पुनर्जन्म

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एक अवधारणा है कि आदमी जब मरता है तो उसकी आत्मा उसमे से बाहर निकल जाती है और इस ज़िन्दगी के कर्मो के अनुसार उसको दूसरा शरीर मिलता है। अलग-अलग धर्मो और सम्प्रदायों में इस बात के लिए अलग-अलग सोच है। कुछ वैज्ञानिक इसे धार्मिक अंधविश्वास मानते हैं तो कुछ वैज्ञानिक इस पर रिसर्च कर रहे हैं। यह एक रहस्य ही है कि मृत्यु के बाद कोई जीवन है क्या? भारत में पुनर्जन्म के बारे में बहुत प्राचीन काल से चर्चा चलती आ रहीं हैं। हिन्दू, जैन, बौद्ध धर्मं के ग्रंथों में इनका उल्लेख पाया जाता है। यह माना जाता है कि आत्मा अमर होती है और जिस तरह इंसान अपने कपडे बदलता है उसी तरह वह शरीर बदलती है। मनुष्य को अगले जन्म अच्छी या खराब जगह जन्म पिछले जीवन के पुण्य या पाप कि वजह से मिलता है। पश्चिमी देशों में भी कुछ जगहों पर इन धारणाओं को माना जाता है। प्रसिद्द दार्शनिक सुकरात, प्लेटो और पैथागोरस भी पुनर्जन्म पर विश्वास करते थे। क्रिशचैनिती, इस्लाम में इसे मान्यता नहीं है परन्तु कुछ इसे व्यक्तिगत विचारों के लिए छोड़ देते है। वैज्ञानिकों में शुरू में इस विषय पर बहुत बहस हुई, कुछ ने इसके पक्ष में दलीलें दीं तो कुछ ने उन्हें झूठा साबित करने कि कोशिश की, कुछ विज्ञानिकों ने कहा यदि यह सच है तो लोग अपने पिछले जन्म की बाते याद क्यों नहीं रखते ? ऐसा कोई भौतिक सबूत नहीं मिलता है जिससे आत्मा का एक शरीर से दूसरे शरीर में जाते हुए साबित किया जा सके इसलिए इसे कानूनी मान्यता भी नहीं प्राप्त है। फिर भी कुछ वैज्ञानिकों ने इस पर रिसर्च किया और कुछ मनोविज्ञानिक पुनर्जन्म को मानकर, इसी आधार पर इलाज कर रहे है।
पुनर्जन्म का अर्थ है पुन: नवीन शरीर प्राप्त होना। प्रत्येक मनुष्य का मूल स्वरूप आत्मा है न कि शरीर। हर बार मृत्यु होने पर मात्र शरीर का ही अंत होता है। इसीलिए मृत्यु को देहांत (देह का अंत) कहा जाता है। मनुष्य का असली स्वरूप आत्मा, पूर्व कर्मों का फल भोगने के लिए पुन: नया शरीर प्राप्त करता है। आत्मा तब तक जन्म-मृत्यु के चक्र में घूमता रहता है, जब तक कि उसे मोक्ष प्राप्त नहीं हो जाता। मोक्ष को ही निवार्ण, आत्मज्ञान, पूर्णता एवं कैवल्य आदि नामों से भी जानते हैं। पुनर्जन्म का सिद्धांत मूलत: कर्मफल का ही सिद्धांत है। मनुष्य के मूलस्वरूप आत्मा का अंतिम लक्ष्य परमात्मा के साथ मिलना है। जब तक आत्मा का परमात्मा से पुनर्मिलन (मोक्ष) नहीं हो जाता। तब तक जन्म-मृत्यु-पुनर्जन्म-मृत्यु का क्रम लगातार चलता रहता है।
प्रामाणिकता हिंदूओं में अत्यंत प्रचलित एवं प्रसिद्ध अवतार भगवान श्रीकृष्ण ने पुनर्जन्म की मान्यता को सत्य बताया है। गीताकार श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि मेरे बहुत से जन्म हुए हैं और तुम्हारे भी। मैं उन्हें जानता हूं लेकिन तुम नहीं जानते। एक स्थान पर ईसा मसीह ने कहा है कि मैं इब्राहीम से पहले भी था। अमर आत्माइस प्रकार हम देखते हैं कि एक ही आत्मा अलग-अलग शरीरों मे जन्म ग्रहण करता है।
