बारदोली सत्याग्रह
सूरत (गुजरात) के बारदोली तालुके में 1920 ई. में किसानों द्वारा 'लगान' न अदायगी का आन्दोलन चलाया गया। इस आन्दोलन में केवल 'कुनबी-पाटीदार' जातियों के भू-स्वामी किसानों ने ही नहीं, बल्कि 'कालिपराज' (काले लोग) जनजाति के लोगों ने भी हिस्सा लिया। बारदोली सत्याग्रह पूरे राष्ट्रीय आन्दोलन का सबसे संगठित, व्यापक एवं सफल आन्दोलन रहा है। बारदोली के 'मेड़ता बन्धुओं' (कल्याण जी और कुंवर जी) तथा दयाल जी ने किसानों के समर्थन में 1922 ई. से आन्दोलन चलाया था। बाद में इसका नेतृत्व सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किया।
गाँधीजी की सलाह
बारदोली क्षेत्र में कालिपराज जनजाति रहती थी, जिसे 'हाली पद्धति' के अन्तर्गत उच्च जातियों के यहाँ पुश्तैनी मजदूर के रूप में कार्य करना होता था। गाँधी जी की सलाह पर बारदोली के कार्यकताओं ने कालिपराजों का सम्मेलन आयोजन होता था। 1927 ई. के इस सम्मेलन की अध्यक्षता गाँधी जी ने की तथा 1927 ई. में ही कालिपराजों के वार्षिक सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए कालिपराओं को रानीपराज (बनवासी) की उपाधि दी। कांग्रेस ने अपने विरोध द्वारा लगान में की गयी 30 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी को अनुचित सिद्ध किया। बड़े पैमाने पर इसका विरोध हुआ। अन्त में 1927 ई. में सरकार ने इसे घटाकर 21.9 प्रतिशत करने की घोषण की।
वल्लभ भाई का नेतृत्व
4 फ़रवरी, 1928 ई. को वल्लभ भाई पटेल ने बारदोली किसान सत्याग्रह का नेतृत्व संभाला। सर्वप्रथम बढ़ी हुई लगान के विरुद्ध सरकार को पत्र लिखा गया, किन्तु सरकार द्वारा कुछ सकारात्मक उत्तर नहीं मिला। परिणामस्वरूप पटेल ने किसानों को संगठित किया तथा उन्हें लगान न अदा करने के लिए कहा। दूसरी तरफ़ कांग्रेस के नरमपंथी गुट ने 'सर्वेण्ट्स ऑफ़ इण्डिया सोसाइटी' के माध्यम से सरकार द्वारा किसानों की माँग की जाँच करवाने का अनुरोध किया। 'बारदोली सत्याग्रह' नाम से एक दैनिक पत्रिका निकाली गयी। बम्बई विधान परिषद के भारतीय नेताओं ने त्यागपत्र दे दिया। ब्रिटेन की संसद में भी बहस हुई। वायसराय लॉर्ड इरविन ने भी बम्बई के गर्वनर विल्सन को मामले को शीघ्र निपटाने का निर्देश दिया। उधर पटेल की गिरफ्तारी की सम्भावना को देखते हुए वैकल्पिक नेतृत्व के लिए 2 अगस्त, 1928 ई. को गाँधी जी बारदोली पहुँच गये।
आन्दोलन की सफलता
महिलाओं ने भी इस आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसमें बम्बई की पारसी महिला मीठूबेन पेंटिट, भक्तिवा, मनीबेन पटेल, सुपुत्री शारदाबेन शाह और शादराशाह के नाम उल्लेखनीय हैं। पटेल से बारदोली के लोग प्रभावित हुए। इसी सत्याग्रह के दौरान पटेल को वहाँ की औरतों ने सरदार की उपाधि प्रदान की थी। सरकार ने ब्रूम फ़ील्ड और मैक्सवेल को बारदोली मामलें की जाँच करने का आदेश दिया। जाँच रिपोर्ट में बढ़ी हुई 30 प्रतिशत लगान को अवैध घोषित किया गया। अतः सरकार ने लगान घटाकर 6.03 प्रतिशत कर दिया। इस प्रकार सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में बारदोली किसान आन्दोलन सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। गाँधी जी ने इस सफलता पर कहा कि, "बारदोली संघर्ष चाहे जो कुछ भी हो, यह स्वराज्य की प्राप्ति के लिए संघर्ष नहीं हैं, लेकिन इस तरह का हर संघर्ष हर कोशिश हमें स्वराज के क़रीब पहुँचा रही है"।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख