महानता अहंकार रहित होती है, तुच्छता अहंकार की सीमा पर पहुँच जाती है। -तिरुवल्लुवर (तिरुक्कुरल, 969)
यह मनुष्य अन्तकाल में जिस-जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग करता है, वह उस-उस को ही प्राप्त होता हैं; क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित रहा है । - श्रीमद्भागवत गीता.... और पढ़ें
{{#customtitle:|ब्रज डिस्कवरी-ब्रज का इतिहास,संस्कृति,पुरातत्व,पर्यटन स्थल,समाज,कला,धर्म-संप्रदाय,पर्व और त्यौहार,विडियो,साहित्य,दर्शन,चित्र वीथिका आदि}}
चित्र:Geo-india-icon.jpg