राष्ट्रपति
भारतीय संविधान पर ब्रिटेन के संविधान का व्यापक प्रभाव है। ब्रिटेन के संविधान का अनुकरण करते हुए भारत में संविधान द्वारा संसदीय शासन की स्थापना की गयी है। जिस तरह ब्रिटेन में शासन की प्रमुख वहाँ की साम्राज्ञी होती है, उसी प्रकार से भारत में राज्य का प्रमुख राष्ट्रपति होता है। ब्रिटेन की साम्राज्ञी की तरह भारत का राष्ट्रपति राज्य का औपचारिक प्रमुख होता है और संघ की वास्तविक शक्ति संघ मन्त्रिमण्डल में निहित होती है। इन दोनों देशों के प्रमुखों में मूलभूत अन्तर यह है कि ब्रिटेन की साम्राज्ञी का पद वंशानुगत होता है, जबकि भारत का राष्ट्रपति एक निर्वाचित मण्डल द्वारा निर्वाचित किया जाता है। इसी अन्तर के कारण भारत को प्रजातांत्रिक गणतन्त्र कहा जाता है। भारत में राष्ट्रपति का पद संविधान के अनुच्छेद 52 द्वारा उपबंधित है।
राष्ट्रपति पद की योग्यता
संविधान के अनुच्छेद 58 के अनुसार कोई भी व्यक्ति राष्ट्रपति होने के योग्य तब होगा, जब वह–
- भारत का नागरिक हो।
- पैंतीस वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।
- लोक सभा का सदस्य निर्वाचित किये जाने के योग्य हो, तथा
- भारत सरकार के या किसी राज्य सरकार के अधीन अथवा इन दोनों सरकारों में से किसी के नियन्त्रण में किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन लाभ का पद न धारण करता हो। यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के पद पर या संघ अथवा किसी राज्य के मंत्रिपरिषद का सदस्य हो, तो यह नहीं माना जाएगा कि वह लाभ के पद पर है।
राष्ट्रपति का निर्वाचन
राष्ट्रपति का चुनाव 'अप्रत्यक्ष निर्वाचन' के द्वारा किया जाता है। राष्ट्रपति पद के निर्वाचन में अभ्यर्थी होने के लिए आवश्यक है कि कोई व्यक्ति निर्वाचन के लिए अपना नामांकन करते समय 15,000 रुपये की धरोहर (ज़मानत धनराशि) निर्वाचन अधिकारी के समक्ष जमा करे और उसके नामांकन पत्र का प्रस्ताव कम से कम 50 मतदाताओं के द्वारा किया जाना चाहिए तथा कम से कम 50 मतदाताओं द्वारा उसके नामांकन पत्र का समर्थन भी किया जाना चाहिए।
राष्ट्रपति के निर्वाचन के लिए निर्वाचक मण्डल
अनुच्छेद 54 के अनुसार राष्ट्रपति का निर्वाचन ऐसे निर्वाचक मण्डल के द्वारा किया जाएगा, जिसमें संसद (लोकसभा तथा राज्यसभा) तथा राज्य विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य शामिल होंगे। राष्ट्रपति के निर्वाचक मण्डल में संसद के मनोनीत सदस्य, राज्य विधान सभाओं के मनोनीत सदस्य तथा राज्य विधान परिषदों के सदस्य (निर्वाचित एवं मनोनीत दोनों) शामिल नहीं किये जाते। संघ राज्य क्षेत्रों की विधानसभाओं के सदस्यों को भी 70वें संविधान संशोधन के पूर्व राष्ट्रपति के निर्वाचक मण्डल में शामिल नहीं किया जाता था। लेकिन 70वें संविधान संशोधन द्वारा यह व्यवस्था कर दी गयी है कि दो संघ राज्य क्षेत्रों, यथा पाण्डिचेरी तथा राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र दिल्ली की विधानसभाओं के सदस्य राष्ट्रपति के निर्वाचक मण्डल में शामिल किये जायेंगे। यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि केवल इन दोनों संघ राज्य क्षेत्रों में ही विधानसभा का गठन हुआ है।
