच जिसकी लम्बाई 1,620 किमी हैं।
- ब्रह्मपुत्र नदी पर सादिया तथा धुबरी के बीच जिसकी लम्बाई 205 किमी है
- राष्ट्रीय जलमार्ग - (कोल्लम कोट्टापुरम) कोल्लम एवं कोट्टापुरम के बीच जिसकी लम्बाई 205 किमी हैं। देश का चौथे राष्ट्रीय जलमार्ग, जो कि पश्चिमी तट पर विकसित किया जा रहा है, उसका कार्य आठवीं पंचवर्षीय योजना के अन्त तक पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था।
देश का चौथा राष्ट्रीय जलमार्ग - दसवी पंचवर्षीय योजना के दौरान चौथा राष्ट्रीय जलमार्ग एन.डब्ल्यू.-4 को घोषित करने का प्रस्ताव है। यह जलमार्ग काकीनाडा से मरक्कानम तक होगा। इसकी कुल दूरी 1100 किमी होगी। यह जलमार्ग गोदावरी व कृष्णा नदियों पर फैला हुआ है। राष्ट्रीय जलमार्ग के रूप में विकसित करने में इस पर 700 करोड़ रुपये की लागत आने का अनुमान है।
राष्ट्रीय जलमार्गों के विकास एवं रख रखाव का दायित्व इनलैण्ड वाटरवेज अथॉरिटी ऑफ इण्डिया का होता है।
देश के सभी राष्ट्रीय जलमार्गों का विकास हो जाने पर अनुमानतः 3.5 करोड़ टन माल का परिवहन जलमार्गों द्वारा किया जा सकेगा। इसके अतिरिक्त इनका विकास आर्थिक, पर्यावरण एवं तेल की खपत की दृष्टि से काफी लाभदायक सिद्व होगा तथा पर्यटन से विदेशी मुद्रा की भी प्राप्ति होगी।
सामुद्रिक जलमार्ग की दृष्टि से भारत का सम्पूर्ण प्रायद्वीपीय तटीय भाग काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। देश की मुख्य भूमि की 5,600 किमी लम्बी तटरेखा पर 11 बड़े तथा 139 छोटे बन्दरगाह स्थित हैं। बड़े बन्दरगाहों का नियन्त्रण केन्द्र सरकार किया द्वारा किया जाता है, जबकि छोटे एवं मझोले बन्दरगाह संविधान की समवर्ती सूची में शामिल हैं, जिनका प्रबन्धन तथा प्रशासन सम्बन्धित राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है।
व्यापार के लिए बन्दरगाहों का निर्माण
स्मरणीय है कि बन्दरगाहों पर समुद्री जहाजों के रुकने, ईंधन लेने तथा समानों को चढ़ाने-उतराने का कार्य किया जाता है, इसलिए इनका विकास सागरतटीय क्रीकों, लैगूनों, छोटी खाड़ियों, नदियों की एश्चुअरी आदि स्थानों पर होता है। ये प्राकृतिक तथा कृत्रिम दोनों प्रकार के हो सकते हैं। हमारे देश में पूर्वी समुद्र तट पर स्थित बड़े बन्दरगाह हैं - तूतीकोरिन, चेन्नई, विशाखापत्तनम, पाराद्वीप, कोलकाता, हल्दिया। इसी प्रकार पश्चिम तट पर स्थित बन्दगाहों में कांडला, मुम्बई, न्हावाशेवा, न्यू मंगलौर, कोचीन तथा मार्मागोवा को शामिल किया जाता है। म्हाशोवा का जवाहरलाल नेहरू बन्दरगाह अत्याधुनिक सुविधायुक्त बन्दरगाह है, जहाँ बड़े पैमाने पर शुष्क मालों को चढ़ाने तथा उतारने के लिए यान्त्रिक कण्टेनर, बर्थ एवं सर्विस बर्थ की सुविधा प्रदान की जाती है।
वर्ष 1996-1997 के दौरान प्रमुख पत्तनों पर संचालित कुल जहाजी माल की मात्रा 227.3 मिलियन टन थी, जिसने 1996-97 की तुलना में 5.6 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की। इसमें सबसे अधिक उर्वरक एवं कच्चा माल (22.7 प्रतिशत) में वृद्धि हुई।
कांडला एक ज्वारीय बन्दरगाह है एवं यहाँ मुक्त व्यापार क्षेत्र स्थापित किया गया है। न्यू मंगलोर बन्दरगाहको कुद्रेमुख से लौह-अयस्क के निर्यात की विशेष सुविधा प्राप्त करायी गयी है। कोचीन एक प्राकृतिक बन्दरगाह है और इसे पूर्व का सर्वश्रेष्ठ बन्दरगाह माना जाता है। मुम्बई देश का सबसे बड़ा बन्दरगाह है जहां से देश का सर्वाधिक समुद्री यातायात किया जाता है। मार्मागोवा बन्दरगाह जुआरी नदी का एश्चुअरी पर स्थापित किया गया है। न्हावाशेवा बन्दरगाह की स्थापना मुम्बई बन्दरगाह के यातायात को कम करने के लिए की गयी हैं।
पूर्वी तट पर स्थित चेन्नई की गणना देश के सर्वाधिक प्राचीन बन्दरगाहों में की जाती है, जबकि विशाखापटनम देश का सर्वश्रेष्ठ प्राकृतिक बन्दरगाह हैं। यहाँ पोत निर्माण एवं उनके मरम्मत की भी सुविधा उपलब्ध करायी गयी है। पाराद्वीप बन्दरगाह उड़ीसा तट पर महानदी के डेल्टा क्षेत्र में स्थापित किया गया है। कोलकाता बन्दरगाह सागर तट से 148 किमी अन्दर हुगली नदी के किनारे स्थित है। यहाँ से 105 किमी नीचे हल्दिया बन्दरगाह का विकास किया गया है, जिससे कोलकाता बन्दरगाह का भार कम किया जा सके क्योंकि यहाँ अवसाद (गाद) जमा हो जाने की समस्या अधिक प्रभावी रहती है। हल्दिया में पूर्णतः सुसज्जित कोयला एवं तेल कण्टेनर की सुविधा उपलब्ध है।
प्रमुख बन्दरगाह
देश के प्रमुख बन्दरगाहों, छोटे बन्दरगाहों, गोदियों, जहाजरानी बन्दरगाहों, नौ-सेना आदि के रेख-रखाव तथा उनकी तलहटी की सफाई की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए मार्च, 1976 में ड्रेजिंग कार्पोरेशन ऑफ इण्डिया की स्थापना की गयी, जिसने 1 अप्रैल, 1977 से अपनी व्यावसायिक गतिविधियाँ प्रारम्भ की।
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