वसन्त देसाई

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वसन्त देसाई
वसन्त देसाई
वसन्त देसाई
पूरा नाम वसन्त देसाई
जन्म 9 जून, 1912
जन्म भूमि कुदाल, गोवा
मृत्यु 22 दिसम्बर, 1975
मृत्यु स्थान मुम्बई, महाराष्ट्र
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र भारतीय सिनेमा
प्रसिद्धि संगीतकार
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी वर्ष 1943 में वी. शांताराम अपनी फ़िल्म "शकुंतला" के लिए संगीतकार की तलाश कर रहे थे। वी. शांताराम ने फ़िल्म के संगीत के लिए वसन्त देसाई को चुना। इस फ़िल्म ने सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित किए।

वसन्त देसाई (अंग्रेज़ी: Vasant Desai, जन्म- 9 जून, 1912, गोवा; मृत्यु- 22 दिसम्बर, 1975, मुम्बई) भारतीय सिनेमा जगत के प्रसिद्ध संगीतकार थे। संगीत लहरियों से फ़िल्मी दुनिया को सजाने, संवारने वाले महान संगीतकार वसन्त देसाई के संगीतबद्ध गीतों की रोशनी फ़िल्म जगत की सतरंगी दुनिया को हमेशा रोशन करती रही है। फ़िल्म 'दो आँखें बारह हाथ' का प्रसिद्ध गीत 'ऐ मालिक तेरे बंदे हम' वसन्त देसाई द्वारा ही संगीतबद्ध किया गया था। यह गीत आज भी श्रोताओं द्वारा पूरे मन से सुना जाता है। इस गीत को पंजाब सरकार ने सभी विद्यालयों में प्रात:कालीन प्रार्थना सभा में शामिल कर लिया था।

जन्म

वसन्त देसाई का जन्म 9 जून, सन 1912 को गोवा के कुदाल नामक स्थान पर हुआ था। उनको बचपन के दिनों से ही संगीत के प्रति रूचि थी। वर्ष 1929 में बसंत देसाई महाराष्ट्र से कोल्हापुर आ गए थे।[1]

फ़िल्मी शुरुआत

वर्ष 1930 में उन्हें 'प्रभात फ़िल्म्स' की मूक फ़िल्म "खूनी खंजर" में अभिनय करने का मौका मिला। 1932 में वसन्त को "अयोध्या का राजा" में संगीतकार गोविंद राव टेंडे के सहायक के तौर पर काम करने का मौका मिला। इन सबके साथ ही उन्होंने इस फ़िल्म में एक गाना "जय जय राजाधिराज" भी गाया। इस बीच वसन्त फ़िल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष करते रहे। वर्ष 1934 में प्रदर्शित फ़िल्म "अमृत मंथन" में गाया उनका यह गीत "बरसन लगी" श्रोताओं के बीच काफ़ी लोकप्रिय हुआ।

संगीतकार के रूप में प्रतिष्ठापना

इस बीच वसन्त को यह महसूस हुआ कि पार्श्वगायन के बजाए संगीतकार के रूप में उनका भविष्य ज्यादा सुरक्षित रहेगा। इसके बाद उन्होंने उस्ताद आलम ख़ान और उस्ताद इनायत ख़ान से संगीत की शिक्षा लेनी शुरू कर दी। लगभग चार वर्ष तक वसन्त मराठी नाटकों में भी संगीत देते रहे। वर्ष 1942 में प्रदर्शित फ़िल्म "शोभा" के जरिए बतौर संगीतकार वसन्त देसाई ने अपने सिने कॅरियर की शुरूआत की, लेकिन फ़िल्म की असफलता से वह बतौर संगीतकार अपनी पहचान नहीं बना सके। वर्ष 1943 में वी. शांताराम अपनी "शकुंतला" के लिए संगीतकार की तलाश कर रहे थे। वी. शांताराम ने फ़िल्म के संगीत के लिए वसन्त को चुना। इस फ़िल्म ने सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित किए। इसके बाद वसन्त संगीतकार के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए।[1]

गीत 'ऐ मालिक तेरे बंदे हम'

वर्ष 1957 में वसन्त देसाई के संगीत निर्देशन में "दो आंखे बारह हाथ" का गीत ऐ मालिक तेरे बंदे हम आज भी श्रोताओं के बीच काफ़ी लोकप्रिय है। इस गीत की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पंजाब सरकार ने इस गीत को सभी विद्यालयों में प्रात:कालीन प्रार्थना सभा में शामिल कर लिया। वर्ष 1964 में प्रदर्शित फ़िल्म "यादें" वसन्त देसाई के कॅरियर की अहम फ़िल्म साबित हुई। इस फ़िल्म में वसन्त को यह जिम्मेदारी दी गई थी कि फ़िल्म के पात्र के निजी जिंदगी के संस्मरणों को बैकग्रांउड स्कोर के माध्यम से पेश करना। वसन्त ने इस बात को एक चुनौती के रूप में लिया और सर्वश्रेष्ठ बैकग्राउंड संगीत देकर फ़िल्म को अमर बना दिया।

इसी तरह वर्ष 1974 में फ़िल्म निर्माता गुलज़ार बिना किसी गानों के फ़िल्म "अचानक" का निर्माण कर रहे थे और वसन्त देसाई से बैकग्राउंड म्यूजिक देने की पेशकश की और इस बार भी वसन्त कसौटी पर खरे उतरे और फ़िल्म के लिये श्रेष्ठ पार्श्व संगीत दिया। वसन्त ने हिन्दी फ़िल्मों के अलावा लगभग 20 मराठी फ़िल्मों के लिए भी संगीत दिया, जिसमें सभी फ़िल्में सुपरहिट साबित हुई।

मृत्यु

22 दिसंबर, 1975 को एच.एम.भी स्टूडियो से रिकॉर्डिग पूरी करने के बाद वसन्त देसाई अपने घर पहुंचे। जैसे ही उन्होंने अपने अपार्टमेंट की लिफ्ट में कदम रखा, किसी तकनीकी खराबी के कारण लिफ्ट उन पर गिर पड़ी और उन्हें कुचल डाला, जिससे उनकी मौत हो गई।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 बैकग्राउंड म्यूजिक के महारथी (हिंदी) (jantv.in)। । अभिगमन तिथि: 24 जनवरी, 2017।

बाहरी कड़ियाँ

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