जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
जगन्नाथदास 'रत्नाकर' (जन्म- 1866, वाराणसी, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 22 जून, 1932) भारत के प्रसिद्ध कवियों में गिने जाते थे। इन्हें प्राचीन संस्कृति, मध्यकालीन हिन्दी काव्य, उर्दू, फ़ारसी, अंग्रेज़ी, हिन्दी, आयुर्वेद, संगीत, ज्योतिष तथा दर्शनशास्त्र की अच्छी जानकारी थी। इन्होंने प्रचुर साहित्य सेवा की थी।
जन्म
जगन्नाथदास 'रत्नाकर' का जन्म 1866 ई. में वाराणसी के शिवाला घाट मोहल्ले में एक समृद्ध वैश्य परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम पुरुषोत्तमदास था। इनके रहन-सहन में राजसी ठाठ-बाट था। इन्हें हुक्का, इत्र, पान, घुड़सवारी आदि का बहुत शौक था। वाराणसी से बी.ए. करने के पश्चात ये अयोध्या नरेश प्रताप सिंह के तथा उनके मरणोपरांत महारानी के निजी सचिव रहे थे।
काव्य रचना
छात्र जीवन में जगन्नाथदास 'रत्नाकर' ने ‘जकी’ उपनाम से काव्य रचना शुरू की। इनकी प्रमुख रचनाएँ थीं-
- ‘हिंडोला’ समालोचनादर्श
- साहित्य रत्नाकर
- घनाक्षरी नियम रत्नाकर
- श्रृंहार लहरी
- हरिश्चन्द्र
- गंगा विष्णु लहरी
- रत्नाष्टक गंगावतरण
- कल काशी
- उद्धवशतक
इनके अतिरिक्त 'हमीर हट', 'हित तरंगिणी', 'कविकुल कण्ठाभरण' नामक कृतियों का भी सम्पादन इन्होंने किया। 'बिहारी रत्नाकर’ नाम से मशहूर 'बिहारी सतसई' की टीका प्रमुख है। ‘साहित्य सुधा’ नामक पत्र का सम्पादन भी आपने किया था।
निधन
सन 1930, कलकत्ता में हुए 'अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य' के जगन्नाथजी अध्यक्ष नियुक्त हुए थे। ब्रजभाषा के कवियों में आधुनिक कवियों के तौर पर ये सर्वथा विशिष्ट हैं। 22 जून, 1932 को इनकी मृत्यु के पश्चात 'कविवर बिहारी' शीर्षक ग्रंथ की रचना का प्रकाशन इनके पौत्र रामकृण ने किया था। मरणोपरांत ‘सूरसागर’ सम्पादित ग्रंथ का प्रकाशन आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी के निरीक्षण में हुआ था।
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