पार्किंसन

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DrMKVaish (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:08, 7 दिसम्बर 2010 का अवतरण
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पार्किंसन रोग ( Parkinson's disease ) आमतौर से 50 साल से अधिक उम्र वालों को होती है। यह मानसिक स्थिति के बदलाव संबंधित बीमारी है। इसकी पहचान हाथ पैर स्थिर रखने पर उसका कांपना, हाथ पैर जकड़न, लेकिन जब हाथ पैर गति करते हैं, तो उनमें कंपन नहीं होता। मानसिक स्थिति में बदलाव के कारण पार्किसन के मरीज की पूरे शरीर की आंतरिक क्रियाओं के साथ बाहरी क्रियाएं भी धीमी हो जाती हैं।

इतिहास

चिकित्सा शास्त्र में बहुत कम बीमारियों के नाम किसी डाक्टर या वैज्ञानिक के नाम पर रखे गये हैं । आम तौर पर ऐसा करने से बचा जाता है । परन्तु लन्दन के फिजिशियन डॉ. जेम्स पार्किन्सन ने सन् १८१७ में इस रोग का प्रथम वर्णिन किया था वह इतना सटीक व विस्तृत था कि आज भी उससे बेहतर कर पाना, कुछ अंशों में सम्भव नहीं माना जाता है । हालांकि नया ज्ञान बहुत सा जुडा है । फिर भी परम्परा से जो नाम चल पडा उसे बदला नहीं गया । डॉ. जेम्स पार्किन्सन के नाम पर इस बीमारी को जाना जाता है। इसके बाद से अब तक लगातार इस पर स्टडी चल रही है, लेकिन किसी खास नतीजे तक नहीं पहुंचा जा सका है।

लक्षण

पार्किन्‍सोनिज्‍म का आरम्भ आहिस्ता आहिस्ता होता है । पता भी नहीं पडता कि कब लक्षण शुरु हुए । अनेक सप्ताहों व महीनों के बाद जब लक्षणों की तीव्रता बढ जाती है तब अहसास होता है कि कुछ गडबड है ।

  • बहुत सारे मरीजों में पार्किन्‍सोनिज्‍म रोग की शुरुआत कम्पन से होती है । कम्पन अर्थात् धूजनी या धूजन या ट्रेमर या कांपना । कम्पन अंग में -- हाथ की एक कलाई या अधिक अंगुलियों का, हाथ की कलाई का, बांह का । पहले कम रहता है । यदाकदा होता है । रुक रुक कर होता है । बाद में अधिक देर तक रहने लगता है व अन्य अंगों को भी प्रभावित करता है । प्रायः एक ही ओर (दायें या बायें) रहता है, परन्तु अनेक मरीजों में, बाद में दोनों ओर होने लगता है।
  • आराम की अवस्था में जब हाथ टेबल पर या घुटने पर, जमीन या कुर्सी पर टिका हुआ हो तब यह कम्पन दिखाई पडता है । बारिक सधे हुए काम करने में दिक्कत आने लगती है, जैसे कि लिखना, बटन लगाना, दाढी बनाना, मूंछ के बाल काटना, सुई में धागा पिरोना । कुछ समय बाद में, उसी ओर का पांव प्रभावित होता है । कम्पन या उससे अधिक महत्वपूर्ण, भारीपन या धीमापन के कारण चलते समय वह पैर घिसटता है, धीरे उठता है, देर से उठता है, कम उठता है । धीमापन, समस्त गतिविधियों में व्याप्त हो जाता है । चाल धीमी / काम धीमा । शरीर की मांसपेशियों की ताकत कम नहीं होती है, लकवा नहीं होता । परन्तु सुघडता व फूर्ति से काम करने की क्षमता कम होती जाती है ।

हाथ पैरों में जकडन होती है । मरीज को भारीपन का अहसास हो सकता है । परन्तु जकडन की पहचान चिकित्सक बेहतर कर पाते हैं - जब से मरीज के हाथ पैरों को मोड कर व सीधा कर के देखते हैं बहुत प्रतिरोध मिलता है । मरीज जानबूझ कर नहीं कर रहा होता । जकडन वाला प्रतिरोध अपने आप बना रहता है ।