पुनर्जन्म आज एक धार्मिक सिद्धान्त मात्र नहीं है। इस पर विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों एवं परामनोवैज्ञानिक शोध संस्थानों में ठोस कार्य हुआ है। वर्तमान में यह अंधविश्वास नहीं बल्कि वैज्ञानिक तथ्य के रुप में स्वीकारा जा चुका है। पुनरागमन को प्रमाणित करने वाले अनेक प्रमाण आज विद्यमान हैं। इनमें से सबसे बड़ा प्रमाण ऊर्जा संरक्षण का सिद्धांत है। विज्ञान के सर्वमान्य संरक्षण सिद्धांत के अनुसार ऊर्जा का किसी भी अवस्था में विनाश नहीं होता है, मात्र ऊर्जा का रुप परिवर्तन हो सकता है। अर्थात जिस प्रकार ऊर्जा नष्ट नहीं होती, वैसे ही चेतना का नाश नहीं हो सकता। चेतना को वैज्ञानिक शब्दावली में ऊर्जा की शुद्धतम अवस्था कह सकते हैं। चेतना सत्ता का मात्र एक शरीर से निकल कर नए शरीर में प्रवेश संभव है। पुनर्जन्म का भी यही सिद्धांत है। भौतिक ऊर्जा और आत्म ऊर्जा में फर्क इतना ही है कि आत्म ऊर्जा चेतना युक्त होती है जबकि भौतिक ऊर्जा चेतना से रहित होती है। कर्मफल एवं जन्म-मरण का चक्र पुनर्जन्म का वास्तविक अर्थ है आत्मा अपनी आवश्यकता के अनुसार एक नया शरीर धारण करना। हमारा भौतिक शरीर पांच तत्वों पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से मिलकर बना है। मृत्यु के पश्चात शरीर पुन: इन्हीं पांचों तत्वों में विलिन हो जाता है। किसी कारण, आवश्यकता या परिस्थिति के अनुसार यह आत्मा शरीर को छोड़कर मुक्त हो जाता है। एक निर्धारित समय तक मुक्त रहने के पश्चात आत्मा अपने पूर्व कर्मों एवं संस्कारों के अनुसार पुन: एक नया शरीर प्राप्त करता है। जब तक कि समस्त पिछले कर्मों एवं संस्कारों का पूर्णत: समापन नहीं हो जाता, आत्मा को जन्म मृत्यु के चक्र में घूमना पड़ता है।
पुनर्जन्म का दूसरा प्रत्यक्ष प्रमाण पूर्वजन्म की स्मुति युक्त बालकों का जन्म लेना है। बालकों के पूर्वजन्म की स्मृति की परीक्षा आजकल दार्शनिक और परामनोवैज्ञानिक करते हैं। पूर्वभव के संस्कारों के बिना मोर्जाट चार वर्ष की अवस्थ्सा में संगीत नहीं कम्पोज कर सकता था। लार्ड मेकाले और विचारक मील चलना सीखने से पूर्व लिखना सीख गए थे। वैज्ञानिक जान गाॅस तब तीन वर्ष का था तभी अपने पिताजी की गणितीय त्रुटियों को ठीक करता था। इससे प्रकट है कि पूर्वभव में ऐसे बालकों को अपने क्षेत्र में विशेष महारत हासिल थी। तभी वर्तमान जीवन में संस्कार मौजूद रहे। प्रथमतः शिशु जन्म लेते ही रोता है। स्तनपान करने पर चुप हो जाता है। कष्ट में रोना ओर अनुकूल स्थिति में प्रसन्नता प्रकट करता है। शिशु बतख स्वतः तैरना सीख जाती है। इस तरह की घटनाएं हमें विवश करती हैं यह सोचने के लिए कि जीव पूर्वजन्म के संस्कार लेकर आता है। वरन नन्हें शिशुओं को कौन सिखाता है?
