ऑटिज़्म
क्या है ऑटिज्म
ऑटिज्म एक मानसिक रोग है जिसके लक्षण जन्म से या बाल्यावस्था (प्रथम तीन वर्षों में) में ही नज़र आने लगते है और व्यक्ति की सामाजिक कुशलता और संप्रेषण क्षमता पर विपरीत प्रभाव डालता है। जिन बच्चो में यह रोग होता है उनका विकास अन्य बच्चो से असामान्य होता है । इससे प्रभावित व्यक्ति, सीमित और दोहराव युक्त व्यवहार करता है जैसे एक ही काम को बार-बार दोहराना। यह जीवनपर्यंत बना रहने वाला विकार है। ऑटिज्मग्रस्त व्यक्ति संवेदनों के प्रति असामान्य व्यवहार दर्शाते हैं, क्योंकि उनके एक या अधिक संवेदन प्रभावित होते हैं। इन सब समस्याओं का प्रभाव व्यक्ति के व्यवहार में दिखाई देता है, जैसे व्यक्तियों, वस्तुओं और घटनाओं से असामान्य तरीके से जुड़ना।
ऑटिज्म का विस्तृत दायरा है। इसके लक्षणों की गंभीरता सीखने और सामाजिक अनुकूलता के क्षेत्र में साधारण कमी से लेकर गंभीर क्षति तक हो सकती है, क्योंकि एक या अनेक समस्याएँ और अत्यधिक असामान्य व्यवहार स्थिति को गंभीर बना सकता है। ऑटिज्म के साथ अन्य समस्या भी हो सकती है, जैसे- मानसिक विकलांगता, मिर्गी, बोलने व सुनने में कठिनाई आदि। यह बहुत कम होने वाली समस्या नहीं है, बल्कि विकास संबंधी विकारों में इसका तीसरा स्थान है।
संख्या
यहाँ तक कि इससे प्रभावित होने वाले व्यक्तियों की संख्या डाउन सिन्ड्रोम की अपेक्षा अधिक है। प्रति 10,000 में से 20 व्यक्ति इससे प्रभावित होते हैं और इससे प्रभावित व्यक्तियों में से 80 प्रतिशत लड़के होते हैं। यह समस्या विश्वभर में सभी वर्गों के लोगों में पाई जाती है। भारत में ऑटिज्म से ग्रस्त व्यक्तियों की संख्या लगभग 1 करोड़ 70 लाख है। 1980 से ऑटिज़्म के मामलों मे नाटकीय ढंग से वृद्धि हुई है जिसका एक कारण चिकित्सीय निदान के क्षेत्र मे हुआ विकास है लेकिन क्या असल मे ये मामले बढे़ है यह एक उनुत्तरित प्रश्न है।
ऑटिज्म के लक्षण
ऑटिज़्म मस्तिष्क के कई भागों को प्रभावित करता है, पर इसके कारणों को ढंग से नहीं समझा जाता। आमतौर पर माता पिता अपने बच्चे के जीवन के पहले दो वर्षों में ही इसके लक्षणों को भाँप लेते हैं। ऑटिज़्म को एक लक्षण के बजाय एक विशिष्ट लक्षणों के समूह द्वारा बेहतर समझा जा सकता है। मुख्य लक्षणों में शामिल हैं -----
- सामाजिक संपर्क मे असमर्थता ----- ऑटिज्म से ग्रस्त व्यक्ति परस्पर संबंध स्थापित नहीं कर पाते हैं तथा सामाजिक व्यवहार मे असमर्थ होने के साथ ही दूसरे लोगों के मंतव्यों को समझने मे भी असमर्थ होते हैं इस कारण लोग अक्सर इन्हें गंभीरता से नहीं लेते। सामाजिक असमर्थतायें बचपन से शुरु हो कर व्यस्क होने तक चलती हैं। ऑटिस्टिक बच्चे सामाजिक गतिविधियों के प्रति उदासीन होते है, वो लोगो की ओर ना देखते हैं, ना मुस्कुराते हैं और ज्यादातर अपना नाम पुकारे जाने पर भी सामान्य: कोई प्रतिक्रिया नहीं करते हैं। ऑटिस्टिक शिशुओं का