प्रयोग:माधवी
माधवी
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पूरा नाम | भूपेंद्रनाथ दत्त |
जन्म | 4 सितंबर, 1880 |
जन्म भूमि | कोलकाता |
मृत्यु | 26 दिसंबर, 1961 |
मृत्यु स्थान | कोलकाता |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | क्रांतिकारी, लेखक तथा समाजशास्त्री |
धर्म | हिंदू |
शिक्षा | एम.ए., पी.एच.डी. की डिग्री |
संबंधित लेख | स्वामी विवेकानंद |
अन्य जानकारी | उनकी लिखी हुई कुछ प्रसिद्ध पुस्तकें हैं- 'डाइलेक्टिक्स ऑफ हिंदू रिचुलिक्म', 'डाइलेक्टिक्स ऑफ लैंड-इकानामिक्स ऑफ इंडिया', 'स्वामी विवेकानंद- 'पैट्रियट-प्रोफेट', 'सेकंड फ्रीडम स्ट्रगल ऑफ इंडिया', 'आरिजिन एण्ड डिवलपमेंट ऑफ इंडियन सोशल पोलिटी' आदि। |
अद्यतन | 03:31, 12 जनवरी-2017 (IST) |
भूपेंद्रनाथ दत्त (अंग्रेज़ी: Bhupendranath Datta, जन्म- 4 सितंबर, 1880, कोलकाता; मृत्यु- 26 दिसंबर, 1961) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के प्रसिद्ध क्रांतिकारी, लेखक तथा समाजशास्त्री थे। ये स्वामी विवेकानंद के भाई थे। भूपेंद्रनाथ दत्त युवाकाल में 'युगांतर आन्दोलन' से नजदीकी से जुड़े थे। अपनी गिरफ्तारी (सन 1907) तक वे 'युगांतर पत्रिका' के सम्पादक थे। भूपेंद्रनाथ दो बार 'अखिल भारतीय श्रमिक संघ' के अध्यक्ष भी रहे।[1]
जन्म एवं परिचय
भूपेंद्रनाथ दत्त का जन्म 4 सितंबर, 1880 ई. को कोलकाता में हुआ था। इनके परिवार का बंगाल के प्रबुद्ध व्यक्तियों से निकट का संबंध था। भूपेंद्रनाथ की आरंभिक शिक्षा ईश्वर चंद्र विद्यासागर द्वारा स्थापित विद्यालय में हुई थी। उन्होंने राजनीतिक गतिविधियों के साथ अपना अध्ययन भी जारी रखा और अमेरिका से एम.ए. और जर्मनी से पी.एच.डी. की डिग्री प्राप्त की।
क्रांतिकारी गतिविधियां
भूपेंद्रनाथ दत्त शीघ्र ही क्रांतिकारियों के संपर्क में आ गए और बंगाल क्रांतिकारी दल के मुख्य पत्र 'युगांतर' के संपादक बने। 1902 में उन्हें राजद्रोह के अपराध में गिरफ्तार करके एक वर्ष कैद की सजा दे दी गई। जेल से छूटने पर जब भूपेंद्रनाथ दत्त को 'अलीपुर बम कांड' में फंसाने की तैयारी हो रही थी, वे देश से बाहर अमेरिका चले गए। प्रथम विश्वयुद्ध के समय भूपेंद्रनाथ जर्मनी में थे। उन्होंने अमेरिका में स्थापित 'गदर पार्टी' से भी संबंध रखा। 1925 में वे भारत आए। भूपेंद्रनाथ दत्त को यह देखकर दु:ख हुआ कि स्वयं को मार्क्सवादी कहने वाले लोग भारत के स्वतंत्रता संग्राम का विरोध कर रहे हैं।
समाज सुधारक
भूपेंद्रनाथ दत्त कांग्रेस में सम्मिलित हो गए। 1930 की कराची कांग्रेस में किसानों, मजदूरों के हिर संबंधी प्रस्ताव को स्वीकार कराने में उनका बड़ा हाथ था। उसके बाद उन्होंने अपना ध्यान श्रमिकों को संगठित करने पर लगाया। भूपेंद्रनाथ दो बार अखिल भारतीय श्रमिक संघ के अध्यक्ष भी रहे। समाज सुधार के कामों में भी भूपेंद्रनाथ दत्त बराबर भाग लेते रहे। वे जाति-पांत, छुआछूत और महिलाओं के प्रति भेदभाव के विरोधी थे।
लेखन कार्य
भूपेंद्रनाथ नाथ अच्छे लेखक थे। उनकी लिखी हुई कुछ प्रसिद्ध पुस्तकें निम्नलिखित हैं-
- 'डाइलेक्टिक्स ऑफ हिंदू रिचुलिक्म',
- 'डाइलेक्टिक्स ऑफ लैंड-इकानामिक्स ऑफ इंडिया',
