अपोलो
अपोलो
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पिता | ज्यूस |
माता | लेतो |
धर्म-संप्रदाय | यूनानी धर्म |
रंग-रूप | मूर्तियों में अपोलो को नग्न रूप में बहुत सुन्दर दिखाया गया है। इन्हें सौंदर्य, युद्ध, भविष्यवाणी, शक्ति, सत्य, न्याय तथा पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। |
संबंधित लेख | ज्यूस, यूनान, रोम |
विशेष | भारत के प्राचीन गंजाएर प्रदेश में भी, जहाँ पहली शती ई. की हिन्दू-यवन अथवा गांधार मूर्तिकला शैली का जन्म हुआ, ग्रीक कलावंतों की छेनी के स्पर्श से अपोलो की अनेक मूर्तियाँ निर्मित हुईं। |
अन्य जानकारी | यूनानियों का विश्वास था कि स्वयं अपोलो समसामयिक समस्याओं पर भविष्यवाणी पवित्र पुजारिणी के मुंह से करते हैं और उनकी राजनीतिक तथा सामाजिक समस्याओं को अपनी वाणी से सुलझा देते हैं। |
अपोलो यूनान (ग्रीस) के प्रधान देवताओं में से एक। इन्हें सौंदर्य, तारुण्य, युद्ध और भविष्यकथन का देवता माना जाता है। प्राचीन ग्रीक नारी 'देल्फ़ी' का विशेष आराध्य। 'दिओनिसस्' को छोड़कर अपोलो के बराबर कोई दूसरा लोकप्रिय देवता ग्रीकों का उपास्य नहीं हुआ। अपोलो प्राचीन यूनानी धर्म[1] और प्राचीन रोमन धर्म के सर्वोच्च देवताओं में से एक थे। उनके लिये प्राचीन यूनान और इटली में कई ख़ूबसूरत मंदिर बनाये गए थे, जहाँ उनके नाम पर पशुबलि चढ़ाई जाती थे। मूर्तियों में अपोलो को अत्यधिक ख़ूबसूरत[2] युवा के समान दिखाया जाता था। वे व्यायामशाला में युवाओं के इष्ट देव थे।
जन्म
ग्रीक पौराणिक कथाओं के अनुसार, अपोलो का जन्म देवराज 'ज्यूस' और माता 'लेतो' से हुआ था। ज्यूस भारतीय देवता इन्द्र की भाँति अपत्नीगामी था। जब उसने 'जाए लेतो' से प्रणय किया तो उसकी पत्नी 'हीरा' ने लेतो का सर्वनाश करने की ठानी। उसने उस गर्भिणी पतिप्रिया को नाना प्रकार के दु:ख दिए और लेतो को दर-दर की ठोकरें खानी पड़ीं। अंत में समुद्र में बहते हुए शिलाद्वीप पर उसने एक पुत्र को जन्म दिया, जो पौरुष और सौंदर्य का प्रतीक 'अपोलो' नाम से यूनानी और रोमन कथाओं में प्रसिद्ध हुआ। शक्ति, सत्य, न्याय, पवित्रता आदि नैतिक गुणों का वह प्रतिष्ठाता बना और उसकी कथाओं से यूनानियों के पुराण भर गए।[3]
पूजा तथा मंदिर
यूँ तो यूनान और आयोनिया के अतिरिक्त द्वीपों और प्रधान भूमि पर जहाँ-जहाँ ग्रीक जातियों की बस्तियाँ थीं, वहाँ-वहाँ सर्वत्र ही, पीछे रोम आदि के नगरों में भी, अपोलो के मंदिर बने; परंतु उनकी विशेष पूजा देल्फ़ी के नगर में प्रतिष्ठित हुई, जहाँ प्राचीन काल में उनका सबसे प्रसिद्ध मंदिर खड़ा हुआ था। ग्रीक इतिहास में विख्यात देल्फ़ी के भविष्यकथन, जिनका अतुल अधिकार छठी से चौथी शती ई. पू. के एथेंस पर था, विशेषत: इसी देवता से संबंध रखते हैं।
यूनानी विश्वास
यूनानियों का विश्वास था कि स्वयं अपोलो समसामयिक समस्याओं पर भविष्यवाणी पवित्र पुजारिणी के मुंह से करते हैं और उनकी राजनीतिक तथा सामाजिक समस्याओं को अपनी वाणी से सुलझा देते हैं। देल्फ़ी में अपोलो के त्योहार से संबंधित कई दिनों तक चलने वाले खेलों का सत्र हुआ करता था, जो प्रसिद्ध ओलिंपियाई खेलों से किसी प्रकार भी कम नहीं था।[3]
लोकप्रिय देवता
'दिओनिसस्' को छोड़कर अपोलो के बराबर कोई दूसरा लोकप्रिय देवता ग्रीकों का उपास्य नहीं हुआ और वह दियोनिसस् अथवा अफ्रोदीती की भाँति पौर्वात्य विश्वासों के आयात से भी उत्पन्न नहीं था, बल्कि ग्रीकों का निजी देवता था। उनके देवराज ज्यूस का पुत्र और भगिनी आतमिस् का जुड़वाँ भाई, जो ग्रीकों की ही भाँति बाण द्वारा लक्ष्यवेध में अनुपम कुशल था।
मूर्तियाँ
अपोलो की प्राचीन काल में हजारों मूर्तियाँ बनीं। ग्रीक जहाँ कहीं भी गए- सिसली में, सीरिया में, पंजाब में- सर्वत्र उन्होंने अपने इस प्रिय देवता अपोलो की मूर्तियाँ बनाई। भारत के प्राचीन गंजाएर प्रदेश में भी, जहाँ पहली शती ई. की हिन्दू-यवन अथवा गांधार कला का जन्म हुआ, ग्रीक कलावंतों की छेनी के स्पर्श से पत्थर फूटा और अपोलो की अनेक मूर्तियाँ निर्मित हुईं। परंतु उस देवता की अभिराम, सम्मोहक और सर्वोत्तम मूर्तियाँ आज रोम और वातिकन के संग्रहालयों में सुरक्षित हैं। इन मूर्तियों में अपोलो का अत्यंत आकर्षक छरहरा तन देखकर ऐसा लगता है जैसे साँचे में ढाल दिया गया हो।[3]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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