निर्वाचक मण्डल में रिक्त स्थान का राष्ट्रपति के चुनाव पर प्रभाव
संविधान सभा में राष्ट्रपति के निर्वाचन प्रक्रिया पर विचार करते समय यह ध्यान नहीं दिया गया था कि निर्वाचक मण्डल में से कोई स्थान रिक्त हो तो राष्ट्रपति का चुनाव कैसे होगा? 1957 में जब राष्ट्रपति का चुनाव किया गया तो निर्वाचक मण्डल में कुछ स्थान खाली थे। इसलिए राष्ट्रपति के चुनाव को इस आधार पर चुनौती दी गई की निर्वाचक मण्डल में स्थान रिक्त होने के कारण राष्ट्रपति का चुनाव अवैध है। बाद में 1961 में ग्याहरवाँ संविधान संशोधन के तहत यह व्यवस्था की गयी कि निर्वाचक मण्डल में स्थान रिक्त होते हुए भी राष्ट्रपति का चुनाव कैसे कराया जा सकता है।
राष्ट्रपति के निर्वाचन की पद्धति
राष्ट्रपति के निर्वाचन पद्धति के सम्बन्ध में संविधान के अनुच्छेद 55 में प्रावधान किया गया है, जिसके अनुसार राष्ट्रपति के निर्वाचन में दो सिद्धान्तों को अपनाया जाता है–
समरूपता तथा समतुल्यता का सिद्धान्त
इस सिद्धान्त, जो अनुच्छेद 55 के खण्ड (1) तथा (2) वर्णित हैं, के अनुसार राज्यों के प्रतिनिधित्व के मापमान में एकरूपता तथा सभी राज्यों और संघ के प्रतिनिधित्व में समतुल्यता होगी। इस सिद्धान्त का तात्पर्य यह है कि सभी राज्यों की विधानसभाओं का प्रतिनिधित्व का मान निकालने के लिए एक ही प्रक्रिया अपनायी जाएगी तथा सभी राज्यों की विधानसभाओं के सदस्यों के मत मूल्य का योग संसद के सभी सदस्य के मत मूल्य के योग के समतुल्य अर्थात् समान होगा। राज्यों की विधानसभाओं के सदस्यों के मतमूल्य तथा संसद के सदस्यों के मतमूल्य को निर्धारित करने के लिए निम्नलिखित प्रक्रिया अपनायी जाएगी।
विधानसभा के सदस्य के मत मूल्य का निर्धारण
प्रत्येक राज्य की विधानसभा के सदस्य के मतों की संख्या निकालने के लिए उस राज्य की कुल जनसंख्या (जो पिछली जनगणना के अनुसार निर्धारित है) को राज्य विधानसभा की कुल निर्वाचित सदस्य संख्या से विभाजित करके भागफल को 1000 से विभाजित किया जाता है। इस प्रकार भजनफल को एक सदस्य का मत मूल्य मान लेते हैं। यदि उक्त विभाजन के परिणामस्वरूप शेष संख्या 500 से अधिक आये, तो प्रत्येक सदस्य के मतों की संख्या में एक और जोड़ दिया जाता है। राज्य विधान सभा के सदस्यों का मूल्य निम्न प्रकार निकाला जाता है–
राज्य की विधानसभा के एक सदस्य का मत मूल्य = राज्य की कुल जनसंख्या / राज्य विधानसभा के निर्वाचित X 1 / 1000 सदस्यों की कुल संख्या
संसद सदस्य के मत मूल्य का निर्धारण
संसद सदस्य का मत मूल्य निर्धारित करने के लिए राज्यों की विधानसभाओं के सदस्यों के मत मूल्यों को जोड़कर संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों के योग का भाग दिया जाता है। संसद सदस्य का मत मूल्य निम्न प्रकार निकाला जाता है–
संसद सदस्य का मत मूल्य = कुल राज्य विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के मत मूल्यों का योग / संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों का योग
