ऐल्ते विश्वविद्यालय
विश्वविद्यालय परिचय
ओत्वोश लोरेंड विश्विद्यालय (ऐल्ते) का मूल रूप कार्डिनल पीटर पाजमेनी ने सन 1635 में नाग्यासोम्बात (आजकल ट्रान्वा, स्लोवाकिया) में स्थापित किया था। यह दर्शन और ईश्वर विज्ञान शिक्षण का एक कैथोलिक विश्वविद्यालय के रूप में शुरू किया गया था। यह विश्वविद्यालय 1770-1780 के दौरान पहले बुदा में फिर पेश्त में स्थानांतरित हुआ। हंगरी की रानी मारिया थेरेसा की मदद से यह रॉयल हंगेरियन विश्वविद्यालय बन गया।
इसके बाद के दशकों में विद्वत समाज की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर नए संकायों की स्थापना की गई। 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में यह आजकल के संदर्भ में उच्च शिक्षा का आधुनिक केंद्र बन गया जिसमें सभी विशेषज्ञ विषयों की शिक्षा दी जाती है।
1950 में इस विश्वविद्यालय को मान्यता मिली और इसने अपना वर्तमान नाम अपना लिया। इसका नाम विश्व प्रसिद्ध भौतिकविज्ञानी लोरेंड ओत्वोश के नाम पर रखा गया है। ये इसमें अध्यापन करने वाले एक (प्राचार्य) प्रोफेसर थे। अभी कुछ समय पहले ही डेन्यूब नदी के बहुत सुंदर किनारे पर विज्ञान, समाजिक विज्ञान और सूचना विज्ञान संकाय के नए भवन का निर्माण किया गया है। आजकल इस विद्यालय में आठ संकाय हैं- कला, शिक्षा और मनोविज्ञान, एलीमेंट्री और नर्सरी अध्यापक प्रशिक्षण, सूचना विज्ञान, क़ानून और राजनीति विज्ञान, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान और विशेष शिक्षा का बार्सी गुत्साव संकाय। ओत्वोश लोरेंड विश्वविद्यालय अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त है और इसके कार्यक्रम हंगेरियन एक्रेडिएशन बोर्ड से एक्रेडिट हैं। ओत्वोश लोरेंड विश्वविद्यालय द्वारा दिए जाने वाले डिप्लोमा विश्व भर में स्वीकार किए जाते हैं। इसके पाठ्यक्रमों के क्रेडिट यूरोपियन संघ में स्थानांतरणीय हैं। गत 100 सालों में ओत्वोश लोरेंड विश्वविद्यालय ने विश्व को अनेक वैज्ञानिक दिए हैं। इसके अध्यापकों वे एल्यूमिनाई में पाँच नॉबल पुरस्कार से पुरस्कृत विद्वान शामिल हैं। छात्रों की संख्या बढ़कर 32000 तक पहुँच गई है। इसके अकादमिक वर्ग में 1800 उच्च शिक्षा प्राप्त विद्वान व अनुसंधित्सु शामिल हैं।
कला स्नातक, कला निष्णात, दर्शन निष्णात
बीए, एमए और पीएचडी स्तर के अंग्रेजी भाषा पाठ्यक्रम
पुराकालीन, प्रचीन अध्ययन- पीएचडी
Archaeology - पीएचडी
संप्रेषण, संचार- पीएचडी
तुलनात्मक साहित्य- पीएचडी
अंग्रेजी भाषा और साहित्य- बीए, एमए, पीएचडी
Ethnology - पीएचडी
इतिहास- पीएचडी कला का इतिहास- पीएचडी
पौर्वात्य अध्ययन- पीएचडी
दर्शन- पीएचडी
स्वच्छंदतावाद- पीएचडी
अंग्रेजी का द्वितीय भाषाके रूप में अध्यापन- बीए, एमए, पीएचडी
बीए, एमए और पीएचडी स्तर के अन्य भाषा पाठ्यक्रम
फ्रेंच भाषा और साहित्य (फ्रेंच) - बीए, एमए, पीएचडी
ज्रर्मनभाषा और साहित्य (जर्मन- बीए, एमए, पीएचडी
हंगारीभाषा और साहित्य (हंगारी)- बीए, एमए, पीएचडी
रूसीभाषा और साहित्य (रूसी)- बीए, एमए, पीएचडी
