प्रयोग:माधवी
माधवी
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पूरा नाम | भाई वीर सिंह |
जन्म | 5 दिसंबर, 1872 |
जन्म भूमि | अमृतसर, पंजाब |
मृत्यु | 10 जून, 1957 |
मृत्यु स्थान | अमृतसर, पंजाब |
अभिभावक | पिता- डॉ. चरनसिंह |
कर्म भूमि | अमृतसर, पंजाब |
कर्म-क्षेत्र | साहित्य, कवि |
मुख्य रचनाएँ | मुख्य काव्य ग्रन्थ- राणा सूरत सिंघ, लहरां दे हार, प्रीत वीणा,कंब की कलाई आदि। |
भाषा | हिन्दी भाषा |
पुरस्कार-उपाधि | 'पद्म भूषण' |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | भाई वीरसिंह के लेखन में गद्य की मात्रा अधिक होते हुए भी उनकी प्रसिद्ध कवि के रूप में अधिक है। |
अद्यतन | 03:31, 11 जनवरी-2017 (IST) |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
भाई वीर सिंह (अंग्रेज़ी: Vir Singh, जन्म- 5 दिसंबर, 1872, अमृतसर, पंजाब; मृत्यु- 10 जून, 1957) आधुनिक पंजाबी काव्य और गद्य के निर्माता के रूप में प्रसिद्ध कवि थे। उन्होंने 1894 ई. में 'खालसा ट्रैक्ट सोसाइटी' की नींव डाली। फिर साप्ताहिक 'खालसा समाचार' निकाला। भाई वीर सिंह को भारत सरकार द्वारा 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया गया।[1]
जन्म एंव परिचय
भाई वीर सिंह का जन्म दिसंबर,1872 ई. में अमृतसर, पंजाब में हुआ था। उनके पिता सिक्ख नेता डॉ. चरनसिंह भी साहित्य में रुचि रखते थे। वीर सिंह का बचपन अपने नाना के यहां बीता। वे भी साहित्यकार थे। इस प्रकार सहित्य के संस्कार वीर सिंह को विरासत में मिले। उन्होंने नाटककार, उपन्यासकार, निबंध-लेखक, जीवनी-लेखक और कवि के रूप में साहित्य की सेवा की है। सिक्ख धर्म में वीर सिंह की अटल आस्था थी और राजनीतिक गतिविधियों से वे सदा दूर रहे।
लेखन कार्य
आरंभ में भाई वीर सिंह ने सिक्ख मत की एकता और श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए अनेक 'ट्रैक्ट' लिखे और 1894 ई. में 'खालसा ट्रैक्ट सोसाइटी' की नींव डाली। फिर साप्ताहिक 'खालसा समाचार' निकाला। उनके चार उपन्यास 'सुंदरी', 'बिजैसिंघ', 'सतवंत कौर' और 'बाबा नौध सिंघ' प्रसिद्ध हैं। 'राजा लखनदारा सिंघ' नाटक है। 'कलगीधार चमत्कार' नामक गुरु गोविंद सिंह की जीवनी और 'गुरु नानक चमत्कार' नामक गुरु नानक की जीवनी लोकप्रिय है। इसके अतिरिक्त आपने अनेक कहानियां भी लिखी है।
मुख्य काव्य ग्रन्थ
भाई वीर सिंह के लेखन में गद्य की मात्रा अधिक होते हुए भी उनकी प्रसिद्ध कवि के रूप में अधिक है। 'राणा सूरत सिंघ', 'लहरां दे हार', 'प्रीत वीणा', 'कंब की कलाई', 'कंत महेली' और 'साइयां जीओ' मुख्य काव्य ग्रन्थ हैं। वे मनुष्यता के उद्बोधन के कवि थे। उनका कहना था कि "ए प्यारे मनुष्य तू धरती से ऊंचा उठकर देख। परमात्मा ने तुझे पंख दिए हैं। जिसके पास ऊँची दृष्टि है, ऊंचा साहस है, वह नीचे क्यों गिरेगा।"
उपाधि
भाई वीर सिंह के योगदान के लिए पंजाब विश्वविद्यालय ने उन्होंने डी.लिट. की मानक उपाधि दी, साहित्य अकादमी ने पुरस्कृत किया और भारत सरकार ने 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया।
