भरतानुज लछिमन पुनि भेंटे
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भरतानुज लछिमन पुनि भेंटे
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | उत्तरकाण्ड |
उतरि कहेउ प्रभु पुष्पकहि तुम्ह कुबेर पहिं जाहु। |
- भावार्थ
फिर लक्ष्मणजी शत्रुघ्नजी से गले लगकर मिले और इस प्रकार विरह से उत्पन्न दुःसह दुःख का नाश किया। फिर भाई शत्रुघ्नजी सहित भरत जी ने सीता जी के चरणों में सिर नवाया और परम सुख प्राप्त किया॥1॥
भरतानुज लछिमन पुनि भेंटे |
दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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