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कृष्ण वीर बर्बरीक के महान बलिदान से काफ़ी प्रसन्न हुये और वरदान दिया कि कलियुग में तुम श्याम नाम से जाने जाओगे, क्योंकि कलियुग में हारे हुये का साथ देने वाला ही श्याम नाम

धारण करने में समर्थ है। खाटूनगर तुम्हारा धाम बनेगा। उनका शीश खाटू में दफ़नाया गया। एक बार एक गाय उस स्थान पर आकर अपने स्तनों से दुग्ध की धारा स्वतः ही बहा रही थी, बाद

में खुदायी के बाद वह शीश प्रकट हुआ, जिसे कुछ दिनों के लिये एक ब्राह्मण को सुपुर्द कर दिया गया। एक बार खाटू के राजा को स्वप्न में मन्दिर निर्माण के लिये और वह शीश मन्दिर में

सुशोभित करने के लिये प्रेरित किया गया। तदन्तर उस स्थान पर मन्दिर का निर्माण किया गया और कार्तिक माह की एकादशी को शीश मन्दिर में सुशोभित किया गया, जिसे बाबा श्याम के

जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। खाटू श्याम जी का मुख्य मंदिर राजस्थान के सीकर ज़िले के गांव खाटू में बना हुआ है। खाटू विराजित हैं भगवान श्रीकृष्ण के कलयुगी अवतार खाटू श्यामजी।

इतिहास

श्याम मंदिर बहुत ही प्राचीन है, लेकिन वर्तमान मं‍दिर की आधारशिला सन 1720 में रखी गई थी। इतिहासकार पंडित झाबरमल्ल शर्मा के मुताबिक सन 1679 में औरंगजेब की सेना ने इस

मंदिर को नष्ट कर दिया था। मंदिर की रक्षा के लिए उस समय अनेक राजपूतों ने अपना प्राणोत्सर्ग किया था।

खाटू में भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक की पूजा श्याम के रूप में की जाती है। ऐसी मान्यता है कि महाभारत युद्ध के समय भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को वरदान दिया था कि

कलयुग में उसकी पूजा श्याम (कृष्ण स्वरूप) के नाम से होगी। खाटू में श्याम के मस्तक स्वरूप की पूजा होती है, जबकि निकट ही स्थित रींगस में धड़ स्वरूप की पूजा की जाती है।

हर साल फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष में यहाँ विशाल मेला भरता है, जिसमें देश-विदेश से भक्तगण पहुँचते हैं। हजारों लोग यहाँ पदयात्रा कर पहुँचते हैं, वहीं कई लोग दंडवत करते हुए खाटू नरेश

के दरबार में हाजिरी देते हैं। यहाँ के एक दुकानदार रामचंद्र चेजारा के मुताबिक नवमी से द्वादशी तक भरने वाले मेले में लाखों श्रद्धालु आते हैं। प्रत्येक एकादशी और रविवार को भी यहाँ

भक्तों की लंबी कतारें लगी होती हैं।

खाटू मंदिर में पाँच चरणों में आरती होती है- मंगला आरती प्रात: 5 बजे, धूप आरती प्रात: 7 बजे, भोग आरती दोपहर 12.15 बजे, संध्या आरती सायं 7.30 बजे और शयन आरती रात्रि 10

बजे होती है। गर्मियों के दिनों में हालाँकि इस समय थोड़ा बदलाव रहता है। कार्तिक शुक्ल एकादशी को श्यामजी के जन्मोत्सव के अवसर पर मंदिर के द्वार 24 घंटे खुले रहते हैं।

