पेम अमिअ मंदरु बिरहु

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
कविता भाटिया (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:37, 29 जुलाई 2016 का अवतरण
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
पेम अमिअ मंदरु बिरहु
रामचरितमानस
रामचरितमानस
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड अयोध्या काण्ड
सभी (7) काण्ड क्रमश: बालकाण्ड‎, अयोध्या काण्ड‎, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड‎, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड‎, उत्तरकाण्ड
दोहा

पेम अमिअ मंदरु बिरहु भरतु पयोधि गँभीर।
मथि प्रगटेउ सुर साधु हित कृपासिंधु रघुबीर॥238॥

भावार्थ

प्रेम अमृत है, विरह मंदराचल पर्वत है, भरतजी गहरे समुद्र हैं। कृपा के समुद्र श्री रामचन्द्रजी ने देवता और साधुओं के हित के लिए स्वयं (इस भरत रूपी गहरे समुद्र को अपने विरह रूपी मंदराचल से) मथकर यह प्रेम रूपी अमृत प्रकट किया है॥238॥


पीछे जाएँ
पीछे जाएँ
पेम अमिअ मंदरु बिरहु
आगे जाएँ
आगे जाएँ

दोहा - मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (अयोध्याकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-279

संबंधित लेख