कैफ़ी आज़मी
कैफ़ी आज़मी
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पूरा नाम | अख़्तर हुसैन रिज़्वी |
प्रसिद्ध नाम | कैफ़ी आज़मी |
जन्म | 19 जनवरी 1919 |
जन्म भूमि | आजमगढ़, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 10 मई, 2002 |
मृत्यु स्थान | मुम्बई |
पति/पत्नी | शौकत आज़मी |
संतान | शबाना आज़मी, बाबा आज़मी |
कर्म भूमि | मुम्बई |
कर्म-क्षेत्र | गीतकार, उर्दू शायर |
मुख्य रचनाएँ | आवारा सिज्दे, इब्लीस की मजिलसे शूरा। |
पुरस्कार-उपाधि | साहित्य अकादमी पुरस्कार, राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार (फ़िल्म सात हिन्दुस्तानी), फ़िल्मफेयर पुरस्कार (फ़िल्म गरम हवा), सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड। |
प्रसिद्धि | फ़िल्मजगत के मशहूर उर्दू शायर |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | 'काग़ज़ के फूल', 'हकीकत', 'हिन्दुस्तान की कसम', 'हंसते जख्म', 'आखरी खत' और 'हीर रांझा' जैसी फ़िल्मों में कई सुपरहिट गाने लिखे हैं। |
अद्यतन | 13:13, 18 नवम्बर 2011 (IST)
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कैफ़ी आज़मी (अंग्रेज़ी Kaifi Azmi) (जन्म- 19 जनवरी 1919; मृत्यु-10 मई, 2002) फ़िल्मजगत के मशहूर उर्दू शायर थे। कैफ़ी आज़मी का मूल नाम अख़्तर हुसैन रिज़्वी था। कैफ़ी आज़मी में नैसर्गिक काव्य प्रतिभा थी और वह छोटी उम्र में ही वे शायरी करने लगे थे।
जीवन परिचय
कैफ़ी आज़मी का जन्म उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ ज़िले में 19 जनवरी 1919 हुआ था। कैफ़ी आज़मी के परिवार में उनकी पत्नी शौकत आज़मी, इनकी दो संतान शबाना आज़मी (फ़िल्मजगत की मशहूर अभिनेत्री और जावेद अख़्तर की पत्नी) और बाबा आज़मी है।
- शिक्षा
कैफ़ी आज़मी के तहसीलदार पिता उन्हें आधुनिक शिक्षा देना चाहते थे। किंतु रिश्तेदारों के दबाव के कारण कैफ़ी आज़मी को इस्लाम धर्म की शिक्षा प्राप्त करने के लिए लखनऊ के 'सुलतान-उल-मदरिया' में भर्ती कराना पड़ा। लेकिन वे अधिक समय तक वहाँ नहीं रह सके। उन्होंने वहाँ यूनियन बनाई और लंबी हड़ताल करा दी। हड़ताल समाप्त होते ही कैफ़ी आज़मी को वहाँ से निकाल दिया गया। बाद में उन्होंने लखनऊ और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में शिक्षा पाई और उर्दू, अरबी और फ़ारसी भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया।
काव्य प्रतिभा
कैफ़ी आज़मी में नैसर्गिक काव्य प्रतिभा थी। छोटी उम्र में ही वे शायरी करने लगे थे। यद्यपि उनकी आरंभिक रचनाओं में प्रेम-भावना प्रधान होती थी, किंतु शीघ्र ही उसमें प्रगतिशील विचारों का प्राधान्य हो गया। राजनीतिक दृष्टि से वे कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य थे। कैफ़ी आज़मी पार्टी के काम के लिए मुम्बई गए थे। वहाँ उनका संबंध इंडियन पीपुल्स थियेटर से हुआ और आगे चलकर वे उसके अध्यक्ष भी बने। कैफ़ी आज़मी बहुत कम उम्र में जाने-माने शायर हो चुके थे। वे मुशायरों में स्टार थे, लेकिन वे पूरी तरह से कम्युनिस्ट पार्टी के लिए समर्पित थे। वे पार्टी के कामों में मशरूफ रहते थे। वे कम्युनिस्ट पार्टी के पेपर 'कौमी जंग' में लिखते थे और ग्रासरूट लेवल पर मज़दूर और किसानों के साथ पार्टी का काम भी करते थे। इसके लिए पार्टी उनको माहवार चालीस रूपए देती थी। उसी में घर का खर्च चलता था।[1]
फ़िल्मों में प्रवेश
कैफ़ी आज़मी की बीवी शौकत आजमी को बच्चा होने वाला था। कम्युनिस्ट पार्टी की हमदर्द और 'प्रोग्रेसिव राइटर्स एसोसिएशन' की मेंबर थीं इस्मत चुगतई। उन्होंने अपने शौहर शाहिर लतीफ से कहा कि तुम अपनीफ़िल्म के लिए कैफ़ी से क्यों नहीं गाने लिखवाते हो? कैफ़ी साहब ने उस वक्त तक कोई गाना नहीं लिखा था। उन्होंने लतीफ साहब से कहा कि मुझे गाना लिखना नहीं आता है। उन्होंने कहा कि तुम फिक्र मत करो। तुम इस बात की फिक्र करो कि तुम्हारी बीवी बच्चे से है और उस बच्चे की सेहत ठीक होनी चाहिए। उस वक्त शौकत आजमी के पेट में जो बच्चा था, वह बड़ा होकर शबाना आजमी बना।
पहला गीत
कैफ़ी आज़मी ने 1951 में पहला गीत 'बुझदिल फ़िल्म' के लिए लिखा- 'रोते-रोते बदल गई रात'। कैफ़ी आज़मी ट्रेडीशनल बिल्कुल नहीं थे। शिया घराने में एक जमींदार के घर में उनकी पैदाइश हुई थी। मर्सिहा शिया के रग-रग में बसा हुआ है। मुहर्रम में मातम के दौरान हजरत अली को जिन अल्फाजों में याद करते हैं, वह शायरी में है। वे जिस माहौल में पले-बढ़े, वहां शायरी का बोल-बाला था। गयारह साल की उम्र में उन्होंने लिखा था, ‘‘इतना तो जिंदगी में किसी की खलल पड़े, हंसने से हो सुकूं, न रोने से कल पड़े.’’