स्लाविक भाषाएँ- पीएचडी
शिक्षेतर कार्यक्रम व पाठ्यक्रम
विश्वविद्यालय पूर्व पाठ्यक्रम
जो छात्र बीए स्तर के पाठ्यक्रमों में दाखिला लेने की शर्तों को पूरा नहीं करते, उनके लिए अर्हता पूरी करने के लिए कुछ विशेष preparatory कार्यक्रम हैं। इन preparatory कार्यक्रमों में प्रवेश लेने की योग्यता बीए स्तर के पाठ्यक्रमों के समान है। इन विश्वविद्यालय पूर्व कार्यक्रमों में बीए पाठ्यक्रम के लिए उपयोगी विषयों का अध्यापन किया जाता है। इन पाठ्यक्रमों में सफल होने पर एक प्रमाणपत्र प्रदान किया जाता है जो बीए पाठ्यक्रम में प्रवेश का द्वार भी होता है। (विश्वविद्यालय पूर्व पाठ्यक्रमों की उपलब्धता व पाठ्यविवरण के लिए आवश्यक कार्यक्रम का विवरण देखें।)
विश्वविद्यालय का विदेशी भाषा प्रशिक्षण संस्थान विश्वविद्यालय में प्रवेश लेने के इच्छुक विदेशी छात्रों को अंग्रेजी और हंगेरियन भाषा और संस्कृति अध्ययन के लिए प्रारंभिक पाठ्यक्रम भी उपलब्ध करवाता है। जो छात्र अंग्रेजी या हंगारी भाषा में हाथ तंग होने के कारण अपना अध्ययन तुरंत करने में असमर्थ होते हैं, या जो विश्विद्यालय में अध्ययन करने के साथ-साथ अपनी भाषा दक्षता भी सुधारना चाहते हैं, उन्हें इन पाठ्यक्रमों प्रवेश लेने की सलाह दी जाती है।
अधिक जानकारी के लिए www.itk.hu[1]पर जाएँ।
पाठ्यक्रम व संगोष्ठी शृंखला
अधिकांश पाठ्यक्रमों में एक या दो सत्रों के विभिन्न लघु अवधि पाठ्यक्रम और संगोष्ठी शृंखला उपलब्ध करवाई जाती है। पाठ्यक्रम पूरा करने पर प्रमाण-पत्र दिया जाता है। (अधिक जानकारी के लिए संबंधित पाठ्यक्रम के संपर्क सूत्र से पूछताछ करें।
पाठ्यक्रमों की सामान्य जानकारी
डिप्लोमा व प्रमाण-पत्र
किसी भी कार्यक्रम को सफलतापूर्वक पूरा कर लेने पर, अर्थात् आवश्यक क्रेडिट लेने और अपनी उपाधि के शोध को प्रस्तुत करने व उसका बचाव करने के उपरांत (बीए, एमए और पीएचडी उपाधियाँ) डिप्लोमा दिया जाता है।
किसी पाठ्यक्रम अथवा संगोष्ठी शृंखला को पूरा करने के बाद प्रमाण पत्र प्रदान किया जाता है। यदि किसी पाठ्यक्रम के लिए क्रेडिट निश्चित किए गए हैं तो आवश्यक क्रेडिट प्राप्त करने के उपरांत ही प्रमाण पत्र प्रदान किया जाता है। (क्रेडिट विवरण के लिए संबंधित कार्यक्रम देखें।)
शुल्क व खर्च
शिक्षण शुल्क
स्तर शिक्षण शुल्क (यूरो प्रति सत्र)
प्रारंभिक- 1500-2500
बीए- 2000-4500
एमए- 2500-5000
पीएचडी- 3000-5500
अन्य शुल्कों, वापसी नीति और भुगतान के तरीके के बारे में संबंधित पाठ्यक्रम की वेबसाइट देखॆ।
खर्च(यूरो)
पुस्तकें -400-800/वार्षिक
स्वास्थ्य बीमा- -60/मासिक
मकान का किराया(सुविधा रहित)- -200-500/ मासिक
सुविधाएँ -200/ मासिक
हंगरी में छात्र जीवन की शुरुआत
हंगरी के लिए पासपोर्ट और वीसा
आवेदक और छात्रों को कम से कम दो वर्ष की मान्यता प्राप्त अवधि वाला पासपोर्ट लेकर हंगरी आना चाहिए।
उनके पास हंगरी का वीसा भी होना चाहिए ( यू.संघ के छत्रों के लिए आवश्यक नहीं है।) विश्वविद्यलय से “स्वीकृति पत्र” प्राप्त हो जाने पर छात्र (यू.संघ) अपने देश के हंगरी के दूतावास या कोंसुलेट में वीसा के लिए आवेदन करना चाहिए।
