हड़प्पा लिपि
हड़प्पा लिपि का सर्वाधिक पुराना नमूना 1853 ई. में मिला था पर स्पष्टतः यह लिपि 1923 तक प्रकाश में आई। सिंधु लिपि में लगभग 64 मूल चिन्ह एवं 205 से 400 तक अक्षर हैं जो सेलखड़ी की आयताकार मुहरों, तांबे की गुटिकाओं आदि पर मिलते हैं। यह लिपि चित्रात्मक थी। यह लिपि अभी तक गढ़ी नहीं जा सकी है। इस लिपि में प्राप्त सबसे बड़े लेख में करीब 17 चिन्ह हैं। कालीबंगा के उत्खनन से प्राप्त मिट्टी के ठीकरों पर उत्कीर्ण चिन्ह अपने पार्श्ववर्ती दाहिने चिन्ह को काटते हैं। इसी आधार पर 'ब्रजवासी लाल' ने यह निष्कर्ष निकाला है - 'सैंधव लिपि दाहिनी ओर से बायीं ओर को लिखी जाती थी।'
अभी हाल में 'के.एन. वर्मा' एवं 'प्रो. एस.आर. राव' ने इस लिपि के कुछ चिन्हों को पढ़ने की बात कही है। सैन्धव सभ्यता की कला में मुहरों का अपना विशिष्ट स्थान था। अब तक कुल करीब 200 मुहरें प्राप्त की जा चुकी हैं। इसमें लगभग 1200 अकेले मोहनजोदाड़ो से प्राप्त हुई हैं। ये मुहरे बेलनाकार, वर्गाकार, आयताकार एवं वृताकार रूप में मिली हैं। मुहरों का निर्माण अधिकतर सेलखड़ी से हुआ है। इस पकी मिट्टी की मूर्तियों का निर्माण 'चिकोटी पद्धति' से किया गया है। पर कुछ मुहरें 'काचल मिट्टी', गोमेद, चर्ट और मिट्टी की बनी हुई भी प्राप्त हुई हैं। अधिकांश मुहरों पर संक्षिप्त लेख, एक श्रृंगी, सांड, भैस, बाघ गैडा, हिरन, बकरी एवं हाथी के चित्र उकेरे गये हैं। इनमें से सर्वाधिक आकृतियां एक श्रृंगी, सांड की मिली हैं। लोथल ओर देशलपुर से तांबे की मुहरे मिली हैं।
मोहनजोदाड़ो से प्राप्त एक त्रिमुखी पुरूष को एक चौकी पर पद्यासन मुद्रा में बैठे हुए दिखलाया गया है। उसके सिर में सींग है तथा कलाई से कन्धे तक उसकी दोनो भुजाएं चूड़ियों से लदी हुई हैं। उसके दाहिने ओर एक हाथी और एक बाघ तथा बाई ओर एक भैंसा और एक गैंडा खड़े हुए हैं। चौकी के नीचे दो हिरण खड़े हैं। मोहनजोदाड़ो से प्राप्त एक अन्य मुहर भक्त घुटने के बल झुका हुआ है। इस भक्त के पीछे मानवीय मुख से युक्त एक बकरी खड़ी है और नीचे की ओर सात भक्त-गण नृत्य में मग्न दिखाए गए हैं। मोहनजोदाड़ो एवं लोथल से प्राप्त एक अन्य मुहर पर 'नाव' का चित्र बना मिला है। हड़प्पा सीलों का सर्वाधिक प्रचलित प्रकार चौकोर है।
मोहनजोदाड़ो, लोथल एवं कालीबंगा से राजमुद्रांक मिले हैं, जिनसें यह संकेत मिलता है कि सम्भवतः इन मुहरों का प्रयोग उन वस्तुओं की गांठो पर मुहर लगाने में किया जाता था जिनका बाहर के देशों को निर्यात किया जाता था।
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