भारत का इतिहास पाषाण काल
समस्त इतिहास को तीन कालों में विभाजित किया जा एकता है-
- प्राक्इतिहास या प्रागैतिहासिक काल(Prehistoric Age),
- आद्य ऐतिहासिक काल(Proto-historic Age)
- ऐतिहासिक काल(Historic Age)
प्राक् इतिहास या प्रागैतिहासिक काल
इस काल में मनुष्य ने घटनाओं का कोई लिखित विवरण नहीं रखा। इस काल में विषय में जो भी जानकारी मिलती है वह पाषाण के उपकरणों, मिट्टी के बर्तनों, खिलौने आदि से प्राप्त होती है।
आद्य ऐतिहासिक काल
इस काल में लेखन कला के प्रचलन के बाद भी उपलब्ध लेख पढ़े नहीं जा एकते हैं।
ऐतिहासिक काल
मानव विकास के उस काल को इतिहास कहा जाता है, जिसके लिए लिखित विवरण उपलब्ध है। मनुष्य की कहानी आज से लगभग दस लाख वर्ष पूर्व प्रारम्भ होती है, पर ‘ज्ञानी मानव‘ होमो सैपियंस(Homo apiens) का प्रवेश इस धरती पर आज से करीब तीस या चालीस हजार वर्ष पहले ही हुआ।
पाषाण काल
यह काल मनुष्य की सभ्यता का प्रारम्भिक काल माना जाता है। इस काल को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है। -
- पुरा पाषाण काल(Paleolithic Age),
- मध्य पाषाण काल(Mesolithic Age) एवं
- नव पाषाण काल अथवा उत्तर पाषाण काल(Neolithic Age)
पुरापाषाण काल
यूनानी भाषा में Palaios प्राचीन एवं Lithos पाषाण के अर्थ में प्रयुक्त होता था। इन्ही शब्दों के आधार पर ‘पाषाणकाल‘ शब्द बना । यह काल आखेटक एवं खाद्य-संग्रहण काल के रूप में भी जाना जाता है। अभी तक भारत में पुरा पाषाणकालीन मनुष्य के अवशेष कहीं से भी नहीं मिल पाये हैं, जो कुछ भी अवशेष के रुप में मिला है, वह है उस समय प्रयोग में लाये जाने वाले पत्थर के उपकरण। प्राप्त उपकरणों के आधार पर यह अनुमान लगाया जा रहा है कि ये लगभग 2,50,000 ई.पू. के होंगे। अभी हाल में महाराष्ट्र के 'बोरी' नामक स्थान खुदाई में मिले अवशेषों से ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि इस पृथ्वी पर मनुष्य की उपस्थिति लगभग 14 लाख वर्ष पुरानी है। गोल पत्थरों से बनाये गये प्रस्तर उपकरण मुख्य रूप से सोहन नदी घाटी में मिलते हैं। सी-11 सामान्य पत्थरों के कोर तथा फ्लेक्स प्रणाली द्वारा बनाये गये औजार मुख्य रूप से मद्रास, वर्तमान चेन्नई में पाये गये हैं। इन दोनों प्रणालियों से निर्मित प्रस्तर के औजार सिंगरौली घाटी, मिर्जापुर एंवं बेलन घाटी, इलाहाबाद में मिले हैं। मध्य प्रदेश के भोपाल नगर के पास भीम बेटका में मिली पर्वत गुफायें एवं शैलाश्रृय भी महत्वपूर्ण हैं। इस समय के मनुष्यों का जीवन पूर्णरूप से शिकार पर निर्भर था। वे अग्नि के प्रयोग से अनभिज्ञ थे। सम्भवतः इस समय के मनुष्य नीग्रेटो(Negreto) जाति के थे। भारत में पुरापाषाण युग को औजार-प्रौद्योगिकी के आधार पर तीन अवस्थाओं में बांटा जा एकता हैं। यह अवस्थाएं हैं-
काल | अवस्थाएं |