- 'स्वामी विवेकानंद- 'पैट्रियट-प्रोफेट',
- 'सेकंड फ्रीडम स्ट्रगल ऑफ इंडिया',
- 'आरिजिन एण्ड डिवलपमेंट ऑफ इंडियन सोशल पोलिटी' आदि।
निधन
26 दिसंबर, 1961 को भूपेंद्रनाथ दत्त का कोलकाता में देहांत हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 579 |
संबंधित लेख
माधवी
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पूरा नाम | भूपेंद्र नाथ बोस |
जन्म | 1859 |
जन्म भूमि | बंगाल |
मृत्यु | 1924 |
मृत्यु स्थान | कोलकाता |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | राजनेता |
पार्टी | कांग्रेस |
शिक्षा | एम.ए. |
विद्यालय | प्रेसीडेंसी कॉलेज |
अन्य जानकारी | 1904 से 1910 तक बंगाल लेजिस्लेचर के सदस्य रहे तथा बंगाल प्रदेश राजनीतिक सम्मेलन की भी उन्होंने अध्यक्षता की। |
अद्यतन | 03:31, 15 जनवरी-2017 (IST) |
भूपेंद्र नाथ बोस (अंग्रेज़ी: Bhupendra Nath Bose, जन्म- 1859, बंगाल; मृत्यु- 1924, कोलकाता) भारतीय राजनीतिज्ञ थे और 1914 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष थे। वे कोलकाता कॉरपोरेशन में म्युनिसिपल कमिश्नत थे।[1]
जन्म एवं परिचय
भूपेंद्र नाथ बोस का जन्म 1859 ई. में कृष्णा नगर बंगाल में हुआ था। प्रेसीडेंसी कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की ।उन्होंने एम.ए. और कानून की शिक्षा कोलकाता से पूरी की। आरंभ में भूपेंद्र नाथ ने सार्वजनिक कार्यों में रुचि ली। भूपेंद्र नाथ उदार विचारों के व्यक्ति थे। शिक्षा, नारी उत्थान, अस्पृश्यता निवारण आदि कार्यों में उन्होंने सहयोग दिया। वे यशासंभव सरकार का समर्थन करने के पक्षपाती थे। साथ ही यह भी कहते थे "कि अनिवार्य होने पर हमें विरोध के लिए भी तत्पर रहना चाहिए।" 1904 से 1910 तक बंगाल लेजिस्लेचर के सदस्य रहे। बंग-भंग के विरोध में जो आंदोलन चला उसके वे समर्थक थे। बंगाल प्रदेश राजनीतिक सम्मेलन की भी उन्होंने अध्यक्षता की।
राजनैतिक जीवन
वह नरम विचार के नेताओं का समय था। भूपेंद्र नाथ बोस की गणना उनमें प्रमुख रूप से की जाती थी। उनका महत्त्व इसी से प्रकट है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 1914 में अपना मद्रास अधिवेशन का उन्हें अध्यक्ष बनाया था। परंतु ज्यों-ज्यों कांग्रेस संघर्ष की दिशा में आगे बढ़ने लगी, भूपेंद्र नाथ बोस उससे हटकर ब्रिटिश सरकार के निकट चले गए।
अन्य सरकारी पद
इसके बाद भूपेंद्र नाथ बोस का पूरा जीवन विभिन्न सरकारी पदों पर ही बीता। 1917 में भारत मंत्री की कौंसिल के सदस्य नामजद होकर वे इंगलैंड गए। 1923 में उन्हें बंगाल के गर्वनर की कौंसिल का सदस्य बनाया गया।
निधन
भूपेंद्र नाथ बोस 1924 में कोलकाता विध्वविद्यालय के कुलपति थे, तभी उनका देहांत हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 580 |
संबंधित लेख
{{सूचना बक्सा राजनीतिज्ञ
|चित्र=Bhupendra-Nath-Bose.jpg
|चित्र का नाम=भूपेश गुप्ता
|पूरा नाम=भूपेश गुप्ता
|अन्य नाम=
|जन्म=अक्टूबर, 1914
|जन्म भूमि=मैमनसिंह ज़िला, पूर्वी बंगाल
|मृत्यु=6 अगस्त, 1981
|मृत्यु स्थान=मोस्को
|मृत्यु कारण=
|अभिभावक=
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|स्मारक=बी.ए.