इस प्रकार राष्ट्रपति के चुनाव में यह ध्यान रखा जाता है कि सभी राज्य विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के मतों के मूल्य का योग संसद के निर्वाचित सदस्यों के मतों के मूल्य का योग बराबर रहे और सभी राज्यों की विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के मत मूल्य का निर्धारण करने के लिए एक समान प्रक्रिया अपनायी जाए। इसे आनुपातिक प्रतिनिधित्व का सिद्धान्त भी कहते हैं।
एकल संक्रमणीय सिद्धान्त
इस सिद्धान्त का तात्पर्य है कि यदि निर्वाचन में एक से अधिक उम्मीदवार हों, तो मतदाताओं द्वारा मतदान वरीयता क्रम से दिया जाए। इसका आशय यह है कि मतदाता मतदान पत्र में उम्मीदवारों के नाम या चुनाव चिह्न के समक्ष अपना वरीयता क्रम लिखेगा।
मतगणना
राष्ट्रपति के चुनाव के बाद उसी व्यक्ति को निर्वाचित घोषित किया जाता है, जो डाले गये कुल वैध मतों में से आधे से अधिक मत प्राप्त करे। जब राष्ट्रपति के निर्वाचन के बाद मतों की गणना प्रारम्भ होती है, तो सर्वप्रथम अवैध मतपत्रों को निरस्त करके शेष वैध मत पत्रों का मत मूल्य निकाला जाता है और निकाले गए मत मूल्य में 2 का भाग देकर भागफल में एक जोड़कर निर्वाचित घोषित किये जाने वाले उम्मीदवार का कोटा निकाला जाता है। यदि मतगणना के प्रथम दौर में किसी उम्मीदवार को नियत किये गये कोटा के बराबर मत मूल्य प्राप्त हो जाता है, तो उसे निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है। यदि किसी उम्मीदवार को नियम कोटा के बराबर मत मूल्य नहीं प्राप्त होता है, तो मतगणना का दूसरा दौर प्रारम्भ होता है। दूसरे दौर के मतगणना में जिस उम्मीदवार को प्रथम वरीयता का सबसे कम मत मिला होता है, उसको गणना से बाहर करके उसके द्वितीय वरीयता के मत मूल्य को अन्य उम्मीदवारों को स्थानान्तरित कर दिया जाता है। यदि द्वितीय दौर की गणना में भी किसी उम्मीदवार को नियत किये गये कोटा के बराबर मत मूल्य नहीं प्राप्त होता है, तो तीसरे दौर की गणना होती है। तीसरे दौर की गणना में उस उम्मीदवार को गणना से बाहर कर दिया जाता है, जो कि दूसरे दौर की गणना में सबसे कम मूल्य पाता है और इस उम्मीदवार के तृतीय वरीयता मत मूल्य को शेष उम्मीदवारों के पक्ष में स्थानान्तरित कर दिया जाता है। यह प्रक्रिया तब तक अपनायी जाती है, जब तक कि किसी उम्मीदवार को नियत किये गये कोटा के मत मूल्य के बराबर मत मूल्य प्राप्त नहीं हो जाता है।
भारत में राष्ट्रपति का चुनाव
भारत में अब तक 12 व्यक्ति राष्ट्रपति का पद ग्रहण कर चुके हैं, जिनमें से प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 2 बार इस पद को सुशोभित किया है। राष्ट्रपति की पदावधि 5 वर्ष की होती है। लेकिन राजेन्द्र प्रसाद 10 वर्ष से अधिक की अवधि तक राष्ट्रपति का पद धारण किये था। इसका कारण यह था कि 1952 में राष्ट्रपति के प्रथम चुनाव के पूर्व ही 24 जनवरी, 1950 को संविधान सभा के द्वारा राष्ट्रपति के रूप में डॉ. राजेंद्र प्रसाद का चुनाव कर लिया गया था। संविधान के प्रवर्तन की तिथि अर्थात् 26 जनवरी, 1950 से लेकर 12 मई, 1952 तक राजेन्द्र प्रसाद राष्ट्रपति के पद पर रहे।
