कनॉट प्लेस
कनॉट प्लेस दिल्ली का प्रमुख व्यवसायिक केंद्र है। इसका नाम ब्रिटेन के शाही परिवार के सदस्य ड्यूक ऑफ़ कनॉट के नाम पर रखा गया था। इस बाज़ार का डिजाइन डब्ल्यू. एच. निकोलस और टॉर रसेल ने बनाया था। यह बाज़ार अपने समय का भारत का सबसे बड़ा बाज़ार था।
इतिहास
कनॉट प्लेस की बनावट घोड़े की नाल की बनावट से मेल खाती है और इसके ढ़ांचे की प्रेरणा ब्रिटेन में स्थित रॉयल क्रीसेंट से ली गई थी। कनॉट प्लेस बसाने की योजना वास्तुविद एच निकोलस की थी, लेकिन अंजाम दिया वास्तुविद राबर्ट टॉर रसल ने। यह इलाका माधोगंज गाँव के नाम से जाना जाता था, जहाँ चारों ओर जंगल था। माधोगंज गाँव जयपुर के महाराजा जयसिंह की रियासत का हिस्सा था। उन्होंने यह जगह अंग्रेज़ों को भेंट की। बाकी कुछ जगह दो रुपये प्रति वर्ग मीटर की दर से स्थानीय लोगों से खरीदी गई। ड्यूक ऑफ कनॉट के नाम पर अंग्रेज़ बहादुरों की गोरी मेमों के सैर-सपाटे के लिए बसाए गए इस बाजार की शक्ल बिल्कुल अलग थी। जब अंग्रेज़ों ने इस जगह को अपने ज़िला केंद्र के तौर पर चुना तो गाँवों के बसने वाले लोगों को उजाड़ने की नौबत आई। तब उन्हें करोल बाग़ इलाक़े में बसाया गया। नई दिल्ली के ड्राइंग रूम की तरफ कनॉट प्लेस को सजाया-संवारा। इस ड्राइंग रूम का एल्सीडी टीवी बना रीगल सिनेमा।
विशेषता
- यह बाज़ार अपनी स्थापना के 65 साल बाद भी दिल्ली में ख़रीदारी का प्रमुख केंद्र है।
- यहाँ किताबों की दुकानें भी हैं जहाँ आपको भारत के बारे में जानकारी देने वाली बहुत अच्छी किताबें मिल जाएंगी।
- यहाँ सभी बड़ी-बड़ी कम्पनियों के शोरुम स्थित हैं।
- जॉर्ज पंचम के भाई ड्यूक ऑफ़ कनॉट के आगमन पर 1931 में बने इस बाज़ार में हर प्रकार की ख़रीददारी की जा सकती है।
- कनॉट प्लेस के मध्य में रंग-बिरंगी रोशनी से सज़ा गुलमोहर के पेड़ों से घिरा केन्द्रीय बग़ीचा भी आया हुआ है।
- कॉलोनियों की तरह यहाँ सभी भवन बने हुए हैं।
- प्रत्येक भवन के आगे सुन्दर बरामदा है, जो मध्य में स्थित पार्क के सामने है। यहाँ से समान दूरी पर आठ सड़कों का घेरा है।
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