पेरीन बेन
पेरीन बेन
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पूरा नाम | पेरीन बेन |
जन्म | 12 अक्तूबर 1888 |
जन्म भूमि | कच्छ ज़िला, गुजरात |
मृत्यु | 17 फ़रवरी, 1958 |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | क्रांतिकारी एवं गाँधी जी की अनुयायी। |
जेल यात्रा | 1930 व 1932 में |
पुरस्कार-उपाधि | पद्म श्री |
अन्य जानकारी | पेरीन बेन ने 'गाँधी सेवा सेना' के सचिव के रूप में काम किया और 1935 में स्थापित 'हिन्दुस्तानी प्रचार सभा' के काम में भी जुड़ी रही थीं। |
अद्यतन | 15:35, 5 जनवरी 2017 (IST)
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पेरीन बेन (अंग्रेज़ी: Perin Ben, जन्म- 12 अक्तूबर, 1888, ज़िला कच्छ , गुजरात; मृत्यु- 17 फ़रवरी, 1958) पहले क्रांतिकारी और बाद में महात्मा गाँधी की अनुयायी थीं। वे देश की स्वतंत्रता के लिए काम करती थीं। 1930, 1932 में पेरीन बेन को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया था। मुंबई प्रदेश कांग्रेस की संघर्ष समिति की वे प्रथम महिला अध्यक्ष थीं। पेरीन बेन ने 'गाँधी सेवा सेना' के सचिव के रूप में काम किया। स्वतंत्रता के आरंभिक वर्षों में राष्ट्रपति द्वारा पेरीन बेन को 'पद्मश्री' से सम्मानित किया गया था।[1] पेरीन बेन सुप्रसिद्ध ब्रिटिश भारत के एक पारसी बुद्धिजीवी, शिक्षाशास्त्री, कपास के व्यापारी तथा आरम्भिक राजनैतिक एवं सामाजिक नेता दादाभाई नौरोजी की पौत्री थीं। उन्होंने अपने सभी ऐशो-आराम माँ भारती की स्वतंत्रता के लिए प्रति समर्पित कर दिए थे।
परिचय
क्रांतिकारी पेरीन बेन का जन्म 12 अक्तूबर, 1888 ई. को कच्छ रियासत के मांडवी कस्बे में हुआ था। वह भारत के पारसी बुद्धिजीवी और शिक्षाशास्त्री तथा आरम्भिक राजनैतिक एवं सामाजिक नेता दादाभाई नौरोजी की पौत्री थीं। दादाभाई नौरोजी को भारत का वयोवृद्ध पुरुष कहा जाता है। दादाभाई नौरोजी वह व्यक्ति थे, जिनसे प्रभावित होकर महात्मा गांधी ने स्वराज्य के लिए अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए। दादाभाई नौरोजी की पोती होने के कारण ही कहीं न कहीं पेरीन बेन के रक्त में ही स्वराज्य की भावना विद्यमान हो चुकी थी। हालाँकि वे भारत में शिक्षा प्राप्त करने के बाद आगे के अध्ययन के लिए पेरिस गईं। 1925 में पेरीन बेन ने धुनजीशा एस. कैप्टेन से विवाह किया, जो एक वकील थे। विवाह के बाद भी वे राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय रहीं।[2]
स्वतंत्रता संत्राम की शुरुआत
इस पेरिस यात्रा ने पेरीन बेन के जीवन की दिशा ही मोड़ दी। पेरिस में पढ़ाई के दौरान उनकी भेंट मदाम भीखाई जी कामा, लाला हरदयाल, श्यामजी कृष्ण वर्मा जैसे क्रांतिकारियों से हुई। जब अंग्रेज़ पुर्तग़ाल के समुद्र में वीर सावरकर को ले जा रहे थे, वह कूद कर भाग गए थे।
दरअसल 1 जुलाई 1909 को मदनलाल ढींगरा ने विलियम हट कर्जन वायली को गोली मार दी थी, जिस पर वीर सावरकर ने लन्दन टाइम्स में एक लेख लिखा था और जब वह 13 मई 1910 को पेरिस से लन्दन पहुँचे तो उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया; परन्तु 8 जुलाई 1910 को एस.एस. मोरिया नामक जहाज से जब उन्हें भारत ले जाया जा रहा था, तब वह सीवर होल के रास्ते भाग निकले। ब्रिटिश सरकार उन्हें पकड़ने के लिए व्याकुल हो उठी और उनकी खोज़ में लग गई। वीर सवारकर को बचाने का प्रयास कर रहे क्रांतिकारियों में पेरिस बेन भी शामिल हो गईं और यहाँ से शुरू हुई उनकी स्वतंत्रता संग्राम की यात्रा।
गाँधीजी की अनुयायी
सन 1911 में पेरीन बेन भारत आईं और उन्हें यहाँ अंग्रेज़ों के हाथों भेदभाव का बड़ा अपमानजनक अनुभव हुआ। 1919 में पेरीन बेन की महात्मा गांधी से भेंट हुईं और वे गांधी जी की अनुयायी हो गईं। पेरीन बेन ने ‘विदेशी छोड़ो स्वदेशी अपनाओ’ के गांधीजी के अभियान का अनुसरण करते हुए खादी के वस्त्र पहनना शुरू कर दिया। वह खादी के प्रचार और हरिजन उद्धार के कार्यों में जुट गईं। स्वदेशी का प्रचार, मद्य निषेध और महिलाओं को संगठित करना पेरीन बेन के प्रिय विषय बन गए थे। सन 1921 में पेरीन बेन ने गांधीवादी आदर्शों पर आधारित औरतों के अभियान, राष्ट्रीय स्त्री सभा के गठन में महत्वपूर्ण योगदान दिया।[2]
1930 में वे बॉम्बे (अब मुंबई) प्रांतीय कांग्रेस कमिटी की अध्यक्ष पद के लिए चुनी जाने वाली पहली महिला बनीं। उन्होंने महात्मा गांधी द्वारा शुरू किये गये असहयोग आंदोलन में भाग लिया और जिसके चलते उन्हें 1930 में गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया था। 1932 में जेल से मुक्त होने के बाद पेरीन बेन ने ‘गांधी सेवा सेना’ के सचिव के रूप में काम किया और 1935 में स्थापित ‘हिन्दुस्तानी प्रचार सभा’ के काम में भी जुड़ गईं। मुंबई प्रदेश कांग्रेस की संघर्ष समिति की वे प्रथम महिला अध्यक्ष थीं।
पद्मश्री
स्वतंत्रता के आरंभिक वर्षों में राष्ट्रपति ने पेरीन बेन को पद्मश्री से सम्मानित भी किया।
निधन
17 फरवरी, 1958 को पेरीन बेन का देहांत हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 480 |
- ↑ 2.0 2.1 पेरीस ने बदली दी पेरीन की दिशा और कूद पड़ीं स्वतंत्रता आंदोलन में (हिंदी) yuvapress.com। अभिगमन तिथि: 14 अक्टूबर, 2020।
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