सेठ गोविन्द दास
सेठ गोविन्द दास
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पूरा नाम | सेठ गोविंद दास |
जन्म | 16 अक्टूबर, 1896 |
मृत्यु | 18 जून, 1974 |
मृत्यु स्थान | मुम्बई, महाराष्ट्र |
अभिभावक | पिता- जीवन दास |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | स्वतंत्रता सेनानी और राजनीतिज्ञ |
पार्टी | कांग्रेस |
पद | 1923, केन्द्रीय सभा |
भाषा | हिंदी, अंग्रेजी |
जेल यात्रा | सेठ गोविंद दास ने महात्मा गांधी द्वारा संचालित सभी आन्दोलनों में भाग लिया तथा अनेक बार जेल गये। |
पुरस्कार-उपाधि | 1961, पद्म भूषण |
अन्य जानकारी | सेठ गोविंददास भारतीय संस्कृति के प्रबल अनुरागी तथा हिन्दी भाषा के प्रबल पक्षधर थे। हिन्दी के प्रश्न पर सेठ जी ने कांग्रेस की नीति से हटकर संसद में दृढ़ता से हिन्दी का पक्ष लिया। |
सेठ गोविंददास (अंग्रेज़ी: Seth Govind Das जन्म-16 अक्टूबर, 1896 मृत्यु- 18 जून, 1974, मुम्बई, महाराष्ट्र) भारत के स्वतंत्रता सेनानी, सांसद तथा हिन्दी के साहित्यकार थे। उन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन 1961 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। भारत की राजभाषा के रूप में हिन्दी के वे प्रबल समर्थक थे।[1]
परिचय
सेठ गोविन्द दास का जन्म 16 अक्टूबर, 1896 को सम्पन्न मारवाड़ी परिवार में हुआ था। इनके दादा गोकुल दास ने पारिवारिक व्यवसाय को उल्लेखनीय बुलन्दियों तक पहुंचाया। उनके पिता जीवन दास ने विलासी जीवन व्यतीत किया। गोविन्द दास ने घर पर ही शिक्षा ग्रहण की। उन्होंने बीस वर्ष की आयु में सार्वजनिक जीवन में प्रवेश किया। सन 1923 में वे केन्द्रीय सभा के लिए चुने गये। उन्होंने महात्मा गांधी द्वारा संचालित सभी आन्दोलनों में भाग लिया तथा अनेक बार जेल गये। सेठ गोविंद दास हिन्दी के अनन्य साधक, भारतीय संस्कृति में अटल विश्वास रखने वाले, कला-मर्मज्ञ एवं विपुल मात्रा में साहित्य-रचना करने वाले, हिन्दी के उत्कृष्ट नाट्यकार ही नहीं थे, अपितु सार्वजनिक जीवन में अत्यंत स्वच्छ, नीति-व्यवहार में सुलझे हुए, सेवाभावी राजनीतिज्ञ भी थे। अंग्रेजी भाषा, साहित्य और संस्कृति ही नहीं, स्केटिंग, नृत्य, घुड़सवारी का जादू भी इन पर चढ़ा।
राजनैतिक जीवन
गांधी जी के असहयोग आंदोलन का तरुण गोविंद दास पर गहरा प्रभाव पड़ा और वैभवशाली जीवन का परित्याग कर वे दीन-दुखियों के साथ सेवकों के दल में शामिल हो गए तथा दर-दर की ख़ाक छानी, जेल गए, जुर्माना भुगता और सरकार से बगावत के कारण पैतृक संपत्ति का उत्तराधिकार भी गंवाया।
रचनाएँ
राजनीतिज्ञ के अलावा, सेठ गोविन्द दास एक जाने-माने रचनाकार भी थे। उन्होंने हिन्दी में सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की। उनके नाटकों का कैनवास भारतीय पौराणिक कलाओं और इतिहास की सम्पूर्ण अवधि को आच्छादित करता है। सेठ जी पर देवकीनंदन खत्री के तिलस्मी उपन्यासों 'चन्द्रकांता संतति' की तर्ज पर उन्होंने 'चंपावती', 'कृष्णलता' और 'सोमलता' नामक उपन्यास लिखे, वह भी मात्र सोलह वर्ष की किशोरावस्था में।
शेक्सपीयर से प्रभावित
साहित्य में दूसरा प्रभाव सेठ जी पर शेक्सपीयर का पड़ा। शेक्सपीयर के 'रोमियो-जूलियट', 'एज़यू लाइक इट', 'पेटेव्कीज प्रिंस ऑफ टायर' और 'विंटर्स टेल' नामक प्रसिद्ध नाटकों के आधार पर सेठ जी ने 'सुरेन्द्र-सुंदरी', 'कृष्णकामिनी', 'होनहार' और 'व्यर्थ संदेह' नामक उपन्यासों की रचना की। इस तरह सेठ जी की साहित्य-रचना का प्रारंभ उपन्यास से हुआ। इसी समय उनकी रुचि कविता में बढ़ी। अपने उपन्यासों में तो जगह-जगह उन्होंने काव्य का प्रयोग किया ही, 'वाणासुर-पराभव' नामक काव्य की भी रचना की।
- नाटक
सन 1917 में सेठ जी का पहला नाटक 'विश्व प्रेम' छपा। उसका मंचन भी हुआ। प्रसिद्ध विदेशी नाटककार इब्सन से प्रेरणा लेकर आपने अपने लेखन में आमूल-चूल परिवर्तन कर डाला। उन्होंने नई तकनीक का प्रयोग करते हुए प्रतीक शैली में नाटक लिखे। 'विकास' उनका स्वप्न नाटक है। 'नवरस' उनका नाट्य-रुपक है। हिन्दी में मोनो ड्रामा पहले-पहल सेठ जी ने ही लिखे।
भारतीय संस्कृति के संवाहक
हिन्दी भाषा की हित-चिंता में तन-मन-धन से संलग्न सेठ गोविंद दास हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अत्यंत सफल सभापति सिद्ध हुए। हिन्दी के प्रश्न पर इन्होंने कांग्रेस की नीति से हटकर संसद में दृढ़ता से हिन्दी का पक्ष लिया। सेठ भारतीय संस्कृति के प्रबल अनुरागी तथा हिन्दी भाषा के प्रबल पक्षधर थे।
पुरस्कार
सेठ गोविन्द दास को साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन 1961 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
निधन
सेठ गोविंद दास का निधन 18 जून, 1974 को हुआ था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ राजस्थान के क्रांतिकारी (हिंदी) क्रान्ति1857। अभिगमन तिथि: 19 फ़रवरी, 2017।
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