भारत में अब तक 13 बार राष्ट्रपति के चुनाव हुए हैं, जिनमें से एक बार, अर्थात् 1977 में, श्री नीलम संजीव रेड्डी निर्विरोध राष्ट्रपति चुने गये थे। शेष 12 बार राष्ट्रपति पद के चुनाव में एक से अधिक उम्मीदवार थे। अब तक केवल डॉ. राजेंद्र प्रसाद, फ़ख़रुद्दीन अली अहमद, नीलम संजीव रेड्डी तथा ज्ञानी ज़ैल सिंह को छोड़कर अन्य सभी राष्ट्रपति पूर्व में उपराष्ट्रपति के पद को सुशोभित कर चुके थे। डॉ. एस. राधाकृष्णन लगातार दो बार उपराष्ट्रपति तथा एक बार राष्ट्रपति के पद पर आसीन हुए। निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में वी.वी. गिरी ऐसे राष्ट्रपति निर्वाचित हुए थे, जिन्होंने कांग्रेस का स्पष्ट बहुमत होते हुए भी उसके उम्मीदवार को पराजित किया था। अब तक नीलम संजीव रेड्डी एकमात्र ऐसे राष्ट्रपति हुए हैं, जो एक बार चुनाव में पराजित हुए तथा बाद में निर्विरोध निर्वाचित हुए।
19 जुलाई, 2007 को सम्पन्न 13वें राष्ट्रपति के चुनाव के लिए निर्वाचक मण्डल में 4,896 सदस्य थे, जिसमें 776 सांसद और 4,120 विधायक शामिल हैं। इन सबका कुल मत मूल्य 10,98,882 था। वर्तमान में प्रत्येक सांसद का मत मूल्य 708 है। सांसदों का कुल मत मूल्य 5,49,408 और विधायकों का कुल मत मूल्य 5,49,474 है। राज्यों में उत्तर प्रदेश विधानसभा का मत मूल्य सर्वाधिक 83,824 है। इसके बाद क्रमश: महाराष्ट्र विधानसभा का मत मूल्य 50,400, पश्चिम बंगाल का 44,394, आंध्र प्रदेश का 43,512 और बिहार विधानसभा का मत मूल्य 42,039 है। सिक्किम विधानसभा का मत मूल्य सबसे कम 224 है।
मतदान स्थल
राष्ट्रपति के चुनाव में राज्य विधान सभाओं के सदस्य अपने-अपने राज्यों की राजधानियों में मतदान करते हैं और संसद सदस्य दिल्ली में या अपने राज्य की राजधानी में मतदान कर सकते हैं। यदि कोई संसद सदस्य अपने राज्य की राजधानी में मतदान करना चाहता है तो उसे इसकी सूचना 10 दिन पूर्व ही चुनाव आयोग का देनी चाहिए।
राष्ट्रपति के चुनाव का समय
संविधान के अनुच्छेद 62 में केवल यह अपेक्षा की गई है कि राष्ट्रपति का चुनाव निर्धारित समय के अन्दर सम्पन्न करा लिया जाना चाहिए। निर्वाचन की प्रक्रिया को पाँच वर्ष की अवधि समाप्त हो जाने के बाद स्थगित नहीं रखा जा सकता है। राष्ट्रपति का चुनाव कब कराया जाएगा, इसके सम्बन्ध में संविधान में कोई प्रावधान नहीं किया गया है। संविधान में अनुच्छेद 71 (3) में केवल यह प्रावधान किया गया है कि राष्ट्रपति के निर्वाचन से सम्बन्धित या संसक्त किसी विषय का विनियमन संसद विधि द्वारा कर सकेगी। इस शक्ति का प्रयोग करके संसद ने राष्ट्रपतीय तथा उपराष्ट्रपतीय निर्वाचन अधिनियम, 1952 पारित करके यह प्रावधान किया है कि राष्ट्रपति का चुनाव निवर्तमान राष्ट्रपति की पदावधि की समाप्ति के पूर्व ही कराया जाना चाहिए।
किसी राज्य की विधानसभा भंग होने की स्थिति में राष्ट्रपति चुनाव
