हरि विनायक पाटस्कर
हरि विनायक पाटस्कर
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पूरा नाम | हरि विनायक पाटस्कर |
जन्म | 15 मई, 1892 |
जन्म भूमि | पूना, महाराष्ट्र |
मृत्यु | 21 फ़रवरी, 1970 |
मृत्यु स्थान | पूना, महाराष्ट्र |
पति/पत्नी | अन्नपूर्णा बाई |
संतान | एक पुत्री |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | राजनीतिज्ञ तथा मध्य प्रदेश के राज्यपाल |
पार्टी | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
कार्य काल | राज्यपाल- 14 जून, 1957 से 10 फ़रवरी, 1965 |
शिक्षा | बी.ए., एल.एल.बी. तथा एल.एल.डी. |
विद्यालय | 'न्यू इंग्लिश स्कूल', 'फर्ग्युसन कॉलेज' (पूना) तथा 'गवर्नमेन्ट लॉ कॉलेज' (मुम्बई) |
जेल यात्रा | 1942 के स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान आपने जेल यात्रा की। |
पुरस्कार-उपाधि | पद्म विभूषण (1963) |
अन्य जानकारी | हरि विनायक पाटस्कर मध्य प्रदेश में सबसे अधिक अवधि तक रहने वाले राज्यपाल थे। राज्यपाल के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद वे 'असम पर्वतीय सीमा आयोग' के सभापति नियुक्त हुए थे। |
हरि विनायक पाटस्कर (अंग्रेज़ी: Hari Vinayak Pataskar ; जन्म- 15 मई, 1892, पूना[1], महाराष्ट्र; मृत्यु- 21 फ़रवरी, 1970, पूना) भारतीय राजनीतिज्ञ, एक प्रसिद्ध वकील और मध्य प्रदेश के भूतपूर्व राज्यपाल थे। ये भारत की संविधान सभा के सदस्य भी थे। हरि विनायक पाटस्कर बम्बई उच्च न्यायालय और उसके बाद भारत के सर्वोच्च न्यायालय के एडवोकेट रहे। ये सन 1920 से लगातार अनेक वर्षों तक 'अखिल भारतीय कांग्रेस' के सदस्य रहे। हरि विनायक पाटस्कर 1926 में बम्बई विधान परिषद के सदस्य बने थे। आप अपने जीवन काल में कई आयोगों तथा समितियों के अध्यक्ष भी रहे। हरि विनायक पाटस्कर में गंभीरतम विवादों को हल करने की असाधारण क्षमता थी। वे महाराष्ट्र-मैसूर सीमा-विवाद संबंधी चार सदस्यीय समिति के सदस्य थे। उन्होंने आंध्र प्रदेश और मद्रास (वर्तमान चेन्नई) के सीमा-विवाद की भी मध्यस्थता की थी।
जन्म तथा शिक्षा
हरि विनायक पाटस्कर का जन्म 15 मई, 1892 को महाराष्ट्र राज्य के पूना ज़िले में इंदापुर नामक स्थान पर हुआ था। इन्होंने बी.ए., एल.एल.बी. तथा एल.एल.डी. की डिग्रियाँ प्राप्त की थीं। आपने 'न्यू इंग्लिश स्कूल', पूना; 'फर्ग्युसन कॉलेज', पूना तथा 'गवर्नमेन्ट लॉ कॉलेज', मुम्बई से शिक्षा ग्रहण की थी।[2]
विवाह
हरि विनायक पाटस्कर का विवाह 29 मार्च, 1913 को श्रीमती अन्नपूर्णा बाई के साथ हुआ था। ये एक पुत्री के पिता थे।
विभिन्न पदों पर कार्य
- हरि विनायक पाटस्कर 1920 से लगातार अनेक वर्षों तक 'अखिल भारतीय कांग्रेस' के सदस्य रहे।
- सन 1926 में बम्बई विधान परिषद के सदस्य बने तथा 1930 में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के अवतरित होने पर सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया।
- सन 1921-1937 में हरि विनायक पाटस्कर चालीसगांव नगरपालिका के अध्यक्ष रहे।
- 1937-1939 और 1945-1952 में मुम्बई विधान सभा के सदस्य रहे।
- आप 1947-1950 में संविधान सभा के सदस्य भी थे।
- 15 वर्षों तक नारायण बैंकट जमखाना, चालीसगांव की गर्वनिंग वाडी के सभापति रहे और अनेक वर्षों तक चालीसगांव के अंधों के अस्पताल के सभापति रहे।
- सन 1925 से 1945 तक हरि विनायक पाटस्कर ने राजनीतिक पीड़ितों का नि:शुल्क बचाव किया।
- चालीसगांव में हरिजनों के लिये बोडिंग हाऊस का निर्माण करवाया और हाई स्कूल के संस्थपाक रहे।
- कुष्ठ रोगियों और अन्य असहायों और गरीबों की हरि विनायक पाटस्कर हमेशा सहायता करते रहे।[3]
जेलयात्रा
वर्ष 1942 के स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान हरि विनायक पाटस्कर ने जेल यात्रा भी की।
राज्यपाल
हरि विनायक पाटस्कर 1952 में देश के प्रथम सामान्य निर्वाचन में लोक सभा के सदस्य के रूप में विजयी होकर 1955 से 1957 तक विधि एवं तदन्तर नागरिक उड्डयन विभाग के मंत्री पद को सुशोभित करते रहे। तत्पश्चात् दिनांक 14 जून, 1957 से 10 फ़रवरी, 1965 तक वे मध्य प्रदेश के लोकक्रिय राज्यपाल के रूप में प्रजातंत्रित परम्पराओं का अनुसरण करते हुए प्रदेश की जनता और सरकार का मार्गदर्शन करते रहे। हरि विनायक पाटस्कर मध्य प्रदेश में सबसे अधिक अवधि तक रहने वाले राज्यपाल थे। राज्यपाल के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद वे 'असम पर्वतीय सीमा आयोग' के सभापति नियुक्त हुए थे।[3]
व्यक्तित्व
संसदीय मामलों के निष्णात विद्धानों में हरि विनायक पाटस्कर की गणना की जाती थी। एक मूर्धन्य विधिवक्ता के अतिरिक्त आप एक कुशल प्रशासक, महान् शिक्षा शास्त्री तथा लेखक भी थे। इस प्रकार जीवन को पूर्ण बनाने वाला संभवत: कोई भी क्षेत्र उनके व्यक्तित्व से अछूता नहीं रहा। अपने जीवन के अन्तिम समय में 1967 में हरि विनायक पाटस्कर 'पूना विश्वविद्यालय' के उपकुलपति पद को गौरवान्वित कर रहे थे।
असाधारण क्षमता
अपने जीवन काल में हरि विनायक पाटस्कर कई आयोगों तथा समितियों के अध्यक्ष रहे। उनमें गंभीरतम विवदों को हल करने की असाधारण क्षमता थी। वे महाराष्ट्र और मैसूर सीमा के विवाद संबंधी चार सदस्यीय समिति के सदस्य थे। उन्होंने आंध्र प्रदेश और मद्रास (वर्तमान चेन्नई) के सीमा विवाद को भी हल करने के लिए मध्यस्थता की थी।
सम्मान
हरि विनायक पाटस्कर के इन्हीं महान् गुणों के कारण भारत सरकार ने उन्हें 1963 में 'पद्म विभूषण' की राष्ट्रीय उपाधि से अलंकृत किया था।
संविधान निर्माण में योगदान
हरि विनायक पाटस्कर का केन्द्रीय विधि मंत्रित्व काल का ऐतिहासिक 'हिन्दूकोड बिल' भारत के विशाल हिन्दू समाज की प्रगति के इतिहास में सदा अमर रहेगा। देश के संविधान निर्माण में उनके विद्वतापूर्ण योगदान की पंक्तियां तो उनकी स्मृतियाँ सदा जागृत करती रहेंगी।[3]
निधन
मध्य प्रदेश के राज्यपाल पद को सुशोभित करने वाले तथा जनता के बीच ख़ासे लोकप्रिय हरि विनायक पाटस्कर का निधन 21 फ़रवरी, 1970 का पूना (वर्तमान पुणे) में हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वर्तमान पुणे
- ↑ भूतपूर्व राज्यपाल, मध्यप्रदेश (हिन्दी) मध्य प्रदेश विधानसभा। अभिगमन तिथि: 15 सितम्बर, 2014।
- ↑ 3.0 3.1 3.2 पूर्व राज्यपाल श्री हरिविनायक पाटस्कर (हिन्दी) एमपी पोस्ट। अभिगमन तिथि: 15 सितम्बर, 2014।
बाहरी कड़ियाँ
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