आवास परमिट- सभी देशों के (यू.संघ के भी) छात्रों को हंगरी के आव्रजन तथा राष्ट्रीयता (Office of Immigration and Nationality) में आवास परमिट के लिए आवेदन करना चाहिए।
स्वास्थ्य बीमा- शिक्षण शुल्क में स्वास्थ्य बीमा राशि शामिल नहीं है। पंजीकरण के लिए पूरी कवरेज वाला आधारभूत स्वास्थ्य बीमा होना आवश्यक है। हंगरी में यह लगभग 60 यूरो प्रति माह की दर से होता है।
छात्र कार्ड प्रत्येक पंजीकृत छात्र को एक छात्र कार्ड दिया जाता है। इससे उन्हें हंगरी में यातायात, संग्रहालयो, पुस्तकालयों, तरण-तालों आदि में छूट मिलती है।
आवास व्यवस्था- छात्र को पने रहने की व्यवस्था स्वयं करनी होती है। छात्रों को सलाह दी जाती है कि वे अपने देश से ही कुछ दिन रहने की व्यवस्था करके आएँ, ताकि वे अपनी मनपसंद व्यवस्था कर सकें। बिना साजो-समान के फ्लेट का किराया 200 से 500 यूरो प्रति माह होता है। विश्वविद्यालय के छात्रावास में 160 यूरो प्रति माह की दर से साजो-सामान वाले दो बिस्तर वाले कमरे सीमित संख्या में उपलब्ध हैं।
प्रयास भित्ति पत्रिका
संदेश
गत वर्ष दीपावली के आसपास जब डॉ. प्रमोद कुमार शर्मा ने भित्ति पत्रिका प्रारंभ करने का विचार मेरे सामने रखा तो मैंने कोई उत्साह नहीं दिखाया था क्योंकि मेरे विचार से इस तरह का प्रयास सफल होने की कोई संभावना ही नहीं थी। मैंने उनसे कह तो दिया कि आप प्रयास करें पर मैं मन ही मन यह जानती थी कि छात्र शायद ही इस तरह की सामग्री दे पाएँ। पर डॉ. प्रमोद ने छात्रों पर ऐसा जादू किया कि मेरी धारणा के विपरीत इस पत्रिका का पहला अंक आपके सामने आ गया है। मुझे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा है कि यह कार्य हो गया है। मैं चाहती हूँ कि इस पत्रिका की कमान विभाग के वर्तमान व भूतपूर्व छात्र सँभाल लें ताकि जो चिंगारी डॉ. प्रमोद ने लगाई है वह मशाल बनकर भविष्य में भी बुदापैश्त को अपने प्रकाश से आलोकित करती रहे। उनका प्रयास व्यर्थ न चला जाए।
मैं इस पत्रिका के उज्ज्वल भविष्य की कामना करती हूँ।
-मारिया नैज्येशी
संदेश
मुझे यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि ऐल्ते विश्वविद्यालय का भारतीय विद्या अध्ययन विभाग हिंदी में एक द्विमासिक भित्ति पत्रिका “प्रयास” निकालने जा रहा है जिसे इंटरनेट पर भी पढ़ा जा सकेगा।
मेरा विश्वास है कि यह पत्रिका हंगरी के भारत विद्या व हिंदी प्रेमियों के लिए एक ऐसा मंच और आईना साबित होगी जिसमें वे अपने विचारों और मन की भावनाओं को साकार कर सकेंगे।
मै सोचता हूँ कि अपनी मातृभाषा में भी साहित्य सृजन एक कठिन कार्य होता है, पर हंगरी के हिंदी प्रेमी जन एक विदेशी भाषा सीखकर उसमें कविताएँ, लेख आदि लिखने के साथ-साथ उसमें अनुवाद करने का दुष्कर कार्य कर रहे हैं। यह सचमुच ही स्तुत्य प्रयास है।
मैं इस पत्रिका के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ।
-रंजीत रे
प्रयास सहयोग दल
