छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-3 खण्ड-11
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- छान्दोग्य उपनिषद के अध्याय तीसरा का यह ग्यारहवाँ खण्ड है।
मुख्य लेख : छान्दोग्य उपनिषद
- ब्रह्मज्ञान किसे देना चाहिए?
- इस खण्ड में ऋषि 'ब्रह्मज्ञान' को सुयोग्य शिष्य को ही प्रदान करने की बात कहते हैं।
- जो साधक 'ब्रह्मज्ञान' के निकट पहुंच चुका है अथवा उसमें आत्मसात हो चुका है, उसके लिए सूर्य या ब्रह्म न तो उदित होता है, न अस्त होता है।
- वह तो सदा दिन के प्रकाश की भांति जगमगाता रहता है और साधक उसी में मगन रहता है।
- किसी समय यह 'ब्रह्मा जी ने प्रजापति से कहा था।
- देव प्रजापति ने इसे मनु से कहा और मनु ने इसे प्रजा के लिए अभिव्यक्त किया।
- उद्दालक ऋषि को उनके पिता ने अपना ज्येष्ठ और सुयोग्य पुत्र होने के कारण यह ब्रह्मज्ञान दिया था।
- अत: इस ब्रह्मज्ञान का उपदेश अपने सुयोग्य ज्येष्ठ पुत्र अथवा शिष्य को ही देना चाहिए।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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