झूठा सच (उपन्यास)
हिन्दी साहित्य में अगर सबसे श्रेष्ठ उपन्यास चुनने के लिए कहा जाए तो एक नाम सबसे पहले आता हैं और वो है यशपाल के द्वारा लिखा गया - झूठा सच।
यह उपन्यास 'वतन और देश’ और ‘देश का भविष्य’ दो भागों में लिखा गया है।
- ‘‘यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि ‘झूठासच’ हिन्दी का सर्वोत्कृष्ट यथार्थवादी उपन्यास है।...‘झूठा सच’ उपन्यास-कला की कसौटी पर खरा उतरता ही है, पाठकों के मनोरंजन की दृष्टि से भी सफल हुआ है।...इस उपन्यास की गणना हम गर्व के साथ विश्व के दस महानतम उन्यासों में कर सकते हैं।’’ - नवनीत, जनवरी, 1959
- ‘झूठा सच’ यशपाल जी के उपन्यासों में सर्वश्रेष्ठ है। उसकी गिनती हिन्दी के नये पुराने श्रेष्ठ उपन्यासों में होगी-यह निश्चित है। यह उपन्यास हमारे सामाजिक जीवन का एक विशद् चित्र उपस्थित करता है। इस उपन्यास में यथेष्ट करुणा है, भयानक और वीभत्स दृश्यों की कोई कमी नहीं। श्रंगार रस को यथासम्भव मूल कथा-वस्तु की सीमाओं में बाँध कर रखा गया है। हास्य और व्यंग्य ने कथा को रोचक बनाया है और उपन्यासकार के उद्देश्य को निखारा है। - रामविलास शर्मा
- ‘झूठा सच’ देश विभाजन और उसके परिणाम के चित्रण की काफी ईमानदारी से लिखी गई कहानी है। पर यह उपन्यास इसी कहानी तक ही सीमित नहीं है। देश-विभाजन की सिहरन उत्पन्न करने वाली इस कहानी में स्नेह, मानसिक और शारीरिक आकर्षण, महात्वाकांक्षा, घृणा, प्रतिहिंसा आदि की अत्यंत सहज प्रवाह से बढ़ने वाली मानवता पूर्ण कहानी भी आपको मिलेगी। ‘‘...‘झूठा सच’ हिन्दी उपन्यास साहित्य की अत्यंत श्रेष्ठ और प्रथम कोटि की रचना है। - आजकल, अक्टूबर, 1959
- काशीनाथ सिंह ने कहा कि यशपाल का उपन्यास झूठा सच हिन्दी साहित्य में एक मील का पत्थर है। इसमें विभाजन की त्रासदी को व्यापक फलक पर प्रस्तुत किया गया है। हिन्दी में विभाजन के बारे में लिखा गया यह सर्वोत्तम उपन्यास है।
- झूठासच में सच को कल्पना से रंग कर उसी जन समुदाय को सौंप रहा हूँ जो सदा झूठ से ठगा जाकर भी सच के लिये अपनी निष्ठा और उसकी ओर बढ़ने का साहस नहीं छोड़ता। -यशपाल
कथानक
यशपाल में कथा कहने की अद्भुत क्षमता थी। यशपाल का ‘झूठा सच’ स्वतंत्रता पूर्व और प्राप्ति के बाद के यथार्थ को चित्रित करने वाला उपन्यास है। इसका पहला खण्ड ‘वतन और देश’ और दूसरा खण्ड ‘देश का भविष्य’ आज़ादी के पूर्व और अज़ादी के बाद के भारत की संघर्ष कथा को बड़ी सजीवता से रूपायित करते हैं। इस उपन्यास ने सिद्ध कर दिया कि यशपाल बहुत विशाल फलक पर जीवन के विविध रूपों, आयामों, समस्याओं और जटिलताओं को अपने ढ़ंग से प्रभावशाली रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं। इसलिए इस उपन्यास को औपन्यासिक महाकाव्य की संज्ञा दी जा सकती है।[1]
यथार्थ चित्रण
‘झूठा सच’ के दोनों भागों - ‘वतन और देश’ और ‘देश का भविष्य’ में देश के सामयिक और राजनैतिक वातावरण को यथा-सम्भव ऐतिहासिक यथार्थ के रूप में चित्रित करने का यत्न किया गया है। उपन्यास के वातावरण को ऐतिहासिक यथार्थ का रूप देने और विश्वसनीय बना सकने के लिये कुछ ऐतिहासिक व्यक्तियों के नाम ही आ गये हैं परन्तु उपन्यास में वे ऐतिहासिक व्यक्ति नहीं, उपन्यास के पात्र हैं। कथानक में कुछ ऐतिहासिक घटनायें अथवा प्रसंग अवश्य हैं परन्तु सम्पूर्ण कथानक कल्पना के आधार पर उपन्यास है, इतिहास नहीं है।[2]
पात्र
झूठा सच उपन्यास के पात्र तारा, जयदेव, कनक, गिल, डाक्टर नाथ, नैयर, सूद जी, सोमराज, रावत, ईसाक, असद और प्रधान मंत्री भी काल्पनिक पात्र हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मार्क्सवादी धारा :यशपाल (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 23 दिसम्बर, 2012।
- ↑ झूठा सच (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 23 दिसम्बर, 2012।
बाहरी कड़ियाँ
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