शचीन्द्रनाथ सान्याल
शचीन्द्रनाथ सान्याल (जन्म- 1893, बनारस, उत्तर प्रदेश, ब्रिटिश भारत; मृत्यु- 7 फ़रवरी, 1942) भारत की आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाले प्रसिद्ध क्रांतिकारी थे। वे राष्ट्रीय व क्रांतिकारी आंदोलनों में सक्रिय भागीदार होने के साथ ही क्रान्तिकारियों की नई पीढ़ी के प्रतिनिधि भी थे। इसके साथ ही वे 'गदर पार्टी' और 'अनुशीलन संगठन' के दूसरे स्वतंत्रता संघर्ष के प्रयासों के महान कार्यकर्ता और संगठनकर्ता थे। वर्ष 1923 में उनके द्वारा खड़े किए गये "हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन" को ही भगत सिंह एवं अन्य साथियों ने "हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक संघ" के रूप में विकसित किया। शचीन्द्रनाथ सान्याल को जीवन में दो बार 'काला पानी' की सज़ा मिली। उन्होंने 'हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन' के गठन के साथ ही देश बन्धुओं के नाम एक अपील जारी की थी, जिसमें उन्होंने भारत के पूर्ण स्वतंत्रता के लक्ष्य के साथ और सम्पूर्ण एशिया के महासंघ बनाने की परिकल्पना भी प्रस्तुत की थी।
जन्म तथा परिवार
शचीन्द्रनाथ सान्याल का जन्म 1893 ई. में उत्तर प्रदेश के वाराणसी (आधुनिक बनारस) में हुआ था। इनके पिता का नाम हरिनाथ सान्याल तथा माता का नाम वासिनी देवी था। शचीन्द्रनाथ के अन्य भाइयों के नाम थे- रविन्द्र, जितेन्द्र और भूपेन्द्र। इनमें भूपेन्द्र सान्याल सबसे छोटे थे। पिता हरिनाथ सान्याल ने अपने सभी पुत्रों को बंगाल की क्रांतिकारी संस्था 'अनुशीलन समिति' के कार्यों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया था। इसी का परिणाम था कि शचीन्द्रनाथ के बड़े भाई रविन्द्र सान्याल 'बनारस षड़यंत्र केस' में नजरबन्द रहे। छोटे भाई भूपेन्द्र सान्याल को 'काकोरी काण्ड' में पाँच वर्ष क़ैद की सज़ा हुई और तीसरे भाई जितेन्द्र 1929 के 'लाहौर षड़यंत्र केस' में भगत सिंह आदि के साथ अभियुक्त थे।
क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत
शचीन्द्रनाथ का शुरुआती जीवन देश की राष्ट्रवादी आंदोलनों की परिस्थितियों में बीता। 1905 में "बंगाल विभाजन" के बाद खड़ी हुई ब्रिटिश साम्राज्यवाद विरोधी लहर ने उस समय के बच्चों और नवयुवकों को राष्ट्रवाद की शिक्षा व प्रेरणा देने का महान कार्य किया। शचीन्द्रनाथ सान्याल और उनके पूरे परिवार पर इसका प्रभाव पड़ा। इसके फलस्वरूप ही 'चापेकर' बन्धुओं की तरह 'सान्याल बन्धु' भी साम्राज्यवाद विरोधी राष्ट्रवादी धारा के साथ दृढ़ता के साथ खड़े रहे। शचीन्द्रनाथ के पिता की मृत्यु 1908 में हो गयी। इस समय उनकी आयु मात्र पन्द्रह साल थी। इसके वावजूद शचीन्द्रनाथ न केवल देश की स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्ध होकर स्वयं आगे बढ़ते रहे अपितु पिता के समान ही अपने तीनों भाइयों को भी इसी मार्ग पर ले चलने में सफल रहे। 'काले पानी' की सज़ा के दौरान अपने क्रांतिकारी जीवन और समकालीन क्रान्तिकारियों के जीवन एवं गतिविधियों पर लिखी अपनी पुस्तक "बंदी जीवन" की भूमिका में शचीन्द्रनाथ ने स्वयं लिखा है कि- "जब मैं बालक ही था, तभी मैंने संकल्प कर लिया था कि भारतवर्ष को स्वाधीन किया जाना है और इसके लिए मुझे सामरिक जीवन व्यतीत करना है"। इसी उद्देश्य को अपनाकर शचीन्द्रनाथ वैचारिक एवं व्यहारिक जीवन में निरंतर आगे बढ़ते रहे।