किसी राज्य की विधानसभा भंग होने की स्थिति में भी राष्ट्रपति का चुनाव सम्पन्न होता है। इस सन्दर्भ में 11वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1961 में यह स्पष्ट किया गया है कि राष्ट्रपति के चुनाव को इस आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती कि निर्वाचक मण्डल में कोई स्थान रिक्त था। सर्वोच्च न्यायालय ने भी यह निर्णय दिया है कि बिना किसी विधानसभा के ही राष्ट्रपति का चुनाव कराया जा सकता है।
राष्ट्रपति चुनाव में एक विधायक के मत का मूल्य
एक विधायक के मत के मूल्य का फार्मूला = राज्य की कुल जनसंख्या / राज्य विधानसभा के निर्वाचित विधायकों की संख्या X 1000
एक सांसद के मत का मूल्य
- राज्य के कुल निर्वाचित विधायकों के मतों का मूल्य = 5,49,474
- लोकसभा के कुल निर्वाचित सदस्यों की संख्या = 543
- राज्यसभा के कुल निर्वाचित सदस्यों की संख्या = 233
- कुल सांसदों की संख्या = 543+233 = 776
एक सांसद के मत के मूल्य का फार्मूला = राज्य के कुल मतों का मूल्य यानी 5,49,474 / कुल सांसदों की संख्या यानी 778 = 708.085 यानी 708
सांसदों के कुल मतों का मूल्य, 708×776 = 5,49,408 वर्ष 2002 के राष्ट्रपति चुनाव में भाग लेने वाले कुल मतदाताओं की संख्या = कुल विधायक (4120) + कुल सांसद (776) = 4896
सभी मतदाताओं के कुल मतों का मूल्य = 5,49,474+5,49,408 = 10,98,882[1]
राष्ट्रपति के चुनाव को इस आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती कि निर्वाचक मंडल में कोई रिक्त स्थान था। सर्वोच्च न्यायालय ने भी यह निर्णय दिया है कि बिना किसी विधानसभा के ही राष्ट्रपति का चुनाव कराया जा सकता है।
सम्बन्धित विवाद का विनिश्चय
अनुच्छेद 7 के अनुसार राष्ट्रपति के चुनाव से सम्बन्धित विवाद का विनिश्चय उच्चतम न्यायालय द्वारा किया जाएगा। यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित होकर पद ग्रहण कर लेता है और बाद में उसका चुनाव उच्चतम न्यायालय द्वारा अवैध घोषित किया जाता है, तो राष्ट्रपति के पद पर रहते हुए भी उसके द्वारा किया गया कार्य या की गयी घोषणा अविधिमान्य नहीं होगी।
पुननिर्वाचन के लिए योग्यता
अनुच्छेद 57 के अनुसार भारत के राष्ट्रपति पद पर पदस्थ व्यक्ति दूसरे कार्यकाल के लिए भी चुनाव में उम्मीदवार बन सकता है। वैसे संविधान में यह व्यवस्था नहीं की गयी है कि राष्ट्रपति पद पर पदस्थ व्यक्ति दूसरे कार्यकाल के लिए निर्वाचन में भाग ले सकता है या नहीं, लेकिन सामान्यत: यह परम्परा बन गयी है कि राष्ट्रपति पद के लिए कोई व्यक्ति एक ही बार निर्वाचित किया जाता है। इसका अपवाद राजेन्द्र प्रसाद रहे हैं, जो दो बार राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार थे। इसके अतिरिक्त दो राष्ट्रपति ज़ाकिर हुसैन तथा फ़खरुद्दीन अहमद, जो कार्यकाल के दौरान ही मर गये थे, के सिवाय सभी राष्ट्रपति अपने एक कार्यकाल के बाद दूसरी बार राष्ट्रपति के चुनाव में उम्मीदवार नहीं बने।
राष्ट्रपति के द्वारा शपथ
राष्ट्रपति या कोई व्यक्ति, जो किसी कारण से राष्ट्रपति के कृत्यों के निर्वहन के लिए नियुक्त होता है, अपना पद ग्रहण करने के पूर्व अनुच्छेद 60 के तहत भारत के मुख्य न्यायधीश या उसकी अनुपस्थिति में उच्चतम न्यायालय में उपलब्ध वरिष्ठतम न्यायधीश के समक्ष अपने पद के कार्यपालन की शपथ लेता है। राष्ट्रपति के शपथ पत्र का प्रारूप निम्नलिखित रूप में होता है–