व्यवहार तो और चौंकाने वाला होता है, वो आँख नहीं मिलाते हैं, और अपनी बात कहने के लिये वो अक्सर दूसरे व्यक्ति का हाथ छूते और हिलाते हैं। तीन से पाँच साल के बच्चे आमतौर पर सामाजिक समझ नहीं प्रदर्शित करते है, बुलाने पर एकदम से प्रतिकिया नहीं देते, भावनाओं के प्रति असंवेदनशील, मूक व्यवहारी और दूसरों के साथ मुड़ जाते हैं। इसके बावजूद वो अपनी प्राथमिक देखभाल करने वाले व्यक्ति से जुडे होते है।
ऑटिज़्म से ग्रसित बच्चे आम बच्चो के मुकाबले कम संलग्न सुरक्षा का प्रदर्शन करते हैं (जैसे आम बच्चे माता पिता की मौजूदगी मे सुरक्षित महसूस करते हैं)। आम धारणा के विपरीत , आटिस्टिक बच्चे अकेले रहना पसंद नहीं करते । दोस्त बनाना और दोस्ती बनाए रखना आटिस्टिक बच्चे के लिये अक्सर मुश्किल साबित होता है। इनके लिये मित्रों की संख्या नहीं बल्कि दोस्ती की गुणवत्ता मायने रखती है।
- बातचीत करने मे असमर्थता ----- उनकी संप्रेषण क्षमता अत्यधिक प्रभावित होती है। लगभग 50% बच्चों में भाषा का विकास नहीं हो पाता है। एक तिहाई से लेकर आधे ऑटिस्तिक व्यक्तियों मे अपने दैनिक जीवन की जरूरतों को पूरा करने के लायक भाषा बोध तथा बोलने की क्षमता विकसित नहीं हो पाती। संचार मे कमियाँ जीवन के पहले वर्ष मे ही दृष्टिगोचर हो जाती हैं जिनमे शामिल है, देर से बोलना, असामान्य भाव, मंद प्रतिक्रिया, और अपने पालक के साथ हुये वार्तालाप मे सामंजस्य का नितांत आभाव। दूसरे और तीसरे साल में, ऑटिस्टिक बच्चे कम बोलते हैं, साथ ही उनका शब्द संचय और शब्द संयोजन भी विस्तृत नहीं होता। उनके भाव अक्सर उनके बोले शब्दों से मेल नहीं खाते। आटिस्टिक बच्चों मे अनुरोध करने या अनुभवों को बाँटने की संभावना कम होती है, और उनमें बस दूसरों की बातें को दोहराने की संभावना अधिक होती है (शब्दानुकरण)।
- सीमित शौक और दोहराव युक्त व्यवहार ----- वे एक ही क्रिया, व्यवहार को दोहराते हैं, जैसे- हाथ हिलाना, शरीर हिलाना और बिना मतलब की आवाजें करना आदि।
- वे प्रकाश, ध्वनि, स्पर्श और दर्द जैसे संवेदनों के प्रति असामान्य प्रतिक्रिया दर्शाते हैं।
- खेलने का उनका अपना असामान्य तरीका होता है।
बाल्यावस्था में ऑटिज्म को कैसे पहचाने
बाल्यावस्था में सामान्य बच्चो एवं ऑटिस्टिक बच्चो में कुछ प्रमुख अन्तर होते है जिनके आधार पर इस अवस्था की पहचान की जा सकती है जैसे:- १.सामान्य बच्चें माँ का चेहरा देखते है और उसके हाव-भाव समझने की कोशिश करते है परन्तु ऑटिज्म से ग्रसित बच्चे किसी से नज़र मिलाने से कतराते है। २.सामान्य बच्चे आवाजे सुनने के बाद खुश हो जाते है परन्तु ऑटिस्टिक बच्चे आवाजों पर ध्यान नही देते। ३.सामान्य बच्चे रे-धीरे भाषा ज्ञान में वृद्धि करते है परन्तु ऑटिस्टिक बच्चे बोलने के कुछ समय बाद अचानक ही बोलना बंद कर देते है तथा अजीब आवाजें निकलतें है। ४.