पहलवी भाषा

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पहलवी भाषा / Pahalvi Language

  • पहलवी भाषा भरोपीय परिवार की एक शाखा है। यह मध्य भारतीय - ईरानी भाषाओं के उपसमूह की एक भाषा है।। अखमेनियाई साम्राज्य (610 से 336 तक ) से इस्लाम की स्थापना (ईसा के बाद सातवीं शताब्दी ) तक यह भाषा प्रचलन में थी। यह एक अनुमानित काल है, जो उपलब्ध अभिलेखों तथा रचनाओं पर आधारित है।
  • अपने विकास के आरंभिक चरण में पहलवी भाषा को 'पार्थी', 'पहविग' या 'पहलवनायक' कहते थे, जो पहलवी भाषा की एक बोली है। यह पूर्वोत्तर ईरान के एक प्रांत पार्थिया ( आधुनिक खुरासान ) में बोली जाती थी। पार्थियाई लोग , जिन्हें अशकोनियाई भी कहा जाता है, पूर्वोत्तर ईरान के क़बाइली थे और उन्होंने यूनानियों को ईरान से बाहर निकालकर ई॰पू॰ 250 में अपने राज्य की स्थापना की। उनका शासन 224 ई॰ तक चला, हालांकि पार्थियाई लोग लंबे समय तक शासन में रहे, लेकिन पहली शताब्दी तक यूनानी भाषा सरकारी भाषा के रूप में कायम रही। भाषा सरकारी भाषा के रूप में पहलवनायक को लागू किए जाने के बाद यूनानी प्रभाव बरक़रार रहा।
  • प्रख्यात ईरानी चित्रकार और पैगंबर मानी ( ज़-215-216 , मेसोपोटामिया में ईरानी माता-पिता के यहां, बाद में पार्थियाई शासन के तहत कार्यरत ) द्वारा प्रसारित धर्म या मत मानीवाद के शास्त्र भी इसी लिपी में लिखे गये।
  • दक्षिण-पश्चिम प्रांत फ़ारस में 224 ई॰पू॰ में सासानियाई लोगों ने पार्थियाई लोगों से सत्ता छीन ली। उन्होंने पारसी को अपना राजधर्म घोषित कर दिया, हालांकि मानीवाद और बौध्द धर्म जैसे अन्य मत भी देश के विभिन्न हिस्सों में जीवित थे। सासानियाई लोगों ने ईरानी तथा पड़ोसी राज्यों के विशाल क्षेत्र पर 652 ई॰ तक राज किया, जिसके बाद इस पर इस्लामी शक्तियों का क़ब्ज़ा हो गया।
  • पहलवी की दक्षिण-पश्चिम बोली पारसी का विकास सासानियाई उत्कर्ष के साथ हुआ। पहलवनायक और पारसी बोलियों के लिए प्रयुक्त लिपि सीरियाई लिपि में कुछ स्थानीय परिवर्तन के बाद बनाई गई।
  • पार्थियाई लोगों के शासनकाल में राजभाषा बनी पहलवी भाषा ने अन्य बोलियों की उत्पत्ति का मार्ग प्रशस्त किया, लेकिन अपनी सरकारी स्थिति के कारण यह प्रधान भाषा बनी रही। पहलवी भाषा में राजा अपने दरबार को संबोधित करते थे तथा यह रे, हमादान, नॉहवंद और अज़रबैजान जैसे नगरों की मुख्य बोली थी।
  • पहलवी लिपि में 14 अक्षर हैं प्रत्येक ध्वनिग्राम कई ध्वनियों का प्रतिनिधित्व करता है। पहलवी में तीन छोटे और तीन दीर्घ स्वर, दो संयुक्त स्वर और एक उपस्वर है। इसमें लगभग 23 व्यंजन हैं यह निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है कि फ़ारसी-अरबी लिपि ने किस काल में पहलवी लिपि का स्थान लिया, क्योंकि इस्लामी काल के कुछ अभिलेख, जैसे 1022-1023 ई॰ के उत्तरी ईरान में कैस्पियन तट पर लाज़िम स्तंभ ( गाज़ बंदरगाह के निकट ) पहलवी लिपि में हैं। इस्लाम के प्रसार के बाद भी अल्पसंख्यक समुदाय ने पहलवी भाषा में संचार जारी रखा।
  • सातवीं-आठवीं शताब्दी में भारत प्रवास कर गए पारसी अपनी धार्मिक रचनाओं को सुरक्षित रखने के लिए इस लिपि का इस्तेमाल करते रहे। पारसियों के पुस्तकालयों व संसाधनों में इस धर्म का साहित्य अब भी पहलवी लिपि में सुरक्षित हैं। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पुरोहितों द्वारा प्रसारित अवेस्ता के पाठ को सासानियाई शासन के आरंभिक काल में पहलवी लिपि में लिपिबध्द किया गया।
  • नौवीं शताब्दी तक 'दिनकार्ड' या 'दिनकार्ट', 'बंदाहिश्न', 'अर्दा विराफ़-नामा' जैसी महत्त्वपूर्ण धार्मिक रचनाओं को भी पहलवी लिपि में लिख लिया गया था।
  • इस भाषा की व्याकरण प्रणाली में दो वचन हैं-
  1. एकवचन व
  2. बहुवचन।
  • दो लिंग हैं-
  1. पुल्लिंग व
  2. स्त्रीलिंग।
  • पहलवी भाषा में प्राचीन पारसी और अवेस्ताई भाषा के लगभग एक हज़ार शब्द शामिल हैं, जो चित्राक्षर के रूप में थे।
  • पहलवी भाषा आधुनिक फ़ारसी भाषाओं, विशेषकर फ़ारसी और दारी का आधार बनी।
  • मुंबई में कामा संस्थान और पुस्तकालय पहलवी भाषा के अध्ययन के केंद्र हैं।