उत्पाद
उत्पाद बौद्ध दर्शन के अनुसार भौतिक तथा मानसिक अवस्थाओं में एक क्षण भी स्थिर रहनेवाला कोई तत्व नहीं है। सभी चीजें प्रदीपशिखा की तरह अनवरत अविच्छिन्न रूप से प्रवाहशील हैं। तो भी, चूँकि हमारा ज्ञान स्थिर कल्पानाओं से बना हुआ है, उस अनित्यस्वरूप की व्याख्या शब्दों से करना कठिन है। अत: बुद्ध के मौलिक अनित्यवाद ने आगे चलकर क्षणिकवाद कार रूप ग्रहण कर लिया। इस 'क्षण' की कल्पना अत्यंत सूक्ष्म की गई। इसमें उत्पाद, स्थिति, भंग के क्षण माने गए। उत्पाद-स्थिति-भंग, इन तीन क्षणों का एक चित्तक्षण या रूपक्षण माना गया। आगे चलकर दार्शनिकों ने बताया कि परमतात्विक दृष्टि में उत्पाद-स्थिति-भंग के तीन क्षण हो ही नहीं सकते, सत्ता की प्रवाहशीलता तो अविच्छिन्न है। (भि.ज.का)[1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 85 |
संबंधित लेख
बौद्ध धर्म शब्दावली |
---|
सुजीता • सुमंत दर्शी • विशाख • विमल कीर्ति • वज्राचार्य • वज्रवाराही • वज्र भैरव • वज्रगर्भ • वज्रकालिका • महाप्रजापति • मंडपदायिका • भद्राकपिला • ब्रह्मदत्ता • पृथु भैरव • पूर्ण मैत्रायणी पुत्र • पूर्ण काश्यप • पटाचारा • नलक • नदीकृकंठ • नंदा (बौद्ध) • धर्म दिन्ना • धमेख • द्रोणोबन • देवदत्त • दशबल • दंतपुर • थेरीगाथा • त्रिरत्न • त्रियान • त्रिमुखी • तनुभूमि • ज्वलनांत • जलगर्भ • छंदक • चातुर्महाराजिक • चलासन • चरणाद्री • चक्रांतर • चक्रसंवर • गोपा • खेमा • खसर्प • खदूरवासिनी • क्रकुच्छंद • केयुरबल • कृष्ण (बुद्ध) • कुशीनार • कुलिशासन • कुक्कुटपाद • कुकुत्संद • कुंभ (बौद्ध) • किसा गौतमी • काय • आश्रव • अंबपाली • अव्याकृत धर्म • अकुशलधर्म • उत्पाद |