रहिमन कोऊ का करै -रहीम
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‘रहिमन’ कोऊ का करै, ज्वारी,चोर,लबार।
जो पत-राखनहार है, माखन-चाखनहार॥2॥
- अर्थ
जिसकी लाज रखने वाले माखन के चाखनहार अर्थात रसास्वादन लेने वाले स्वयं श्रीकृष्ण हैं, उसका कौन क्या बिगाड़ सकता है? न तो कोई जुआरी उसे हरा सकता है, न कोई चोर उसकी किसी वस्तु को चुरा सकता है और न कोई लफंगा उसके साथ असभ्यता का व्यवहार कर सकता है।[1]
रहीम के दोहे |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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