  • खडे होते समय व चलते समय मरीज सीधा तन कर नहीं रहता । थोडा सा आगे की ओर झुक जाता है । घुटने व कुहनी भी थोडे मुडे रहते हैं । कदम छोटे होते हैं । पांव जमीन में घिसटते हुए आवाज करते हैं । कदम कम उठते हैं गिरने की प्रवृत्ति बन जाती है । ढलान वाली जगह पर छोटे कदम जल्दी-जल्दी उठते हैं व कभी-कभी रोकते नहीं बनता । चलते समय भुजाएं स्थिर रहती हैं, आगे पीछे झूलती नहीं । बैठे से उठने में देर लगती है, दिक्कत होती है । चलते -चलते रुकने व मुडने में परेशानी होती है ।
  • चेहरे का दृश्य बदल जाता है । आंखों का झपकना कम हो जाता है । आंखें चौडी खुली रहती हैं । व्‍यक्ति मानों सतत घूर रहा हो या टकटकी लगाए हो । चेहरा भावशून्य प्रतीत होता है बातचीत करते समय चेहरे पर खिलने वाले तरह-तरह के भाव व मुद्राएं (जैसे कि मुस्कुराना, हंसना, क्रोध, दुःख, भय आदि ) प्रकट नहीं होते या कम नजर आते हैं ।
  • खाना खाने में तकलीफें होती है । भोजन निगलना धीमा हो जाता है । गले में अटकता है । कम्पन के कारण गिलास या कप छलकते हैं । हाथों से कौर टपकता है । मुंह में लार अधिक आती है । चबाना धीमा हो जाता है । ठसका लगता है, खांसी आती है । नींद में कमी, वजन में कमी, कब्जियत, जल्दी सांस भर आना, पेशाब करने में रुकावट, चक्कर आना, खडे होने पर अंधेरा आना, सेक्स में कमजोरी ।
  • उपरोक्‍त वर्णित अनेक लक्षणों में से कुछ, प्रायः वृद्धावस्था में बिना पार्किन्‍सोनिज्‍म के भी देखे जा सकते हैं । कभी-कभी यह भेद करना मुश्किल हो जाता है कि बूढे व्यक्तियों में होने वाले कम्पन, धीमापन, चलने की दिक्कत डगमगापन आदि पार्किन्‍सोनिज्‍म के कारण हैं या सिर्फ उम्र के कारण।
  • बाद के वर्षों में जब औषधियों का आरम्भिक अच्छा प्रभाव क्षीणतर होता चला जाता है । मरीज की गतिविधियां सिमटती जाती हैं, घूमना-फिरना बन्द हो जाता है । दैनिक नित्य कर्मों में मदद लगती है । संवादहीनता पैदा होती है क्योंकि उच्चारण इतना धीमा, स्फुट अस्पष्ट कि घर वालों को भी ठीक से समझ नहीं आता । स्वाभाविक ही मानसिक स्वास्थ्य पर भी इसका असर पडता है । सुस्ती, उदासी व चिडचिडापन पैदा होते हैं। स्मृति में मामूली कमी देखी जा सकती है ।

उम्र और संख्या

पार्किन्सन रोग समूची दुनिया में, समस्त नस्लों व जातियों में, स्त्री पुरूषों दोनों को होता है । लेकिन पुरुषों में इसका असर थोड़ा ज्यादा देखा गया है। यह मुख्यतया अधेड उम्र व वृद्धावस्था का रोग है । 50 की उम्र पार करने के बाद वैसे तो यह बीमारी किसी को भी हो सकती है, 6० वर्ष से अधिक उम्र वाले हर सौ व्यक्तियों में से एक को यह होता है । विकसित देशो में वृद्धों का प्रतिशत अधिक होने से वहां इसके मामले अधिक देखने को मिलते हैं । इस रोग को मिटाया नहीं जा सकता है । वह अनेक वर्षों तक बना रहता है, बढता रहता है । इसलिये जैसे जैसे समाज में वृद्ध लोगों की संख्या बढती है वैसे-वैसे इसके रोगियों की संख्या भी अधिक मिलती है । वर्तमान में विश्व के 60 लाख से ज्यादा लोग इसकी चपेट में हैं। अकेले अमेरिका में ही इससे दस लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हैं, लाइफ एक्सपेक्टेंसी बढ़ने की वजह से भारत में भी इसके पीड़ितों की संख्या काफी ज्यादा हो गई है। भारत के आंकडे उपलब्ध नहीं हैं, पर उसी अनुपात से १५ लाख रोगी होना चाहिये ।