जन्म
10 जून, 1957 में भाई वीर सिंह का देहांत हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 569 |
संबंधित लेख
माधवी
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पूरा नाम | भाई संतोख सिंह |
जन्म | 1893 |
जन्म भूमि | सिंगापुर |
मृत्यु | 1927 |
अभिभावक | पिता- सरदार ज्वालासिंह |
नागरिकता | भारतीय |
धर्म | सिक्ख |
आंदोलन | कम्युनिस्ट आंदोलन |
संबंधित लेख | गांधी जी |
अन्य जानकारी | भारतीय सेना को साथ लेकर देशव्यापी क्रांति के द्वारा ब्रिटिश सत्ता को समाप्त करने की योजना बनाई गई। जर्मनी आदि से शस्त्र भेजने की व्यवस्था हुई। |
अद्यतन | 03:31, 12 जनवरी-2017 (IST) |
भाई संतोख सिंह (अंग्रेज़ी: Santokh Singh, जन्म- 1893, सिंगापुर; मृत्यु- 1927) क्रांतिकारी और भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे। भारत की स्वतंत्रता के लिए अमरीका में गठित 'गदर पार्टी' के महामंत्री थे। संतोख सिंह गांधी जी के विचारों और कांग्रेस की नीति के विरोधी और वर्ग संघर्ष के समर्थक थे। अपने विचारों के प्रचार के लिए संतोख सिंह ने 'कीर्ति' नामक पत्रिका भी निकाली।[1]
जन्म एवं परिचय
भाई संतोख सिंह का जन्म 1893 ई. में सिंगापुर में हुआ था। अमृतसर के निवासी उनके पिता सरदार ज्वालासिंह सेना में नियुक्त थे। अमृतसर के खालसा कॉलेज में शिक्षा पाने के बाद 1912 में संतोख सिंह अमरीका चले गए।
क्रांतिकारी गतिविधियों
अमेरिका में भाई संतोख सिंह का संपर्क प्रसिद्ध क्रांतिकारी और "गदर पार्टी" के संस्थापक लाला हरदयाल से हुआ। वे राष्ट्रवादी भावनाओं के करतार सिंह सराबा आदि कुछ अन्य सिक्खों के भी संपर्क में आए। गदर पार्टी के महामंत्री के रूप में संतोख सिंह ने दल को काफी आगे बढ़ाया। भारतीय सेना को साथ लेकर देशव्यापी क्रांति के द्वारा ब्रिटिश सत्ता को समाप्त करने की योजना बनाई गई। जर्मनी आदि से शस्त्र भेजने की व्यवस्था हुई। 21 फरवरी 1915 का दिन इस क्रांति के लिए निर्धारित था। इन स्थानों में नियुक्त भारतीय सैनिकों से संपर्क स्थापित करने के लिए संतोख सिंह बर्मा और मलाया गये। लेकिन अंग्रेजों के एक मुखबिर कृपालसिंह के कारण यह प्रयत्न आरंभ होने से पहले ही दबा दिया गया।
आंदोलन में सम्मिलित
सैनफ्रांसिस्को में कुछ अन्य साथियों के साथ संतोख सिंह पर 1917 में मुकदमा चला और सजा हुई। इस बीच रूप में क्रांति हो चुकी थी। जेल से रिहा होने पर संतोख सिंह रूस चले गए और कम्युनिस्ट आंदोलन में सम्मिलित हो गए। 1924 में भारत आकर उन्होंने पंजाब में कम्युनिस्ट आंदोलन को आगे बढ़ाया। अपने विचारों के प्रचार के लिए संतोख सिंह ने 'कीर्ति' नामक पत्रिका भी निकाली।
निधन
भाई संतोख सिंह का 1927 में देहांत हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 570 |
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