अनुसूया बाई काले

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अनुसूया बाई काले
अनुसूया बाई काले
अनुसूया बाई काले
पूरा नाम अनुसूया बाई काले
जन्म 1896
जन्म भूमि बेलगाम
मृत्यु 1958
अभिभावक सदाशिव वी. भाटे
पति/पत्नी पी.बी. काले
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी 1942 के 'भारत छोड़ो आंदोलन' में अस्थी और चिमूर में पुलिस ने आदिवासियों पर बड़े अत्याचार किए थे जिसमें सात गोंडो को फाँसी की सजा हुई थी। अनुसूया बाई के प्रयत्न से ही वे फाँसी के फंदे पर झूलने से बच गए थे।

अनुसूया बाई काले (अंग्रेज़ी: Anusuya Bai Kale, जन्म: 1896, बेलगाम; मृत्यु: 1958) महाराष्ट्र की प्रमुख राष्ट्रीय कार्यकत्ता और महिला आंदोलन की प्रमुख नेत्री थीं। ये 1952 और 1957 तक लोकसभा की सदस्य रहीं। अनुसूया बाई काले ने 1952 में राष्ट्रमंडल सम्मेलन में भारत के प्रतिनिधि मंडल के सदस्य के रूप में कनाडा की यात्रा की थी।[1]

परिचय

अनुसूया बाई काले का जन्म 1896 ई. बेलगाम में हुआ था। उनके पिता सदाशिव वी. भाटे वकालत करते थे। अनुसूया की शिक्षा फ़र्ग्यूसन कॉलेज, पुणे और बड़ौदा में हुई। 1916 ई. में पी.बी. काले से विवाह हो जाने के कारण उनकी आगे की शिक्षा का क्रम टूट गया। फिर भी उन्होंने सार्वजनिक जीवन में बराबर भाग लिया।

राजनैतिक जीवन

अनुसूया बाई काले 1928 में 'सेंट्रल प्रोविन्सेज' की लेजिस्लेटिव कौंसिल की सदस्य मनोनीत हुईं। 1937 में वे मध्य प्रदेश और बरार विधान सभा की सदस्य निर्वाचित हुईं और उपसभापति बनाई गईं। 1952 और 1957 में अनुसूया बाई लोकसभा की सदस्य चुनी गईं। 1952 में राष्ट्रमंडल सम्मेलन में भारत के प्रतिनिधि मंडल के सदस्य के रूप में उन्होंने कनाडा की यात्रा की थी।

योगदान

महिलाओं की रक्षा के काम को समर्पित अनुसूया बाई काले ने बलात्कार के मामले में एक मुस्लिम को उसके धर्मावलंबी कांग्रेस के मंत्री द्वारा बचाने के मामले में बड़ा आंदोलन खड़ा कर दिया था। फलत: उस मंत्री को 1938 में मंत्रिमंडल से हटाना पड़ा। 1942 के 'भारत छोड़ो आंदोलन' में अस्थी और चिमूर में पुलिस ने आदिवासियों पर बड़े अमानुषिक अत्याचार किए थे जिनमें सात गोड़ों को फाँसी की सजा हुई थी। अनुसूया बाई के प्रयत्न से ही वे फाँसी के फंदे पर झूलने से बच गए।

निधन

अनुसूया बाई काले का 1958 में निधन हो गया।

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  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |लिंक:- [27]