मिथिला शक्तिपीठ
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मिथिला शक्तिपीठ
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वर्णन | 'मिथिला शक्तिपीठ' भारतवर्ष के अज्ञात 108 एवं ज्ञात 51 पीठों में से एक है। इसका हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्त्व है। |
स्थान | मिथिला शक्तिपीठ तीन स्थानों पर माना जाता है- 'उग्रतारा मंदिर' (सहरसा, बिहार), 'जयमंगला देवी मंदिर' (समस्तीपुर, बिहार), वनदुर्गा मंदिर' (जनकपुर, नेपाल) |
देवी-देवता | देवी 'उमा' या 'महादेवी' तथा भैरव 'महोदर'। |
संबंधित लेख | शक्तिपीठ, सती |
पौराणिक मान्यता | मान्यतानुसार यह माना जाता है कि इस स्थान पर देवी सती के वाम स्कंध का निपात हुआ था। |
मिथिला शक्तिपीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है। हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाया। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। देवीपुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है।
- मिथिला शक्तिपीठ के निश्चित स्थान को लेकर अनेक मत-मतान्तर हैं।
- बिहार के मिथिला में अनेक देवी मंदिरों को शक्तिपीठ माना जाता है। यहाँ सती के वाम स्कंध का निपात हुआ था।
- मतांतर से तीन विभिन्न स्थानों को शक्तिपीठ माना जाता है, जहाँ वाम स्कंध निपात की मान्यता है-
- एक है जनकपुर (नेपाल) से 15 किलोमीटर पूर्व की ओर मधुबनी के उत्तर पश्चिम में 'उच्चैठ' नामक स्थान का 'वनदुर्गा मंदिर'।
- दूसरा सहरसा स्टेशन के पास स्थित 'उग्रतारा मंदिर'।
- तीसरा समस्तीपुर से पूर्व (61 किलोमीटर दूर) सलौना रेलवे स्टेशन से नौ किलोमीटर आगे 'जयमंगला देवी मंदिर'।
- इस शक्तिपीठ की शक्ति 'उमा' या 'महादेवी' तथा 'भैरव 'महोदर' हैं।
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