श्री श्यामबाबा की आरती

ॐ जय श्री श्याम हरे , बाबा जय श्री श्याम हरे | खाटू धाम विराजत, अनुपम रुप धरे ॥ ॐ जय श्री श्याम हरे.... रत्न जड़ित सिंहासन, सिर पर चंवर ढुले| तन केशरिया बागों, कुण्डल श्रवण पडे ॥ ॐ जय श्री श्याम हरे.... गल पुष्पों की माला, सिर पर मुकुट धरे| खेवत धूप अग्नि पर, दिपक ज्योती जले॥ ॐ जय श्री श्याम हरे.... मोदक खीर चुरमा, सुवरण थाल भरें | सेवक भोग लगावत, सेवा नित्य करें ॥ ॐ जय श्री श्याम हरे.... झांझ कटोरा और घसियावल, शंख मृंदग धरे| भक्त आरती गावे, जय जयकार करें ॥ ॐ जय श्री श्याम हरे.... जो ध्यावे फल पावे, सब दुःख से उबरे | सेवक जन निज मुख से, श्री श्याम श्याम उचरें ॥ ॐ जय श्री श्याम हरे.... श्रीश्याम बिहारीजी की आरती जो कोई नर गावे| कहत मनोहर स्वामी मनवांछित फल पावें ॥ ॐ जय श्री श्याम हरे.... ॐ जय श्री श्याम हरे , बाबा जय श्री श्याम हरे | निज भक्तों के तुम ने पूर्ण काज करें ॥ ॐ जय श्री श्याम हरे.... ॐ जय श्री श्याम हरे , बाबा जय श्री श्याम हरे | खाटू धाम विराजत , अनुपम रुप धरे ॥ ॐ जय श्री श्याम हरे...

पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में खाटू श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं द्वारा भजन-कीर्तन कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं और अपने नाम के अनुरूप ये कलयुग के अवतारी खाटू श्याम

जी अपने समस्त भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते है |

जो भी व्यक्ति राजस्थान के सीकर जिले में रींगस से १७ किलोमीटर की दुरी पर स्तिथ खाटू श्याम जी में जाता है उसके जीवन के समस्त पाप समाप्त हो जाते हैं और प्रभु के दर्शन मात्र से

उसके जीवन में खुशियाँ एवं सुख शान्ति का भंडार भरना प्रारम्भ हो जाता है| यह पावन धाम भारत की राजधानी दिल्ली से लगभग ३०० किलोमीटर व राजस्थान की राजधानी जयपुर से

लगभग ८० किलोमीटर की दूरी पर स्तिथ हैं| खाटू श्याम जी की पौराणिक प्रचलित पावानकथा संक्षिप्त में इस प्रकार हैं – महाभारत काल में पांडवरतन महाबली भीम व भीम के पुत्र वीर घटोत्कच से सभी लोग परिचित हैं| वीर घटोत्कच के शास्त्रार्थ की प्रतियोगिता जीतने पर, इनका विवाह मणीपुर दैत्य के

राजा मूर की पुत्री मौरवी से हुआ | मौरवी को कामकंटका व अहिल्यावती नामों से भी जाना जाता है | वीर घटोत्कच व मौरवी को एक पुत्ररतन की प्राप्ति हुई जिसके बाल बब्बर शेर की तरह

होने के कारण इनका नाम बर्बरीक रखा गया | ये वही वीर बर्बरीक हैं जिन्हें आज हम खाटू के श्याम, कलयुग के आवतार, श्याम सरकार, तीन बाणधारी, शीश के दानी, खाटू नरेश व अन्य

अनगिनत नामों से जानते व मानते हैं | बालक वीर बर्बरीक के जन्म के पश्चात् घटोत्कच इन्हें भगवन श्री कृष्ण के पास लेकर गए और भगवन श्री कृष्ण ने वीर बर्बरीक के पूछने पर, जीवन का सर्वोत्तम उपयोग, परोपकार व निर्बल

का साथी बनना बताया | वीर बर्बरीक ने वापस आकर समस्त अस्त्र-शस्त्र विद्या ज्ञान हासिल कर विजय नामक ब्राह्मण का शिष्य बनकर, उनके यज्ञ को राक्षसों से बचाकर, उनका यज्ञ संपूर्ण