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1- निम्न पुरापाषाण काल | हस्तकुठार (हैंड ऐक्स) और विदारणी (क्लीवर) उद्योग |
2- मध्य पुरापाषाण काल |
शल्क (फ्लेक्स) से बने औजार |
3- उच्च पुरापाषाण काल |
शल्कों और फलकों (ब्लेड) पर बने औजार |
- पूर्व पुरापाषाण काल के महत्पूर्ण स्थल हैं -
स्थल | क्षेत्र |
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1- पहलगाम | कश्मीर |
2- वेनलघाटी |
इलाहाबाद ज़िले में, उत्तर प्रदेश |
3- भीमवेटका और आदमगढ़ |
होशंगाबाद ज़िले में मध्य प्रदेश |
4- 16 आर और सिंगी तालाब |
नागौर ज़िले में, राजस्थान |
5- नेवासा |
अहमदनगर ज़िले में महाराष्ट्र |
6- हुंसगी |
गुलवर्गा ज़िले में कर्नाटक |
7- अट्टिरामपक्कम |
- मध्य पुरापाषाण युग के महत्पूर्ण स्थल हैं -
- भीमवेटका,
- नेवासा,
- पुष्कर,
- ऊपरी सिंध की रोहिरी पहाड़ियां
- नर्मदा के किनारे स्थित समानापुर।
- पुरापाषाण काल में प्रयुक्त होने वाले प्रस्तर उपकरणों के आकार एवं जलवायु में होने वाले परिवर्तन के आधार पर इस काल को हम तीन वर्गो में विभाजित कर सकते हैं।-
- निम्न पुरा पाषाण काल (2,50,000-1,00,000 ई.पू.),
- मध्य पुरापाषाण काल (1,00,000- 40,000 ई.पू.),
- उच्च पुरापाषाण काल (40,000- 10,000 ई.पू.)।
मध्य पाषाण काल
इस काल में प्रयुक्त होने वाले उपकरण आकार में बहुत छोटे होते थे, जिन्हे ‘माइक्रोलिथ‘ (लघु पाषाणोपकरण) कहते थे। पुरापाषाण काल मे प्रयुक्त होने वाले कच्चे पदार्थ क्वार्टजाइट के स्थान पर मध्य पाषाण काल में जेस्पर, एगेट, चर्ट, चालसिडनी जैसे पदार्थ प्रयुक्त किये गये। इस समय के प्रस्तर उपकरण राजस्थान, मालवा, गुजरात, पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश एवं मैसूर मे पाये गये हैं। अभी हाल में ही कुछ अवशेष मिर्जापुर के सिंगरौली, बांदा एवं विन्ध्य क्षेत्र से भी प्राप्त हुए हैं। मध्य पाषाणकालीन मानव अस्थि-पंजर के कुछ अवशेष प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश के सराय नाहरराय तथा महदहा नामक स्थान से प्राप्त हुए हैं। मध्य पाषाणकालीन जीवन भी शिकार पर अधिक निर्भर था। इस समय तक लोग पशुओं में गाय, बैल, भेड़, घोड़े एवं भैंसों का शिकार करने लगे थे।
मध्य पाषाण काल के अन्तिम चरण में कुछ साक्ष्यों के आधार पर प्रतीत होता है कि लोग कृषि एवं पशुपालन की ओर आकर्षित हो रहे थे इस समय मिली समाधियों से स्पष्ट होता है कि लोग अन्त्येष्टि क्रिया से परिचित थे। मानव अस्थिपंजर के साथ कहीं-कहीं पर कुत्ते के अस्थिपंजर भी मिले है जिनसे प्रतीत होता है कि ये लोग मनुष्य के प्राचीन सहचर थे।
बागोर और आदमगढ़ में छठी शताब्दी ई.पू. के आस-पास मध्य पाषाण युगीन लोगों द्वारा भेड़े, बंकरियां रख जाने का साक्ष्य मिलता है। मध्य पाषाण युगीन संस्कृति के महत्वपूर्ण स्थल हैं -
स्थल | क्षेत्र |
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1- वागोरा | राजस्थान |
2- लंधनाज |
गुजरात |
3- सरायनाहरराय, चोपानी, मार्डो, महदहा व दमदमा |
उत्तर प्रदेश |
4- भीमवेटका, आदमगढ़ |
मध्य प्रदेश |
नव पाषाण अथवा उत्तर पाषाण काल
साधरणतया इस काल की सीमा 3500 ई.पू. से 1000 ई.पू. के बीच मानी जाती है। यूनानी भाषा का Neo शब्द नवीन के अर्थ में प्रयुक्त होता है। इसलिए इस काल को ‘नवपाषाण काल‘ भी कहा जाता है। इस काल की सभ्यता भारत के विशाल क्षेत्र में फैली हुई थी। सर्वप्रथम 1860 ई. में 'ली मेसुरियर'(Le Mesurier) ने इस काल का प्रथम प्रस्तर उपकरण उत्तर प्रदेश की टोंस नदी की घाटी से प्राप्त किया। इसके बाद 1872 ई. में 'निबलियन फ्रेजर' ने कर्नाटक के ‘बेलारी‘ क्षेत्र को दक्षिण भारत के उत्तर-पाषाण कालीन सभ्यता का मुख्य स्थल घोषित किया। इसके अतिरिक्त इस सभ्यता के मुख्य केन्द्र बिन्दु हैं - कश्मीर, सिन्धु प्रदेश, बिहार, झारखंड, बंगाल, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, असम आदि।
इस समय प्राप्त प्रस्तर औजार गहरे ट्रेप(Dark Traprock) के बने थे जिन पर एक विशेष प्रकार की पॉलिश लगी होती थी। नव पाषाण काल में चावल की खेती का प्राचीनतम साक्ष्य इलाहाबाद के नजदीक ‘कोल्डिहवा‘ नामक स्थान से मिलता है, जिसका समय 7000-6000 ई.पू. माना जाता है। धान के अतिरिक्त महगड़ा में भी खेती का साक्ष्य मिलता है। महगड़ा में एक पशुवाड़ा भी मिला है। इस समय तक पाषाणकालीन सभ्यता काफी विकसित हो गयी थी। अब मनुष्य आखेटक, पशुपालक से आगे निकल कर खाद्य पदार्थों का उत्पादक एवं उपभोक्ता भी बन गया। अब वह ख़ानाबदोश वाले जीवन को त्याग कर स्थायित्वपूर्ण जीवन की ओर आकर्षित होने लगा। उसे बर्तन बनाने की तकनीक का भी ज्ञान हो गया था। सम्भवतः वस्त्रों की जगह जानवरों की खालों का प्रयोग करते थे। नव पाषाण काल की प्राप्त कुछ पर्वत कन्दराओं और बर्तनों से चित्रकारी का आभास होता है।
कृषि कर्म का प्रारम्भ तो नव पाषाण काल में अवश्य हुआ पर सर्वप्रथम किस स्थान पर कृषि कर्म प्रारम्भ हुआ यह विवाद का विषय है। 1977 से चल रही खुदाई में अब तक प्राप्त साक्ष्यों से ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि सिंध और बलूचिस्तान की सीमा पर स्थित 'कच्छी मैदान' में 'बोलन नदी' के किनारे 'मेहरगढ़' नामक स्थान पर कृषि कर्म का प्रारम्भ हुआ। इस सभ्यता के लोग अग्नि का प्रयोग प्रारम्भ कर दिये थे। 'कुम्भकारी' सर्वप्रथम इसी काल में दृष्टिगोचर होती है। नव पाषाणकालीन महत्वपूर्ण स्थल हैं -
स्थल | क्षेत्र |
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1- गुफकराल और बुर्जहोम | कश्मीर |
2- महगड़ा, चोपानी मांडों और कोल्डिहवा |
उत्तर प्रदेश की वेलन घाटी |
3- चिरांद |
बिहार |
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