प्रमोद कुमार, शर्मा रॉबर्ट, वालोत्सी पेतर शागी, रिता शिमोन, ओर्सोल्या सास
हिन्दी रिपोर्ट
आजकल हंगेरियन लोग भारत में दिलचस्पी लेते हैं। लेकिनजैसे ही भारतीयों के लिए युरोपमें कुछ भी बतानाकठिन है, यहाँ के लोगोंको भी भारत के बारे में बातचीत करनी बहुत मुश्किल है।मैं इन साढ़ेमहीनों के बाद भी थोड़े-थोड़ेसमझ सकता हूँ। प्रश्न अब भी ज्ञानसे ज्यादा है।भारत में मैंनेसंस्कृतियों की लड़ाईनहीं देखी। मैंने कुटुबमिनार देखी जो दुनिया की सबसे ऊँची मुसलमान इमारत है, और वह संसारके सबसे बड़े हिंदूदेश की राजदानी में उपस्थित है।दिल्ली, जैसालमेर, देहरदून, जैयपूर, उदइपुर वाले लोग ज्ञानी और मददकर थे। अहमदाबाद के विद्यार्थी आग्राके लोगों से ज्यादा समझदार थे। इन सब शिष्यों में देश का प्रेमथा, इसलिए वे स्वाभिमानी भी थे। इधर के लोग ज्यादा शुद्ध हिंदी बोलनेवाले होने लगे थे। इन लोगोंको अच्छा लगा कि हमने हिंदीमें बातचीत की कोशिशकी। हमने अनेक ऐतिहासिक या धार्मिक स्थानदेथे तथा ऋषिकेश कजुराहो, जुनगढ़, ओरछ, जहाँ सब लोग काफी शांत और ईमानदार थे। छात्रावास में पता नहीं क्योंस्वदेशी विद्यार्तियों से बात-चीत करनी मना था। फिर भी सिक्किम और मिज़ोरम वालोंसे मिला था। इन लोगोंकी मातृभाष हिंदी नहीं, फिर भी उन्को बहुत अच्छालगा कि हम हिंदीबोलने वाले थे। पर सारे उत्तरप्रादेश में सब लोग हमें देखकरहमेशा सिर्फ अंग्रेज़ी पढ़नेचाहते थे। उनके भारत की संस्कृति के बारे में बहुत कम ज्ञानथा। अगरा के अध्यापकों को दुसरी भाषाओं- न स्वदेशी, न ही विदेशी – के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। कहते हैं कि अकेलाचना भाड़ नहीं फोड़ सकता है। पर भारत में अकेलीयात्रा करना काफी सरल है। समुद्र के किनारे पर या पर्वतके जंगल में होटलों से दूर सोकर में भी कोई समस्या नहीं थी। किसी से डर होना नहीं पड़ा।सिक्किम में दो दोस्तों के साथ पहाड़के नीछे जाने चाहें। दोस्त के गाँव नज़दीक था। और साभी को संक्षिप्ततर की मालुम होने के कारण हमने गाड़ीवाली रास्ता नहीं पाया।कदम-कदम रखकर बहुत खेत होते हुए एक सैनिककेम्प तक आयें। उस्में रहने वाले सिपाही आसामी वाले थे। जिंकोन हिंदी न नेपाली आयी थी। मैं सोच रहा था कि क्या होगा।कुछ भी नहीं। वहाँ आर-पार जाकर घर पहूँचे। महाराष्ट्र में कुछ समस्यहुआ, क्योंकि वहाँ रहनेवालों को कम हिंदीआती है। मैंने सोचा कि हिंदीइसलिए उतना उपयोगी नहीं।लेकिं मेरे दोस्तों में से एक लड़काजो श्रीलंक से आया था, उसने मराठीपढ़ने को शुरु की, और उसने दिखाया कि हिंदी बोलनेवालों को दुसरी भाषा सीखनाकितनी सरल है। नेपाली भाषा समानरूप थी। यद्यपि काठमांडौ में ज्यादा लोगों को हिंदीभी आयी थी, मैंनेज्यादातर नेपाली में बात-चीत करनी की कोशिशकी। मैंनेपता चला कि हिनदूसंस्कृति हिमालय के अत्यंत संबंधित है। मुझे सबसे दिलचस्प पहाड़ के संकृतियों का भेंट लगी। ऐसे नेपाली क्रांति के तर्क, और उसका परिणाम को पता चलना भी बहुत दिलचस्प हों। कभी-कभी नेपालकी स्थिति हंगेरी की स्थिति के सामान होने लगा है, क्योंकी यहाँ भी मुसलमानों के आक्रमण हेतु हमारीसंस्कृति पहाड़ों में सुरक्षित हुई थी। मैंनेपढ़ा, कि वहाँ के जनाजातिय की इच्छा हैः नेपाली संविधान बदलना, हिंदूवाले के बदले सम्यवादी वाला बनाकर।