कराया | विजय नाम के उस ब्राह्मण का यज्ञ संपूर्ण करवाने पर माँ भगवती व भगवन शिव शंकर बर्बरीक से अति प्रसन्न हुए व उनके सम्मुख प्रकट होकर तीन बाण प्रदान किए जिससे तीनो

लोको में विजय प्राप्त की जा सकती थी | महाभारत का युद्ध प्रारम्भ होने पर वीर बर्बरीक ने अपनी माता के सन्मुख युद्ध में भाग लेने की इच्छा प्रकट की और तब इनकी माता ने इन्हे युद्ध में भाग लेने की आज्ञा इस वचन के साथ दी

की तुम युद्ध में हरने वाले पक्ष का साथ निभाओगे | जब बर्बरीक युद्ध में भाग लेने चले तब भगवन श्री कृष्ण ने राह में इनसे शीश दान में मांग लिया क्योकि अगर बर्बरीक युद्ध में भाग लेते तो

कौरवों की समाप्ति केवल १८ दिनों में महाभारत युद्ध में नही हो सकती थी व युद्ध निरंतर चलता रहता | वीर बर्बरीक ने भगवान श्री कृष्ण के कहने पर जन-कल्याण, परोपकार व धर्म की रक्षा के लिए आपने शीश का दान उनको सहर्ष दे दिया व कलयुग में भगवान श्री कृष्ण के अति प्रिय नाम श्री

श्याम नाम से पूजित होने का वरदान प्राप्त किया | बर्बरीक की युद्ध देखने की इच्छा भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक के शीश को ऊंचे पर्वत पर रखकर पूर्ण की | युद्ध समाप्ति पर सभी पांडवो के

पूछने पर बर्बरीक के शीश ने उत्तर दिया की यह युद्ध केवल भगवान श्री कृष्ण की निति के कारण जीता गया और इस युद्ध में केवल भगवान श्री कृष्ण का सुदर्शन चक्र चलता था व द्रौपदी चंडी

का रूप धरकर दुष्टों का लहू पी रही थी | भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक के शीश को अमृत से सींचा व कलयुग का अवतारी बनने का आशीर्वाद प्रदान किया | आज यह सच हम अपनी आखों से देख रहे हैं की उस युग के बर्बरीक आज के युग के श्याम हैं और कलयुग के समस्त प्राणी श्याम जी के दर्शन मात्र से सुखी हो जाते हैं उनके जीवन में खुशिओं

और सम्पदाओ की बहार आने लगती है और खाटू श्याम जी को निरंतर भजने से प्राणी सब प्रकार के सुख पाता है और अंत में मोक्ष को प्राप्त हो जाता है










दर्शनीय स्थल : श्याम भक्तों के लिए खाटू धाम में श्याम बाग और श्याम कुंड प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। श्याम बाग में प्राकृतिक वातावरण की अनुभूति होती है। यहाँ परम भक्त आलूसिंह की

समाधि भी बनाई गई है। श्याम कुंड के बारे में मान्यता है कि यहाँ स्नान करने से श्रद्धालुओं के पाप धुल जाते हैं। पुरुषों और महिलाओं के स्नान के लिए यहाँ पृथक-पृथक कुंड बनाए गए हैं।

कैसे पहुँचें : सड़क मार्ग : खाटू धाम से जयपुर, सीकर आदि प्रमुख स्थानों के लिए राजस्थान राज्य परिवहन निगम की बसों के साथ ही टैक्सी और जीपें भी यहाँ आसानी से उपलब्ध हैं। रेलमार्ग : निकटतम रेलवे स्टेशन रींगस जंक्शन (15 किलोमीटर) है। वायुमार्ग : यहाँ से निकटतम हवाई अड्‍डा जयपुरClick here to see more news from this city है, जो कि यहाँ से करीब 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

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खाटू श्याम जी का नाम, आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विशव के भारतीय परिवारों में न केवल जाना-जाता है बल्कि अधिकाधिक परिवार खाटू श्याम जी के चमत्कारों को अपने

जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख चुके हैं| आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में खाटू श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं द्वारा भजन-कीर्तन कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं और अपने नाम के

अनुरूप ये कलयुग के अवतारी खाटू श्याम जी अपने समस्त भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते है | जो भी व्यक्ति राजस्थान के सीकर जिले में रींगस से १७ किलोमीटर की दुरी पर स्तिथ

खाटू श्याम जी में जाता है उसके जीवन के समस्त पाप समाप्त हो जाते हैं और प्रभु के दर्शन मात्र से उसके जीवन में खुशियाँ एवं सुख शान्ति का भंडार भरना प्रारम्भ हो जाता है| यह पावन

धाम भारत की राजधानी दिल्ली से लगभग ३०० किलोमीटर व राजस्थान की राजधानी जयपुर से लगभग ८० किलोमीटर की दूरी पर स्तिथ हैं| खाटू श्याम जी की पौराणिक प्रचलित

पावानकथा संक्षिप्त में इस प्रकार हैं – महाभारत काल में पांडवरतन महाबली भीम व भीम के पुत्र वीर घटोत्कच से सभी लोग परिचित हैं| वीर घटोत्कच के शास्त्रार्थ की प्रतियोगिता जीतने पर, इनका विवाह मणीपुर दैत्य के

राजा मूर की पुत्री मौरवी से हुआ | मौरवी को कामकंटका व अहिल्यावती नामों से भी जाना जाता है | वीर घटोत्कच व मौरवी को एक पुत्ररतन की प्राप्ति हुई जिसके बाल बब्बर शेर की तरह

होने के कारण इनका नाम बर्बरीक रखा गया | ये वही वीर बर्बरीक हैं जिन्हें आज हम खाटू के श्याम, कलयुग के आवतार, श्याम सरकार, तीन बाणधारी, शीश के दानी, खाटू नरेश व अन्य

अनगिनत नामों से जानते व मानते हैं | बालक वीर बर्बरीक के जन्म के पश्चात् घटोत्कच इन्हें भगवन श्री कृष्ण के पास लेकर गए और भगवन श्री कृष्ण ने वीर बर्बरीक के पूछने पर, जीवन का सर्वोत्तम उपयोग, परोपकार व निर्बल

का साथी बनना बताया | वीर बर्बरीक ने वापस आकर समस्त अस्त्र-शस्त्र विद्या ज्ञान हासिल कर विजय नामक ब्राह्मण का शिष्य बनकर, उनके यज्ञ को राक्षसों से बचाकर, उनका यज्ञ संपूर्ण

कराया | विजय नाम के उस ब्राह्मण का यज्ञ संपूर्ण करवाने पर माँ भगवती व भगवन शिव शंकर बर्बरीक से अति प्रसन्न हुए व उनके सम्मुख प्रकट होकर तीन बाण प्रदान किए जिससे तीनो

लोको में विजय प्राप्त की जा सकती थी | महाभारत का युद्ध प्रारम्भ होने पर वीर बर्बरीक ने अपनी माता के सन्मुख युद्ध में भाग लेने की इच्छा प्रकट की और तब इनकी माता ने इन्हे युद्ध में भाग लेने की आज्ञा इस वचन के साथ दी

की तुम युद्ध में हरने वाले पक्ष का साथ निभाओगे | जब बर्बरीक युद्ध में भाग लेने चले तब भगवन श्री कृष्ण ने राह में इनसे शीश दान में मांग लिया क्योकि अगर बर्बरीक युद्ध में भाग लेते तो

कौरवों की समाप्ति केवल १८ दिनों में महाभारत युद्ध में नही हो सकती थी व युद्ध निरंतर चलता रहता | वीर बर्बरीक ने भगवान श्री कृष्ण के कहने पर जन-कल्याण, परोपकार व धर्म की रक्षा के लिए आपने शीश का दान उनको सहर्ष दे दिया व कलयुग में भगवान श्री कृष्ण के अति प्रिय नाम श्री

