विवाह संस्कार

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स्नातकोत्तर जीवन विवाह का समय होता है, अर्थात् विद्याध्ययन के पश्चात विवाह करके गृहस्थाश्रम में प्रवेश करना होता है। यह संस्कार पितृ-ऋण से उऋण होने के लिए किया जाता है। मनुष्य जन्म से ही तीन ऋणों से बनकर जन्म लेता है। देव-ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण—ये तीन ऋण हैं। इनमें से अग्रिहोत्र अर्थात यज्ञादिक कार्यों से देव-ऋण, वेदादिक शास्त्रों के अध्ययन से ऋषि-ऋण और विवाहित पत्नी से पुत्रोत्पत्ति आदि के द्वारा पितृ-ऋण से उऋण हुआ जाता है।