सामान्य बच्चे माँ के दूर होने पर या अनजाने लोगो से मिलने पर परेशान हो जाते है परन्तु ऑटिस्टिक बच्चे किसी के आने-जाने पर परेशान नही होते। ५.ऑटिस्टिक बच्चे तकलीफ के प्रति कोई क्रिया नही करते और बचने की भी कोशिश नही करते। ६.सामान्य बच्चे करीबी लोगो को पहचानते है तथा उनके मिलने पर मुस्कुराते है लेकिन ऑटिस्टिक बच्चे कोशिश करने पर भी किसी से बात नही करते वो अपने ही दुनिया में खोये रहते है । ७.ऑटिस्टिक बच्चे एक ही वस्तु या कार्य में मग्न रहते है तथा अजीब क्रियाओं को बार-बार दुहराते है जैसे: आगे-पीछे हिलना, हाथ को हिलाते रहना। ८.ऑटिस्टिक बच्चे अन्य बच्चों की तरह काल्पनिक खेल नही खेल पाते वह खेलने के वजाय खिलौनों को सूंघते या चाटते है। ९.ऑटिस्टिक बच्चे बदलाव को बर्दास्त नही कर पाते एवं अपने क्रियाकलापों को नियमानुसार ही करना चाहते है। १०.ऑटिस्टिक बच्चे बहुत चंचल या बहुत सुस्त होते है। ११.इन बच्चो में कुछ विशेष बातें होती है जैसे एक इन्द्री का अतितीव्र होना जैसे: श्रवण शक्ति।
कब करें विशेषज्ञ से संपर्क
यहाँ कुछ ऐसे संकेत दिए जा रहे हैं, जिनके दिखाई देने पर बच्चे में ऑटिज्म होने की संभावना हो सकती है। ऐसी स्थिति में शीघ्र से शीघ्र विशेषज्ञ से संपर्क किया जाना चाहिए।
- यदि बच्चा लोगों से संबंध स्थापित नहीं करता हो। अधिकांशतः ऐसी स्थिति जन्म बाद से ही पहचानी जा सकती है, जैसे सामाजिक मुस्कान विलंब से देना अथवा बिलकुल न देना, उठाने के लिए हाथ आगे न बढ़ाना, भावनात्मक लगाव का अभाव।
- भाषा के विकास में विलंब या अधूरा विकास, बिलकुल नहीं बोलना या सुनी हुई बात को बार-बार दोहराना।
- संवेदनों की स्पष्ट क्रियाहीनता, जैसे- वातावरण की वस्तुओं, घटनाओं आदि को बिलकुल भी देखना-सुनना नहीं, अल्प अथवा अधिक प्रतिक्रिया (ध्वनि, प्रकाश, स्पर्श, दर्द के प्रति)।
- मन में असामान्य भाव या भावहीनता, जैसे- खतरे की स्थिति में भय का अभाव, साधारण-सी बात पर अनियंत्रित प्रतिक्रिया, बिना कारण या अनियंत्रित ढंग से हँसना या रोना।
- घंटों तक एक ही क्रिया-व्यवहार दोहराते रहना, जिसका कोई स्पष्ट कारण न हो, जैसे आँखों के सामने बार-बार हाथ ले जाना, आँखों का भेंगापन, निरर्थक आवाजें करना, आँखों के सामने वस्तुओं को लटकाना या घुमाना, शरीर को हिलाते रहना आदि।
- सामान्य तरीके से खेल नहीं पाना, खिलौनों से न खेलकर अन्य वस्तुओं से असामान्य तरीके से खेलना।
- क्रियाओं एवं व्यवहार को दोहराते रहने के स्वभाव के कारण वातावरण में किसी भी प्रकार का परिवर्तन पसंद नहीं करना और उसका विरोध करना। जैसे- सोने का समय, भोजन का प्रकार, फर्नीचर की जमावट, आने-जाने का रास्ता, दिनचर्या आदि में उनकी जो आदत या पसंद होती है, उससे अलग कुछ करने पर उसका विरोध करना।
ऑटिज्म और भ्रांतियाँ
