मनोज दास
मनोज दास
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पूरा नाम | मनोज दास |
जन्म | 27 फ़रवरी, 1934 |
जन्म भूमि | बालेश्वर, ओडिशा |
मृत्यु | 27 अप्रॅल, 2021 |
मृत्यु स्थान | पुदुचेरी |
पति/पत्नी | प्रतिज्ञा देवी |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | उड़िया साहित्य |
पुरस्कार-उपाधि | पद्म भूषण, 2020 |
प्रसिद्धि | उड़िया साहित्यकार, कवि, लेखक, प्राध्यापक |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | मनोज दास द्वारा अंग्रेज़ी में लिखते हुए भी उनके साहित्य सृजन का मूल स्रोत अंग्रेज़ी या विदेशी साहित्य नहीं है। उनकी कहानी में जिस परम्परा का विकास देखने को मिलता है, वह है संस्कृत तथा उड़िया की लोककथा |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
मनोज दास (अंग्रेज़ी: Manoj Das, जन्म- 27 फ़रवरी, 1934; मृत्यु- 27 अप्रॅल, 2021) प्रसिद्ध उड़िया साहित्यकार थे। उनकी अधिकांश रचनाएँ उड़िया भाषा और अंग्रेज़ी में हैं। उन्हें उनकी साहित्यिक सेवा के लिये 'सरस्वती सम्मान' से सम्मानित किया गया थे। वर्ष 2001 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म श्री से नवाजा था।
परिचय
मनोज दास की पहली कहानी ‘समुद्रर क्षुधा’ 1947 में प्रकाशित हुई थी। हालाँकि शुरू के दिनों में उन्होंने कविता, भ्रमण कहानी तथा रम्य रचना लिखी हैं, पर उनकी साहित्य-साधना की प्रधान विधा है कहानी और कहानीकार के रूप में ही वे विशेष रूप से परिचित हैं। सन 1971 में प्रकाशित ‘मनोज दासंक कथा ओ. कहानी’ में उनकी तब तक लिखी कहानियाँ थीं और मनोज दास को ओड़िसा के एक अग्रणी कथाकार के रूप में स्वीकृति मिल चुकी थी। इसके बाद भी उनके कई अन्य संग्रह प्रकाशित हुए।
उड़िया तथा अंग्रेज़ी कहानीकार
मनोज दास उड़िया तथा अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं के कहानीकार हैं। एक अंग्रेज़ी लेखक के रूप में भी वे अखिल भारतीय स्तर पर स्वीकृत हैं और उनकी अंग्रेज़ी कहानियाँ काफ़ी प्रशंसित हुई हैं। प्रख्यात लेखक ग्राहम ग्रीन ने उन्हें आर. के. नारायण के साथ रखकर देखा है। किसी अन्य ने के. हार्डी, साकी तथा ओ. हेनरी के साथ उनकी तुलना की है। उनके अपने विचार में वे कुछ कहानी पहले उड़िया में लिखते हैं और कुछ पहले अंग्रेज़ी में। बाद में वे उस कहानी को फिर दूसरी भाषा में लिखते हैं। किस भाषा में वे सोचते हैं, इस प्रश्न पर मनोज दास का जवाब है कि वह सोचते हैं नीरव की भाषा में।
मनोज दास द्वारा अंग्रेज़ी में लिखते हुए भी उनके साहित्य सृजन का मूल स्रोत अंग्रेज़ी या विदेशी साहित्य नहीं है। उनकी कहानी में जिस परम्परा का विकास देखने को मिलता है, वह है संस्कृत तथा उड़िया की लोककथा, वेद, उपनिषद की भारतीय सांस्कृतिक धारा और आधुनिक उड़िया गद्य साहित्य के प्रवर्तक फ़क़ीर मोहन सेनापति। मनोज दास ने खुद भी अपने लेखन पर फ़क़ीर मोहन, सोमदेव, विष्णु शर्मा आदि का प्रभाव स्वीकार किया है।
पुरस्कार
साहित्य के क्षेत्र में मनोज दास को काफ़ी सफलता भी मिली। उन्हें साहित्य के क्षेत्र में प्राप्त सम्मानों में से निम्न सम्मान मिले-
- 'ओड़िशा साहित्य अकादमी पुरस्कार' (1965)
- 'केन्द्रीय साहित्य अकादमी पुरस्कार' (1972)
- 'सारला सम्मान' (1981)
- 'विषुव सम्मान' (1987) हैं।
लेखन शैली
जिन गुणों के कारण उनकी कहानियाँ आलोचकों और पाठकों दोनों को प्रिय हैं, वे हैं सशक्त कथानक, मोहक तथा धाराप्रवाह वर्णन शैली रहस्यमय किंवदन्तीय वातावरण और अन्त में एक अव्यक्त मन्तव्य और नैतिक अर्थ। मनोज दास की प्रारम्भिक कहानियों से लेकर अब तक लिखी जाने वाली कहानियों में ये सारे गुण निश्चित रूप से देखे जा सकते हैं। और इन्ही सब कारणों से उनकी कहानी एक बार पढ़ने पर उसे भूल पाना सम्भव नहीं होता। उनकी कहानी का एक सशक्त आकर्षण है उसकी बौद्धिकता व भावुकता अथवा हृदय और मन का सन्तुलन। हालाँकि उनकी सारी कहानियाँ निर्मम बौद्धिकता में सराबोर हैं, पर वे बौद्धिकता, भावुकता और आवेग को दबाती नहीं।
कहानी के अन्त में नीति-शिक्षा का समाधान कहानी के पात्रों को उनकी प्रकृतिगत रोजमर्रा की दिनचर्या के बाहर नहीं खीच सकता। इसलिए ये सारे पात्र जीवन्त व सांसारिक हैं, साधारण सुख-दुःख के भागीदार हैं। केवल कथा कहने के ढँग के प्रधान होने के कारण नहीं, उनकी आभासधर्मी कहानियों में भी यह देखा जा सकता है इन पात्रों को रूप देने के लिए मनोज दास ने जिस तरह की शैली अपनायी है, वह भी उनकी निजी है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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