इंटेर्नेट में पढ़ा कि भारत का संविधान बहुत सी विदेशी संविधानों से एकत्रित किया था। मैंनेहिंदी में नहीं पढ़ा- क्योंकी समझने की ज्ञानकाफ़ी नहिं- लेकिन मालुमहै कि भारत का धर्म मानु की स्मृति में संविधान की तरह लिखा हुआ था। धर्म विधी के ऊपर था। धर्म लोग पालन करते हैं, विधि को उतना अच्छीतरह नहिं। धर्म संविधान से प्रभावशाली है, क्योंकि युरोपवालों ने माना जाता है, कि हमने बनायेहुए चीज़ो को प्रयुक्त करके में कठिनाई होकर हमको न चीजोंको बदलना, मरम्मत करना चाहिए। पर कुछ चीजोंको अनादि होना चाहिए। भारतिय विधि की भाषा बहुत पुरानी लगी है। जिन शब्द अंग्रेज़ी में 2-3 शब्द में प्रकटकर जाते हैं, या लेटिनभाषा से लिए हुए हैं। सो हिंदीमें संस्कृति वाले होगें। Rene David ने लीखा था कि विधि पुराने समय में भी भारत के शासन में महत्वपूर्ण थी। मानु की अनूदित स्मृति पढ़कर मैंनेभी देखा कि दीवानी, फ़ौजदारी और राजनितिक कानून एक साथ ही हैं, क्योंकी तब भारत में यह मानव के व्यवहार से संबंधित थी। अंग्रेजों ने संहिताएँ प्रस्तुत कीं जिनमें कानूनकी शाखाएँ अलग-अलग –नियंत्रित हुईँ ऐसे लगता है, कि आजकल विधि (रेलवे की तरह) अंग्रेज़ी आविष्कार है। विधि का आदेश प्रशासन का हिस्सा है, इसलिएधर्म और रीति सं अनादित नहीं हो सकता है। योरोपमें अपराध इतना बड़ा है, क्योंकि यहाँ सब लोग कानूनके द्वारा बराबर होना मना जाते हैं। व्यक्तियाँ यहाँ भी बिल्कुल अलग-अलग हैंस लेकिंउनके संहिताओँ में लिखतेहुए कर्तव्य बहुत ही समान्रूप हैं। आजकल यहाँ पर भी छोते जगह में बहुत भीड़ रहती है, और वे लोग बहुत ही भिन्नके लोग हैं। युरोपके देशों की इच्छाएकता होती आजकल से संविधानों में सब मूल अधिकार लीखे हुए है। युरोपके संविधान में मानधिकारों में आधारित हैं। व्यक्ति अलग-अलग रहने लगते हैं। कन्वेंशन में देशों का धर्म (कर्तव्य) के बिना असंभवहै। कर्मबुमि होकर युरोपभी अहिंसा की मदद से बड़ा देश हो सकता है। इस काम करने के लिए भारत की पुरानी विधि को पढ़नीचाहिए जिसे वैध शब्द समान्रूप होने लगते हैं। भारत मे सब जानवरमित्रवत होते हैं। जो चिड़ियाँ थी सो सिर्फ़ ठंडे मौसम में उत्तरवाले देशों से आती हैं। विदेशों में शिकार किया जाता है, इसलिएवहाँ पुरुषों को देखकरउनको डर लगता है। कन्वेंशन के सब देशोंके विभिन्न रितियाँ होने के होते हुए भी Convention on Conservation of Biological Diversity ( Rio De Janerio 1992) सब देशोंके लिए एक ही संधि का पाठ आबद्धकर है। मैंने इस विषय में निबंधलिखा कि हंगेरी में वन एवं जान्वरों का बचाव विधि में कैसे व्यवस्थित किया था, और इसके बारे में मैंनेएक शोध किया। इसलिएमुझे दिलचस्प है कि भारत में एक ही संधि कैसे प्रयोग किया जाता है। युरोपमें बहुत वर्षों से जांवरो का बचाव को विधि के