- ये बच्चे अल्पबुद्धि वाले हों, ऐसा जरूरी नहीं है। ऐसा देखा गया है कि कुछ बच्चों का बौद्धिक स्तर सामान्य बच्चों जैसा या उनसे भी अधिक होता है। कुछ ऑटिस्टिक बच्चे तो बहुत कलात्मक गुण वाले भी होते हैं। चूँकि ये बच्चे समाज में मान्य तरीकों को सीखने में असमर्थ होते हैं और ज्यादातर इन बच्चों में भाषा संबंधी दोष होते हैं, इसलिए इनका अभिव्यक्ति का तरीका सामान्य बच्चों से हटकर होता है।
- इन बच्चों को समाज में सहभागिता से रहने, खेलने, उठने-बैठने की बहुत ज्यादा आवश्यकता है। अतः इनसे भागने की बजाय हम सबको मिलकर इन्हें अपनाना चाहिए। हम जितना इन बच्चों से बातें करेंगे, उतना ही ये समाज से जुड़ेंगे। यदि हम अपने सामान्य बच्चों को इनसे दूर न ले जाकर, इनका तिरस्कार न करके सामान्य बच्चों को इन बच्चों की समस्याओं से अवगत कराएँ तो हम सामान्य बच्चों के मन में इन बच्चों के प्रति सम्मान एवं सहयोग की भावना तो जगा ही सकते हैं, साथ ही सामान्य बच्चों को ऑटिस्टिक बच्चों के समस्यात्मक व्यवहार को अपनाने से भी रोक सकते हैं।
- ये बच्चे आक्रामक नहीं होते। इनका व्यवहार एवं अपनी बात को प्रकट करने का तरीका कुछ अलग होता है। उनके अनोखे तरीकों को देखकर अक्सर हमें गलत- फहमी हो जाती है। 1 या 2 प्रतिशत केस में बच्चे के आक्रामक होने की संभावना हो सकती है यदि ऑटिज्म के साथ-साथ बच्चे को कई बड़ी समस्या भी हो तो। इसके लिए हमें ऐसे बच्चों के साथ बातें करते समय सावधान रहने की आवश्यकता है, उनसे भागने की नहीं।
- यह सोचना कि ये बच्चे कुछ नहीं कर सकते, बिलकुल गलत है। चूँकि इन बच्चों में बौद्धिक क्षमता अलग-अलग होती है, इसलिए ये सभी प्रकार के क्षेत्रों में आगे बढ़ सकते हैं। इनको सिर्फ सही मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। ये बच्चे किसी एक क्षेत्र में बहुत अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं जैसे संगीत, नृत्य या कलात्मक कौशल में।
- ऑटिज्म एक अवस्था है, न कि बीमारी। इसके प्रभावों को दवाइयों से कुछ हद तक नियंत्रण में रखा जा सकता है, लेकिन ऑटिज्म को खत्म नहीं किया जा सकता। यह अवस्था जन्मजात भी हो सकती है और जन्म के कुछ सालों बाद भी हो सकती है।
- यह अवस्था जीवनपर्यंत व्यक्ति में रहती है। बच्चे के बड़े हो जाने या शादी कर देने से इसमें अपने आप कोई कमी नहीं आती। हाँ, सही समय पर सही मार्गदर्शन में इसके प्रभावों पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
ऑटिज्म होने के कारण
ऑटिज्म होने के किसी एक वजह को नही खोजी जा सकी है। अनुशोधो के अनुसार ऑटिज्म होने के कई कारण हो सकते है जैसे: १.मस्तिष्क की गतिविधियों में असामान्यता होना। २.मस्तिष्क के रसायनों में असामान्यता होना। ३.जन्म से पहले बच्चे का विकास सामान्य रूप से न हो पाना।
ऑटिज्म का इलाज़
ऑटिज्म की शीघ्र की गई पहचान, मनोरोग विशेषज्ञ से तुंरत परामर्श ही इसका सबसे पहला इलाज़ है। ऑटिज्म एक आजीवन रहने वाली अवस्था है जिसके पूर्ण इलाज़ के लिए यहाँ-वहां भटक कर समय बरबाद ना करे बल्कि इसके बारे में जानकारी जुटाए तथा मनोवैज्ञानिक या मनोचिकित्सक से संपर्क करे।