मैं, अमुक ईश्वर की शपथ लेता हूँ सत्य निष्ठा से प्रतिज्ञाण करता हूँ कि मैं श्रद्धापूर्वक भारत के राष्ट्रपति के पद का कार्यपालन (अथवा राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन) करूँगा तथा अपनी पूरी योग्यता से संविधान और विधि का परिरक्षण, संरक्षण और प्रतिरक्षण करूँगा और मैं भारत की जनता की सेवा और कल्याण में निरत रहूँगा।
राष्ट्रपति द्वारा लिया जाने वाला शपथ या प्रतिज्ञण उपराष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री के शपथ से इस मामले में भिन्न है कि राष्ट्रपति संविधान और विधि के परिरक्षण, संरक्षण और प्रतिरक्षण का शपथ लेता है।
राष्ट्रपति की पदावधि
अनुच्छेद 56 के अनुसार राष्ट्रपति अपने पदग्रहण की तिथि से पाँच वर्ष की अवधि तक अपने पद पर बना रहता है, लेकिन इस पाँच वर्ष की अवधि के पूर्व भी वह उपराष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र दे सकता है या उसे पाँच वर्ष की अवधि के पूर्व संविधान के उल्लंघन के लिए संसद द्वारा लगाये गये महाभियोग द्वारा हटाया जा सकता है। राष्ट्रपति द्वारा उपराष्ट्रपति को सम्बोधित त्यागपत्र की सूचना उसके द्वारा (उपराष्ट्रपति के द्वारा) लोकसभा के अध्यक्ष को अविलम्ब दी जाती है। राष्ट्रपति अपने पाँच वर्ष के कार्यकाल के पूरा करने के बाद भी तब तक राष्ट्रपति के पद पर बना रहता है, जब तक उसका उत्तराधिकारी पद ग्रहण नहीं कर लेता है।
भारतीय संविधान में प्रावधान किया गया है कि राष्ट्रपति के पद में आकस्मिक रिक्ति के दौरान या उसकी अनुपस्थिति में उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति के पद के कार्यों का निर्वहन करेगा और राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति दोनों के पद में आकस्मिक रिक्ति के दौरान या दोनों की अनुपस्थिति में भारत का मुख्य न्यायधीश राष्ट्रपति के पद के कृत्यों का निर्वहन करेगा। इसी कारण जब 3 मई, 1969 को तत्कालीन राष्ट्रपति ज़ाकिर हुसैन की मृत्यु हुई, तब तत्कालीन उपराष्ट्रपति वी0 वी0 गिरि कार्यकारी राष्ट्रपति नियुक्त किये गये। लेकिन उन्होंने राष्ट्रपति पद के चुनाव में उम्मीदवार होने के लिए अपने पद से त्यागपत्र दे दिया था। तब भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायधीश न्यायमूर्ति मो0 हिदायतुल्ला ने राष्ट्रपति के पद का निर्वहन तब तक किया, जब तक निर्वाचित होकर वी0 वी0 गिरि ने राष्ट्रपति पद का कार्यभार ग्रहण नहीं कर लिया। अब तक तीन उपराष्ट्रपति वी0 वी0 गिरि (राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की मृत्यु के कारण), बी0 डी0 जत्ती (राष्ट्रपति फ़खरुद्दीन अली अहमद की मृत्यु के कारण), तथा मोहम्मद हिदायतुल्ला (राष्ट्रपति ज्ञानी जेल सिंह की अनुपस्थिति के कारण) और एक मुख्य न्यायधीश न्यायमूर्ती मोहम्मद हिदायतुल्ला राष्ट्रपति के पद के कृत्यों का निर्वहन कर चुके हैं।
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