गुरूदत्त के साथ
उनको पहला बड़ा ब्रेक मिला 1959 में, फिल्म काग़ज के फूल में। अबरार अल्वी ने उन्हें गुरूदत्त से मिलवाया। गुरूदत्त से बड़ी जल्दी उनकी अच्छी बन गई। कैफी साब कहते थे-
"उस जमाने में फिल्मों में गाने लिखना एक अजीब ही चीज थी। आम तौर पर पहले ट्यून बनती थी। उसके बाद उसमें शब्द पिरोए जाते थे। ये ठीक ऐसे ही था कि पहले आपने कब्र खोद ली, फिर उसमें मुर्दे को फिट करने की कोशिश करें। तो कभी मुर्दे का पैर बाहर रहता था तो कभी कोई अंग। मेरे बारे में फिल्मकारों को यकीन हो गया कि ये मुर्दे ठीक गाड़ लेता है, इसलिए मुझे काम मिलने लगा।"
कैफ़ी आज़मी यह भी बताते हैं कि कागज के फूल का जो मशहूर गाना है 'वक्त ने किया क्या हंसीं सितम..' ये यूं ही बन गया था। एस डी बर्मन और कैफी आजमी ने यूं ही यह गाना बना लिया था, जो गुरूदत्त को बेहद पसंद आया। उस गाने के लिए फिल्म में कोई सिचुएशन नहीं थी, लेकिन गुरूदत्त ने कहा कि ये गाना मुझे दे दो। इसे मैं सिचुएशन में फिट कर दूंगा। आज अगर आप कागज के फूल देखें तो ऐसा लगता है कि वह गाना उसी सिचुएशन के लिए बनाया गया है। कैफी साहब के गाने बेइंतेहा मशहूर हुए, लेकिन फिल्म कामयाब नहीं हुई. गुरूदत्त डिप्रेशन में चले गए. उसके बाद कैफी साहब के पास शोला और शबनम फिल्म आई. उसके गाने बहुत मशहूर हुए. जाने क्या ढूंढती हैं ये आंखें मुझमें और जीत ही लेंगे बाजी हम-तुम, लेकिन फिर फिल्म नहीं चली. फिर अपना हाथ जगन्नाथ आई. एक के बाद एक कैफी साहब की काफी फिल्में आईं और सबके गाने मशहूर, लेकिन बॉक्स ऑफिस पर एक भी फिल्म नहीं चली. शमां जरूर एक फिल्म थी, जिसमें सुरैया थीं, उसके गाने मशहूर हुए और वह पिक्चर भी चली. लेकिन ज्यादातर जिन फिल्मों में इन्होंने गाने लिखे, वह नहीं चलीं. फिर फिल्म इंडस्ट्री ने इनसे पल्ला झाडऩा शुरू कर दिया और लोग यह बात कहने लगे कि कैफी साहब लिखते तो बहुत अच्छा हैं, लेकिन ये अनलकी हैं. इस माहौल में चेतन आनंद एक दिन हमारे घर में आए. उन्होंने कहा कि कैफी साहब, बहुत दिनों के बाद मैं एक पिक्चर बना रहा हूं. मैं चाहता हूं कि मेरी फिल्म के गाने आप लिखें. कैफी साहब ने कहा कि मुझे इस वक्त काम की बहुत जरूरत है और आपके साथ काम करना मेरे लिए बहुत बड़ी बात है, लेकिन लोग कहते हैं कि मेरे सितारे गर्दिश में हैं. चेतन आनंद ने कहा कि मेरे बारे में भी लोग यही कहते हैं. मैं मनहूस समझा जाता हूं. चलिए, क्या पता दो निगेटिव मिलकर एक पॉजिटिव बन जाए. आप इस बात की फिक्र न करें कि लोग क्या कहते हैं. कर चले हम फिदा जाने तन साथियों.. गाना बना. हकीकत (1964) फिल्म के तमाम गाने और वह पिक्चर बहुत बड़ी हिट हुई. उसके बाद कैफी साहब का कामयाब दौर शुरू हुआ. चेतन आनंद साहब की तमाम फिल्में वो लिखने लगे, जिसके गाने बहुत मशहूर हुए।[1]
कहानी लेखक
कैफ़ी आज़मी ने कहानी लेखक के रूप में फ़िल्मों में प्रवेश किया। 'यहूदी की बेटी' और 'ईद का चांद' उनकी लिखी आरंभिक फ़िल्में थीं। उन्होंने 'गरम हवा' और 'मंथन जैसी फ़िल्मों में संवाद भी लिखें। उन्होंने अनेक फ़िल्मों में गीत लिखें जिनमें कुछ प्रमुख हैं- 'काग़ज़ के फूल' 'हक़ीक़त', हिन्दुस्तान की क़सम', हंसते जख़्म 'आख़री ख़त' और हीर रांझा'।