कारण

  • पार्किसंस एक्सीडेंट के कारण सिर पर चोट से भी हो सकती है। यह वंशानुगत भी हो सकती है।
  • पार्किन्सन रोग व्यक्ति को अधिक सोच-विचार का कार्य करने तथा नकारात्मक सोच ओर मानसिक तनाव के कारण होता है।
  • किसी प्रकार से दिमाग पर चोट लग जाने से भी पार्किन्सन रोग हो सकता है। इससे मस्तिष्क के ब्रेन पोस्टर कंट्रोल करने वाले हिस्से में डैमेज हो जाता है।
  • अधिक नींद लाने वाली दवाइयों का सेवन तथा एन्टी डिप्रेसिव दवाइयों का सेवन करने से भी पार्किन्सन रोग हो जाता है।
  • अधिक धूम्रपान करने, तम्बाकू का सेवन करने, फास्ट-फूड का सेवन करने, शराब तथा नशीली दवाईयों का सेवन करने के कारण भी पार्किन्सन रोग हो जाता है।
  • शरीर में विटामिन `ई´ की कमी हो जाने के कारण भी पार्किन्सन रोग हो जाता है।

इलाज

इस बीमारी को जड़ से खत्म करने वाला इलाज अभी उपलब्ध नहीं है। लिहाजा, इस बीमारी के पेशेंट को जीवनभर दवाई खानी पड़ सकती है। हालांकि दवाओं से रोकथाम हो जाती है। लेकिन बीमारी के असर को कम करने के लिए कई तरह की दवाएं उपलब्ध हैं, जो डोपामिन के स्त्राव को बढ़ाने में मदद करती हैं। लेकिन ये काफी महंगी होती हैं। इनके साइड इफेक्ट्स भी बहुत ज्यादा देखे जाते हैं, इसलिए विशेषज्ञ की देखरेख में ही ये दवाएं दी जाती हैं। प्रापर दवाई लेने से मरीज 30 साल जक जीवित रह सकता है। पार्किसन के मरीजों को दवाइयों का सेवन प्रापर करना चाहिए। इसके साथ ही इस बीमारी के लिए डीप ब्रेन स्टिम्युलेशन सर्जरी भी होने लगी है। दिल्ली में यह सुविधा केवल सिर्फ एम्स व आर्मी हॉस्पिटल में उपलब्ध है। यहां भी सर्जरी का खर्च लगभग पांच लाख रुपए आता है। मरीजों को संभल कर चलना चाहिए क्योंकि वे अचानक लड़खड़ाकर गिर सकते हैं, जिससे पैर हाथ पर चोंटें आ सकती है। साथ ही उन्हें शारीरिक श्रम करने पर भी सावधानियां बरतनी चाहिए।

बीमारी को जड़ से खत्म करने संबंधित दवाओं पर विश्व के जाने माने न्यूरोलाजिस्ट लगातार रिसर्च कर रहे हैं। डाक्टर जयवेल्लू ने बताया कि रिसर्च अभी एनिमल स्टेप पर है। जल्द यह ह्यूमन स्टेप पर आ जाएगा। इसके बाद पार्किसंस बीमारी भी जड़ से खत्म की जा सकेगी।

प्राकृतिक चिकित्सा

  • पार्किन्सन रोग को ठीक करने के लिए 4-5 दिनों तक पानी में नींबू का रस मिलाकर पीना चाहिए। इसके अलावा इस रोग में नारियल का पानी पीना भी बहुत लाभदायक होता है।
  • इस रोग में रोगी व्यक्ति को फलों तथा सब्जियों का रस पीना भी बहुत लाभदायक होता है। रोगी व्यक्ति को लगभग 10 दिनों तक बिना पका हुआ भोजन करना चाहिए।
  • सोयाबीन को दूध में मिलाकर, तिलों को दूध में मिलाकर या बकरी के दूध का अधिक सेवन करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
  • रोगी व्यक्ति को हरी पत्तेदार सब्जियों का सलाद में बहुत अधिक प्रयोग करना चाहिए।
  • रोगी व्यक्ति को जिन पदार्थो में विटामिन `ई´ की मात्रा अधिक हो भोजन के रूप में उन पदार्थों का अधिक सेवन करना चाहिए।
  • रोगी व्यक्ति को कॉफी, चाय, नशीली चीजें, नमक, चीनी, डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • प्रतिदिन कुछ हल्के व्यायाम करने से यह रोग जल्दी ठीक हो जाता है।
  • पार्किन्सन रोग से पीड़ित रोगी को अपने विचारों को हमेशा सकरात्मक रखने चाहिए तथा खुश रहने की कोशिश करनी चाहिए।
  • इस प्रकार से प्राकृतिक चिकित्सा से प्रतिदिन उपचार करे तो पार्किन्सन रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

बाहरी कड़ियाँ


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