अमरबेलि बिनु मूल की -रहीम

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अमरबेलि बिनु मूल की, प्रतिपालत है ताहि।
‘रहिमन’ ऐसे प्रभुहि तजि, खोजत फिरिए काहि॥2॥

अर्थ

अमरबेलि में जड़ नहीं होती, बिलकुल निर्मूल होती है वह; परन्तु प्रभु उसे भी पालते-पोसते रहते हैं। ऐसे प्रतिपालक प्रभु को छोड़कर और किसे खोजा जाय?


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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