शारदेव

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  • वैदर्भ नामक वीर की कन्या का नाम शारदा था।
  • बारह वर्ष की आयु में उसका विवाह एक बूढ़े ब्राह्मण से हुआ, जो उसी दिन सर्प दंश के कारण मर गया।
  • शारदा अपने माता-पिता के यहाँ रहती थी।
  • एक बार वैध्रुव नामक अंधे मुनि ने उससे प्रसन्न होकर उसे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया। यह ज्ञात होने पर कि वह विधवा है, मुनि ने अपने वरदान को सत्य करने के निमित्त उमा महेश्वर व्रत किया।
  • गिरिजा ने प्रसन्न होकर मुनि के नेत्र ठीक कर दिये तथा बताया कि शारदा पूर्वजन्म में अपनी सौत को बहुत तंग करती थी, इसी से वह 51 जन्मों में विधवा रहेगी, किन्तु मुनि के दिये वरदान को सत्य करने के निमित्त उसकी भेंट नित्य स्वप्न में पूर्व पति होगी, उसी से उसे पुत्र की प्राप्ति होगी।
  • कालान्तर में उसका स्वप्नदर्शी पति (जिसने पांडवदेश में पुन: जन्म लिया था) उसे मिला।
  • दोनों एक-दूसरे को स्वप्न में देखते थे, अत: उन्होंने परस्पर पहचान लिया। दोनों साथ ही रहने लगे। उसके साथ ही शारदा सती हो गई। उसके पुत्र का नाम शारदेव हुआ।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