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|नागरिकता=भारतीय
|प्रसिद्धि=राजनेता, सांसद
|पार्टी=कम्युनिस्ट
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|शिक्षा=कानून की डिग्री
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|संबंधित लेख=
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|अन्य जानकारी=1952 में भूपेश गुप्ता देश की राज्यसभा के सदस्य चुने गए और 1980 तक निरतरं उसके सदस्य बने रहे।
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=03:31, 15 जनवरी-2017 (IST)
भूपेश गुप्ता (अंग्रेज़ी: Bhupesh Gupta, जन्म- अक्टूबर, 1914, मैमनसिंह ज़िला, पूर्वी बंगाल; मृत्यु- 6 अगस्त, 1981, मोस्को) भारतीय नेता और भारत की कम्युनिस्ट पार्टी के एक नेता थे। 1952 में भूपेश गुप्ता देश की राज्यसभा के सदस्य चुने गए। वे पार्टी के पत्र 'स्वाधीनता' और 'न्यू एज' के संपादक भी थे।[1]
जन्म एवं परिचय
भूपेश गुप्ता का जन्म 1914 ई. में पूर्वी बंगाल के मैमनसिंह ज़िले में एक जमींदार परिवार में हुआ था। छोटी उम्र में ही वे क्रांतिकारी दल 'युगांतर' के सदस्य बन गए थे। भूपेश गुप्ता को ब्रिटिश शासन के विरुद्ध संघर्ष में भाग लेने के कारण 1930, 1931 और 1933 में जेल की सजाएं भोगनी पड़ीं। अपनी बी.ए. की परीक्षा उन्होंने जेल के अंदर से ही दी थी। 1937 में जेल से छूटने पर वे कानून की शिक्षा के लिए इंगलैंड गए। डिग्री लेने पर भी भूपेश गुप्ता ने नियमित रूप से वकालत नहीं की।
कम्युनिस्ट आंदोलन से संपर्क
इंगलैंड में ही भूपेश गुप्ता कम्युनिस्ट आंदोलन के संपर्क में आए। 1941 में स्वदेश लौटने पर गिरफ्तार की आशंका से वे भूमिगत हो गए थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के दिनों में जब लोकयुद्ध की पॉलिसी आई और कम्युनिस्ट पार्टी पर से प्रतिबंध हटा लिया गया तो भूपेश गुप्ता भी प्रकट रूप से काम करने लगे।
राजनैतिक जीवन==
1952 में भूपेश गुप्ता देश की राज्यसभा के सदस्य चुने गए और 1980 तक निरतरं उसके सदस्य बने रहे। एक सांसद के रूप में उनके योग्यता का सब लोग सम्मान करते थे। भूपेश गुप्ता भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के पोलित ब्यूरो के सदस्य थे। शोषण का निरंतर विरोध करने वाले भूपेश ने पूर्वी बंगाल में छोड़ी अपनी जमींदारी का कोई मुआवजा नहीं लिया।
निधन
भूपेश गुप्ता का 6 अगस्त, 1981 को मोस्को में देहांत हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 581 |
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