द्वारा नींव रखी जाती है। भारत में इसको धर्म से किया जाने लगता है। Phd के लिए इस विषय में हिंदीऔर नेपाली में भी शोधकार्य करना चाहेगा। धुरभाग्य से उत्तर प्रदेश में होकर बहुत कठिनाईयाँ होती थीं। इसलिएहिंदी भाषा मैंने सिर्फथोड़ी पढ़ी। संस्थान के गुरुजी काफी संतोषी थे, लेकिं अपने मातृभाषा विदेशी छात्रों को पढ़ाईमें प्रणाली बहुत कम थीं। अंत में बहुत पाठ नहीं मनायेहुए। फिर भी यह पढ़ाईबहुत उपयोगी थी, क्योंकी मेरी Phd शोधकार्य विधिक प्रतिरोपण से संबंधित है। मैंनेविश्विद्यालय में दो बार प्रस्तुति की, और अनेक परिसंवादों में इस विषय के बारे में भाषण की , मैंनेभारत और नेपाल में एक अलग संस्कृति, और युरोप का सबसे पुराना इतिहास देखा।
इसलिएमें सब लोगों को आभारी हूँ, बहुत धन्यवाद।
सादर प्रणाम
डॉ. चनाद अंतल
01.02.2009
डीन का संदेश
ऐल्ते विश्वविद्यालय का कला संकाय बुदापैश्त के बीचोंबीच स्थित है। इसका अपना एक विशिष्ट इतिहास है। इसके शैक्षिक स्तर के बारे में बस यह कहा जा सकता है कि हंगरी के कला संकायों में इसका स्थान सर्वप्रथम है। सन् 2006-07 से विश्वविद्यालय के अकादमिक कार्यक्रम बोलोग्ना प्रक्रिया के अनुसार परिवर्तित किए जा रहे हैं। इससे हमारे संकाय व यूरोपीय संघ के देशों के अन्य विश्वविद्यालय स्तरीय संस्थानों में छात्रों का परस्पर आवागमन आसानी से संभव होगा। हमारे स्नातक स्तर के अनेक कार्यक्रमों में विदेशी भाषा में शिक्षण की सुविधा उपलब्ध है। इसके साथ ही हम विदेशी छात्रों के लिए विशेष रूप से निर्मित पाठ्यक्रम भी उपलब्ध करवाते हैं। ये पाठ्यक्रम अंतर्राष्ट्रीय छात्र समुदाय की माँगों को पूरा करते हैं। ये छात्रों को हमारे अपने क्षेत्र के इतिहास, संस्कृति और वर्तमान आर्थिक व राजनैतिक मुद्दों से भी परिचित करवाते हैं। छात्र विविध अंतर्विषय परक एम. ए. पाठ्यक्रमों और अनेक विदेशी भाषाओं के पी-एच.डी. स्तर के पाठ्यक्रमों में से अपनी रुचि के अनुसार अध्ययन कार्यक्रम का चयन कर सकते हैं। संकाय विदेशी छात्रों को भाषा संबंधी पाठ्यक्रमों में अध्ययन की सुविधा भी प्रदान करता है। इनमें अनुवाद और विदेशी भाषा के रूप में हंगेरियन में अध्ययनों को लागू करना शामिल है। अकादमिक कार्य में देशीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कार्यरत अंतर्राष्ट्रीय संबंधों, अनुसंधान नेटवर्कों, अनुसंधान परियोजना सहयोगों, अनुसंधान समूहों व विशिष्ट पुस्तकों वाले विशेष पुस्तकालयों का सहयॉग भी लिया जाता है।
हम छात्रों का ऐसे कैंपस में स्वागत करते हैं जिसने पिछले कुछ वर्षों के आंतरिक पुनर्संयोजन के कारण नया रूपाकार ले लिया है। यह तकनीकी रूप से आधुनिक शिक्षा की आवश्यकताओं पर भी खरा उतरता है।
डीन,
कला संकाय,
संपर्क
जोसेफ बीरो
विदेशी छात्र प्रबंधक,
ओत्वोश लोरेंड विश्वविद्यालय,
1088 बुडापेश्ट,
म्यजियम कोर्ट, 4/ए,
हंगरी,
दूरभाष : +36 1-411 6700 / 5485 एक्स.,
फैक्स: +36 1-485 5229,
ईमेल: arts@ludens.elte.hu
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