डॉ. स्टीवेन्सन ने अपने अनुसंधान के दौरान कुछ ऐसे मामले भी देखे हैं जिसमें व्यक्ति के शरीर पर उसके पूर्वजन्म के चिन्ह मौजूद हैं। यद्यपि आत्मा का रुपान्तरण तो समझ में आता है लेकिन दैहिक चिन्हों का पुनः प्रकटन आज भी एक पहेली है। बेरूत में एक छोटे से लड़के ने अपने इक्कीस साल के मैकेनिक होने की बात कही। उसने बताया की उसकी मौत एक बीच रोड पर तेजी से आती कार की टक्कर से हुई थी। बहुत सारे लोगों के सामने उसने ड्राईवर का नाम, एक्सीडेंट की जगह, मैकेनिक के मातापिता का नाम, उसके चचेरे भाई-बहनों और दोस्तों के बारे में बताया। लोगों ने उसकी बताई बातों की विस्तार से खोजबीन की और पाया कि सूक्ष्मतम विवरण सही हैं जबकि वह मैकेनिक उस लड़के के पैदा होने के कई साल पहले ही मर गया था। वैज्ञानिक स्टीवन्सन ने इस घटना का गहराई से अध्ययन किया। उसने लड़के की बातचीत से लेकर अन्य सभी बातों के सिलसिलेवार दस्तावेज बनाये। उसने लड़के के जन्म चिन्ह, घावों और कटने के निशान इत्यादि को मृतक के रिकॉर्ड से मिलाया और पाया की वे एकदम एक से है। उस वैज्ञानिक ने चालीस साल तक ऐसी ही घटनाओं का अध्ययन किया और उन पर किताब भी लिखी।
डॉ. हेमेन्द्र नाथ बनर्जी का कथन है कि कभी-कभी वर्तमान की बीमारी का कारण पिछले जन्म में भी हो सकता है। श्रीमती रोजन वर्ग की चिकित्सा इसी तरह हुई। आग को देखते ही थर-थर कांप जाने वाली उक्त महिला का जब कोई भी डॉक्टर इलाज नहीं कर सका। तब थककर वे मनोचिकित्सक के पास गई। वहां जब उन्हें सम्मोहित कर पूर्वभव की याद कराई कई, तो रोजन वर्ग ने बताया कि वे पिछले जन्म में जल कर मर गई थीं। अतः उन्हें उसका अनुभव करा कर समझा दिया गया, तो वे बिल्कुल स्वस्थ हो गई। इसके अतिरिक्त वैज्ञानिकों ने विल्सन कलाउड चेम्बर परीक्षण में चूहे की आत्मा की तस्वीर तक खींची है। क्या इससे यह प्रमाणित नहीं होता है कि मृत्यु पर चेतना का शरीर से निर्गमन हो जाता है?
सम्पूर्ण विश्व के सभी धर्मो, वर्गों, जातियों एवं समाजों में पुनर्जन्म के सिद्धांतों किसी न किसी रुप में मान्यता प्राप्त है। अंततः इस कम्प्युटर युग में भी यह स्पष्ट है कि पुनर्जन्म का सिद्धांत विज्ञान सम्मत है। आधुनिक तकनीकी शब्दावली में पुनर्जन्म के सिद्धांत को इस तरह समझ सकते हैं। आत्मा का अदृश्य कम्प्युटर है और शरीर एक रोबोट है। हम कर्मों के माध्यम से कम्प्युटर में जैसा प्रोग्राम फीड करते हैं वैसा ही फल पाते हैं। कम्प्युटर पुराना रोबोट खराब को जाने पर अपने कर्मों के हिसाब से नया रोबोट बना लेता है। पुनर्जन्म के विपक्ष में भी अनेक तर्क एवं प्रक्ष खड़े हैं। यह पहेली शब्दों द्वारा नहीं सुलझाई जा सकती है। जीवन के प्रति समग्र सजगता एवं अवधान ही इसका उत्तर दे सकते हैं। संस्कारों की नदी में बढ़ने वाला मन इसे नहीं समझ सकता है।
वैज्ञानिक आधार पुनर्जन्म की पूर्णत: वैज्ञानिक मान्यता के प्रति कुछ लोगों के मन में संदेह होता है। कुछ तो इस मान्यता को पूर्णत: काल्पनिक एवं अवास्तविक मानते हैं। उनका कहना है कि यदि पहले भी हमारे जन्म हो चुके हैं तो हमें उनकी याद क्यों नहीं है। संदेह रखने वालों को सोचना चाहिए कि मनुष्य इसी जन्म की तमाम बातों, घटनाओं एवं विचारों से इतना अशांत एवं तनावग्रस्त हो जाता है कि यदि पूर्व जन्मों की बातें भी याद रहे तो वह पागल ही हो जाए। यह प्रकृति की मनुष्य पर असीम कृपा एवं करुणा ही है कि वह पिछले जन्मों की सारी घटनाएं भुला देती है। यदि पिछले सभी जन्मों की सारी घटनाएं हूबहू याद रहे तो मनुष्य अपना मानसिक संतुलन बनाए नहीं रख सकता। यही कारण है कि प्रकृति मनुष्य को पिछली घटनाओं और और दुखों को भुलाकर एक नई आशाभरी शुरुआत करने का अवसर प्रदान करती है।


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