श्याम नाम से पूजित होने का वरदान प्राप्त किया | बर्बरीक की युद्ध देखने की इच्छा भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक के शीश को ऊंचे पर्वत पर रखकर पूर्ण की | युद्ध समाप्ति पर सभी पांडवो के

पूछने पर बर्बरीक के शीश ने उत्तर दिया की यह युद्ध केवल भगवान श्री कृष्ण की निति के कारण जीता गया और इस युद्ध में केवल भगवान श्री कृष्ण का सुदर्शन चक्र चलता था व द्रौपदी चंडी

का रूप धरकर दुष्टों का लहू पी रही थी | भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक के शीश को अमृत से सींचा व कलयुग का अवतारी बनने का आशीर्वाद प्रदान किया | आज यह सच हम अपनी आखों से देख रहे हैं की उस युग के बर्बरीक आज के युग के श्याम हैं और कलयुग के समस्त प्राणी श्याम जी के दर्शन मात्र से सुखी हो जाते हैं उनके जीवन में खुशिओं

और सम्पदाओ की बहार आने लगती है और खाटू श्याम जी को निरंतर भजने से प्राणी सब प्रकार के सुख पाता है और अंत में मोक्ष को प्राप्त हो जाता है | || बोलो श्याम प्रभु की जय ||

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बहादुरगढ। झज्जररोड स्थित खाटू श्याम मंदिर

इस अवसर पर राठी ने कहा कि भगवान श्री कृष्ण के एक आदेश पर अपना शीश देने वाले खाटूश्याम से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए।

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श्री खाटू श्याम मंदिर जयपुर से उत्तर दिशा में वाया रींगस होकर 80 किलोमीटर दूर पड़ता है। रींगस पश्चिमी रेलवे का जंक्शन है। श्री खाटू श्याम जी आने हेतु मुख्य रास्ता यही पड़ता है

दिल्ली, अहमदाबाद, जयपुर आदि से आने वाले यात्रियों को पहला पड़ाव रींगस ही होता है। रींगस से सभी भक्तजन खाटू-श्याम-धाम पैदल अथवा जीपों, बसों आदि द्वारा प्रस्थान करते हैं।

रींगस से केवल मात्र 17 किलोमीटर मात्र दूर है।   खाटू नगर की पौराणिक पृष्ठभूमि : खाटू की स्थापना राजा खट्टवांग ने की थी। खट्टवां ने ही बभ्रुवाहन ;बर्बरीकद्ध के देवरे में सिर की प्राण प्रतिष्ठा करवाई थी। इतिहासविद् एवं पत्रकारिता

के पुरोधा पंडित झाबरमल शर्मा भी उक्त अवधारणा के समर्थक रहे हैं। खाटू की स्थापना के विषय में अन्य मत भी प्रचलित है। कई विद्वान इसे महाभारत के पहले का मानते हैं तो कई इसे ईसा पूर्व का लेकिन कुल मिलाकर विद्वानों की एकमत राय है कि

बभु्रवाहन के देवरे में सिर की प्रतिमा की स्थापना महाभारत के पश्चात्‌ हुई। श्याम कुंड, गौरीशंकर मंदिर, सीताराम मंदिर सहित आस-पास अनेक दर्शनीय स्थल देखें जा सकते हैं।

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सीकर में खाटू श्याम जी का मंदिर सबसे अधिक प्रसिद्ध है।

खाटू श्यामजी- खाटू श्याम जी का यह गांव श्री खाटू श्यामजी मंदिर के लिए प्रसिद्व है। यह मंदिर सफेद संगमरमर का बना हुआ है। खाटू श्यामजी मंदिर में प्रत्येक वर्ष बहुत बड़े मेले का

आयोजन किया जाता है। हर साल इस मेले में काफी संख्या में भक्तगण आते हैं। यह मेला फागुन सुदी दशमी के आरंभ और द्वादशी के अंत में लगता है।

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कथा