रेशमा

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रेशमा (अंग्रेज़ी: Reshmac, जन्म: 1947 – मृत्यु: 3 नवम्बर 2013) सितारा-ए-इम्तियाज़ से सम्मानित पाकिस्तानी लोक गायिका थीं। वो भारत में भी काफ़ी लोकप्रिय थी। रेशमा प्रसिद्ध फ़िल्म निर्माता-निर्देशक सुभाष घई की फ़िल्म हीरो के ‘लंबी जुदाई’ वाले गाने से भारत में बहुत मशहूर हुई थीं। राजस्थान के बीकानेर में रेशमा का जन्म हुआ था। रेशमा का भारत से भी गहरा रिश्ता रहा है। बंटवारे के बाद रेशमा का परिवार कराची चला गया था। 12 साल की उम्र से ही रेशमा गायकी में मशहूर हो गईं। पाकिस्तान रेडियो पर रेशमा ने अपना पहला सूफ़ी गाना लाल मेरी... गाया। बाद में ये एक बड़ी सूफ़ी गायिका के रूप में जानी गईं।

जीवन परिचय

1947 में राजस्थान के बीकानेर में एक बंजारा परिवार में जन्मी रेशमा लोक गायकी के लिए मशहूर रहीं। भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद उनका परिवार कराची जाकर बस गया। रेशमा ने संगीत की कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली थी और वह दरगाह पर गाती थीं। ऐसे ही, शहबाज कलंदर की दरगाह पर 12 साल की नन्हीं रेशमा को गाते सुन कर एक टीवी एवं रेडियो प्रोड्यूसर ने पाकिस्तान के सरकारी रेडियो पर चर्चित गीत ‘लाल मेरी’ रेशमा से गवाने की व्यवस्था की। यह गीत बेहद लोकप्रिय हुआ और रेशमा पाकिस्तान के लोकप्रिय लोक गायकों में शामिल हो गईं। 1960 के दशक में रेशमा का जादू सिर चढ़कर बोल रहा था और उन्होंने पाकिस्तानी तथा भारतीय फिल्म उद्योग में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। पाकिस्तानी बैंड ‘लाल’ के प्रमुख गायक शहराम अजहर ने बताया, वह अपने आप में एक संस्थान थीं और उनकी जैसी गायिका के जाने का मतलब एक युग का अवसान है। उनका जाना संगीत जगत की बहुत बड़ी क्षति है। हाय ओ रब्बा नहीं लगदा दिल मेरा और अंखियां नू रहने दे अंखियों दे कोल कोल जैसे गीत रेशमा की रेशमी आवाज़ में सज कर मानो खुद पर इठलाते थे। उनकी आवाज़ में अलग ही तरह की कशिश थी जो उनको सबसे अलग पहचान देती थी।[1]

प्रसिद्ध गीत

रेशमा 12 साल की उम्र में एक बार शाहबाज कलंदर की दरगाह पर गाती हुई दिखीं। रेशमा पर टीवी और रेडियो के एक प्रोड्यूसर की नज़र पड़ी। उन्‍होंने पाकिस्‍तान रेडियो पर 'लाल मेरी' की रिकॉर्डिंग का इंतजाम किया। रेशमा की यह रिकॉर्डिंग जबरदस्‍त हिट रही। वह 1960 के दशक से ही पाकिस्तान की टीवी पर गाने लगी थीं। उनकी आवाज में 'दमा दम मस्त कलंदर', 'हाय ओ रब्बा नइयों लगदा दिल मेरा' और 'अंखियां नू रहण दे' जैसे गाने लोगों की जुबान पर चढ़ गए। राजकपूर ने तो फिल्म बॉबी में 'अंखियां नू रहण दे' की तर्ज का इस्तेमाल करते हुए लता मंगेशकर से 'अंखियों को रहने दे, अंखियों के आस-पास' गाना भी गवाया। 

आर्थिक परेशानियाँ

एक दौर ऐसा भी आया जब रेशमा आर्थिक परेशानियों में घिर गईं। तब पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति और संगीत प्रेमी परवेज मुशर्रफ ने उन्हें दस लाख रूपये दिए ताकि वह अपना ऋण चुका सकें। बाद में मुशर्रफ ने रेशमा के लिए प्रति माह 10,000 रूपये की सहायता भी निर्धारित कर दी। रेशमा को जब 6 अप्रैल 2013 को लाहौर के डॉक्टर्स हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था तो नजम सेठी की अगुवाई वाली तत्कालीन कार्यवाहक सरकार ने उनके चिकित्सकीय खर्च का भुगतान करने का फैसला किया था। रेशमा ने कहा था, मैं अमेरिका, कनाडा सहित कई देशों में गई। उसके बाद मैं भारत गई जहां लोगों ने मुझे काफी सम्मान दिया।[1]

सम्मान और पुरस्कार

पाकिस्तान के राष्ट्रपति ने उन्हें ‘सितारा ए इम्तियाज’ और ‘लीजेंड्स ऑफ पाकिस्तान’ सम्मान प्रदान किया था। उन्हें और भी कई राष्ट्रीय सम्मान मिले थे। भारत और पाकिस्तान के कलाकारों को जब 1980 के दशक में एक दूसरे के यहां अपनी प्रस्तुति देने की अनुमति मिली, रेशमा ने भारत में लाइव परफार्मेन्स दिया था। फिल्म निर्माता सुभाष घई ने उनकी आवाज़ को अपनी फिल्म ‘हीरो’ में इस्तेमाल किया था और वह गीत ‘लंबी जुदाई’ था जिसे आज भी श्रोता पसंद करते हैं। उन्हें तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिलने के लिए बुलाया गया था।[1]

निधन

रेशमा का 3 नवम्बर 2013 को लाहौर, पाकिस्तान में निधन हो गया। रेशमा को गले का कैंसर था और वह लंबे समय से लाहौर के एक अस्‍पताल में भर्ती थीं। रेशमा ने इसी अस्‍पताल में सुबह अंतिम सांस ली। अस्‍पताल सूत्रों के मुताबिक रेशमा करीब एक महीने से कोमा में थीं। बॉलीवुड की फिल्‍म 'हीरो' में उनका गाना 'लंबी जुदाई...' काफी मशहूर हुआ था। 'हीरो' फिल्‍म के निर्देशक सुभाष घई सहित तमाम हस्तियों ने रेशमा के निधन पर शोक जताया। सुभाष घई ने कहा, 'रेशमा जी आज भी हमारे दिल में हैं। मैं जब भी सूफी गानों के बारे में सोचता हूं तो रेशमा जी याद आ आती है।'


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 लंबी जुदाई पर चली गईं हरदिल अजीज फनकार रेशमा (हिन्दी) ज़ी न्यूज़। अभिगमन तिथि: 5 नवम्बर, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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