अनुशीलन समिति की स्थापना
वर्ष 1908 में ही अपनी पन्द्रह वर्ष की आयु में शचीन्द्रनाथ सान्याल ने काशी में 'अनुशीलन समिति' की स्थापना की। इसे बंगाल के क्रान्तिकारियों के अनुशीलन समिति की शाखा के रूप में स्थापित किया गया था। हालाँकि बंगाल की समिति से काशी की समिति का कोई सम्बन्ध नहीं हो पाया था। वैसे भी इस समिति का प्रारम्भिक स्वरूप व्यायामशाला का था। बाद में जब बंगाल की 'अनुशीलन समिति' को अवैध घोषित कर दिया गया तो उन्होंने अपनी संस्था का नाम "यंग मैन्स एसोसिएशन" कर लिया, जो व्यायामशाला से आगे बढ़कर ब्रिटिश विरोधी क्रान्त्रिकारी संगठन बनने लगा। यह एसोशिएसन शचीन्द्रनाथ द्वारा अपने बूते पर खड़ा किया गया एक नवयुवक राष्ट्रवादी संगठन था। 'बंगाल विभाजन' के विरोध के साथ ब्रिटिश साम्राज्यवाद विरोधी भावनाएँ उस समय के जनजीवन में तेजी से प्रभावित हो रही थीं। लोकमान्य तिलक द्वारा दिया गया यह नारा कि "स्वराज्य हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है और इसे हम लेकर रहेंगे", जन-जन का नारा बन गया था। देश के पूरब से लेकर पश्चिम और उत्तर से लेकर दक्षिण तक स्वाधीनता और स्वराज की अभूतपूर्व लहर उठ खड़ी हुई थी।
रासबिहारी बोस से भेंट
शचीन्द्रनाथ सान्याल 1911 में पांडिचेरी में अरविन्द घोष से मिलने गये, किंतु उनसे मुलाक़ात नही हो पायी। अब उन्होंने सबसे पहले बंगाल के क्रान्तिकारियों के साथ सम्पर्क बनाने का प्रयास किया। सन 1912 में उन्होंने बंगाल की यात्रा की। वे ढाका के माखनसेन से मिले, पर उनसे मिलकर शचीन्द्रनाथ का मन संतुष्ट नही हुआ, क्योंकि वे धर्म के आधार पर राजनीतिक कार्य की बातें कर रहे थे। शचीन्द्रनाथ को यह बात पसंद नही आई। फिर 1913 में वे बंगाल की 'अनुशीलन समिति' के नेताओं से मिलने गये, उनमे शशांक मोहन, शिरीष और प्रतुल गांगुली प्रमुख थे। इन्हीं के जरिये शचीन्द्रनाथ का परिचय चन्द्रनगर में रह रहे प्रसिद्ध क्रांतिकारी रासबिहारी बोस से हुआ। शचीन्द्रनाथ सान्याल की असाधारण कर्म शक्ति, सरलता, तत्परता और तीव्रता को भांप कर ही रासबिहारी बोस ने उन्हें "लट्टू" का उपनाम दे दिया। शचीन्द्रनाथ में कूट-कूट कर भरी विद्रोह की भावनाओं के साथ अदम्य क्रियाशीलता के चलते ही उन्हें कई क्रांतिकारी साथी बारूद से भरा अनार भी कहते थे।
संगठन का विस्तार
आगे के क्रांतिकारी जीवन में शचीन्द्रनाथ सान्याल, रासबिहारी बोस के अनन्य सहयोगी के रूप में आगे बढ़े। नवम्बर, 1914 में ये दोनों ही एक बम परीक्षण के दौरान घायल हो गये। ठीक होने के बाद पुन: अपने कार्य में जुट गये। अब दोनों ने मिलकर संगठन का विस्तार राजस्थान तक किया। राजस्थान में पहले से ही एक राष्ट्रवादी संगठन काम कर रहा था। इसे खड़ा करने में प्रमुख भूमिका महान राष्ट्रवादी श्यामजी कृष्ण वर्मा की थी। कृष्ण वर्मा अब लंदन में रहकर प्रवासी राष्ट्रवादी नेतृत्त्व का कार्य सम्भाले हुए थे। राजस्थान के उस समय के क्रान्तिकारियो में अर्जुन लाल सेठी, बाल मुकुंद राव, गोपाल सिंह, केसरी सिंह बारहठ, जोरावर सिंह बारहठ, प्रताप सिंह, छोटे लाल तथा मोतीचन्द्र आदि प्रमुख थे। शचीन्द्रनाथ ने इन्हें साथ लेकर राजस्थान में संगठन के विस्तार के साथ-साथ दिल्ली में भी संगठन के विस्तार का कार्य किया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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