नज़्म संग्रह
कैफ़ी आज़मी ने आधुनिक उर्दू शायरी में अपना एक ख़ास स्थान बनाया। कैफ़ी आज़मी की नज़्मों और ग़ज़लों के चार संग्रह हैं:-
- झंकार
- आखिरे-शब
- आवारा सिज्दे
- इब्लीस की मजिलसे शूरा।
विशेष जानकारी
- कैफ़ी आज़मी का जन्म उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ ज़िले में 'मिजवां ग्राम' में 1919 में हुआ था।
- कैफ़ी आज़मी की जन्मतिथि उनकी अम्मी को याद नहीं थी। उनके मित्र डॉक्यूमेंट्री फिल्ममेकर सुखदेव ने उनकी जन्मतिथि चौदह जनवरी रख दी थी।
- उन्होंने 1943 में कम्युनिस्ट पार्टी ज्वाइन कर ली। बाद में वे 'प्रोग्रेसिव राइटर्स एसोसिएशन' के सक्रिय कार्यकर्ता बने।
- 1951 में वे फिल्मों से जुड़े। शाहिद लतीफ़ की फ़िल्म 'बुझदिल' में उन्होंने पहली बार गीत लिखे। बाद में उन्होंने 'हीर रांझा', 'मंथन' और 'गर्म हवा' फ़िल्मों का लेखन किया।
- कैफ़ी आज़मी ने सईद मिर्ज़ा की फिल्म 'नसीम' (1997) में अभिनय किया। यह किरदार पहले दिलीप कुमार निभाने वाले थे।
- कैफ़ी आज़मी केवल 'मॉन्ट ब्लॉक पेन' से लिखते थे। उनकी पेन की सर्विसिंग न्यूयॉर्क के 'फाउंटेन हॉस्पिटल' में होती थी। जब उनकी मौत हुई, तो उनके पास अट्ठारह मॉन्ट ब्लॉक पेन थे।
- कैफ़ी आज़मी को 'सात हिंदुस्तानी' (1969) के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार के 'राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।
- भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया था। इसके अलावा, उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार एवं गर्म हवा (1975) के लिए सर्वश्रेष्ठ कथा, पटकथा एवं संवाद के फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
- कैफ़ी आज़मी ने कुल अस्सी हिंदीफ़िल्मों में गीत लिखे हैं।[2]
सम्मान और पुरस्कार
कैफ़ी आज़मी को अपनी विभिन्न प्रकार की रचनाओं के लिये कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। जिनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं-
- 1975 कैफ़ी आज़मी को आवारा सिज्दे पर साहित्य अकादमी पुरस्कार और सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड से सम्मानित किये गये।
- 1970 सात हिन्दुस्तानी फ़िल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार
- 1975 गरम हवा फ़िल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ वार्ता फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार
निधन
फ़िल्मजगत के मशहूर उर्दू के शायर कैफ़ी आज़मी का निधन 10 मई 2002 को हृदयाघात (दिल का दौरा) के कारण मुम्बई में हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
शर्मा, लीलाधर भारतीय चरित कोश (हिन्दी)। भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: शिक्षा भारती, दिल्ली, पृष्ठ 199।
- ↑ 1.0 1.1 अब्बा कैफी आजमी को याद कर रही हैं शबाना आजमी (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 3 जनवरी, 2014।
- ↑ अब्बा कैफी आजमी को याद कर रही हैं शबाना आजमी (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 3 जनवरी, 2014।
बाहरी कड़ियाँ
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