ऑटिज्म एक प्रकार की विकास सम्बन्धी बिमारी है जिसे पुरी तरह से ठीक नही किया जा सकता लेकिन सही प्रशिक्षण व परामर्श से रोगी को बहुत कुछ सिखाया जा सकता है जो उसे रोज के कामो में उसकी देख-रेख में मदद करता है तथा शुरुआती संज्ञानात्मक या व्यवहारी हस्तक्षेप, बच्चों को स्वयं की देखभाल, सामाजिक, और बातचीत कौशल के विकास में सहायता कर सकते हैं। बहुत कम आटिस्टिक बच्चे ही वयस्क होने पर आत्मनिर्भर होने में सफल हो पाते हैं। आजकल एक आत्मविमोही संस्कृति विकसित हो गयी है, जिसमे कुछ लोगों को इलाज पर विश्वास है और कुछ लोगों के लिये ऑटिज़्म एक विकार होने के बजाय एक स्थिति है। ऑटिज्म से ग्रसित ७०% व्यक्तियों में मानसिक मंदता पायी जाती है जिसके कारण वह एक सामान्य जीवन जीने में पुरी तरह समर्थ नही हो पाते परन्तु अगर मानसिक मंदता अधिक न हो तो ऑटिज्म से ग्रसित व्यक्ति बहुत कुछ सिख पाता है। कभी-कभी बच्चो में ऐसी काबिलियत भी देखी जाती है जो सामान्य व्यक्तियों के समझ और पहुँच से दूर होता है।
ऑटिज्म से ग्रसित बच्चो को मदद
ऑटिज्म से ग्रसित बच्चो को निम्नलिखित तरीको से मदद की जा सकती है -- १.शरीर पर दवाव बनाने के लिए बड़ी गेंद का इस्तेमाल करना। २.सुनने की अतिशक्ति कम करने के लिए कान पर थोडी देर के लिए हलकी मालिश करना। ३.खेल-खेल में नए शब्दों का प्रयोग करे। ४.खिलौनों के साथ खेलने का सही तरीका दिखाए। ५.बारी-बारी से खेलने की आदत डाले। ६.धीरे-धीरे खेल में लोगो की संख्या को बढ़ते जाए। ७.छोटे-छोटे वाक्यों में बात करे। ८.साधारण वाक्यों का प्रयोग करे। ९.रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाले शब्दों को जोड़कर बोलना सिखाए । १०.पहले समझना फिर बोलना सिखाए। ११.यदि बच्चा बोल पा रहा है तो उसे शाबाशी दे और बार-बार बोलने के लिए प्रेरित करे। १२.बच्चो को अपनी जरूरतों को बोलने का मौका दे। १३.यदि बच्चा बिल्कुल बोल नही पाए तो उसे तस्वीर की तरफ इशारा करके अपनी जरूरतों के बारे में बोलना सिखाये। १४.बच्चो को घर के अलावा अन्य लोगो से नियमित रूप से मिलने का मौका दे। १५.बच्चे को तनाव मुक्त स्थानों जैसे पार्क आदि में ले जाए १६.अन्य लोगो को बच्चो से बात करने के लिए प्रेरित करे। १७.यदि बच्चा कोई एक व्यवहार बार-बार करता है तो उसे रोकने के लिए उसे किसी दुसरे काम में व्यस्त रखे। १८.ग़लत व्यवहार दोहराने पर बच्चो से कुछ ऐसा करवाए जो उसे पसंद ना हो। १९.यदि बच्चा कुछ देर ग़लत व्यवहार न करे तो उसे तुंरत प्रोत्साहित करे। २०.प्रोत्साहन के लिए रंग-बिरंगी , चमकीली तथा ध्यान खींचने वाली चीजो का इस्तेमाल करे। २१.बच्चो को अपनी शक्ति को इस्तेमाल करने के लिए उसे शारिरीक खेल के लिए प्रोत्साहित करे। २२.अगर परेशानी ज्यादा हो तो मनोचिकित्सक द्वारा दी गई दवाओ को प्रयोग करे।
|
|
|
|
|