विलियम वेडरबर्न
विलियम वेडरबर्न
| |
पूरा नाम | सर विलियम वेडरबर्न |
अन्य नाम | विलियम वेडरबर्न |
जन्म | 25 मार्च, 1838 |
जन्म भूमि | इडिनबर्ग, स्कॉटलैंड |
मृत्यु | 25 जनवरी, 1918 |
प्रसिद्धि | राजनितिज्ञ |
पार्टी | भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस, लिबरल पार्टी |
विशेष योगदान | राष्ट्रीय जनजागरण के प्रचार में विलियम वेडरबर्न का योगदान भारतीय सुधार आंदोलन के लिए किया गया जीवन भर का कार्य है। |
अन्य जानकारी | भारत में अपने जीवनकाल के दौरान विलियम वेडरबर्न ने भारत के ग्रामीणों की भुखमरी, गरीबी, कृषि ऋण और प्राचीन ग्रामीण पद्धति को पुनर्जीवित करने पर ध्यान दिया। अपने इन्हीं कामों के चलते वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संपर्क में आए। |
अद्यतन | 17:04, 4 जून 2017 (IST)
|
विलियम वेडरबर्न (अंग्रेज़ी: William Wedderburn, जन्म- 25 मार्च, 1838, इडिनबर्ग, स्कॉटलैंड; मृत्यु- 1918) राजनीतिज्ञ व न्याधीश थे। वह 1889 में बम्बई (वर्तमान मुम्बई) और पुन: 1910 में इलाहाबाद से भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के अध्यक्ष रहे। 1887 में वह बम्बई सरकार के मुख्य सचिव थे।
परिचय
सर विलियम वेडरबर्न का जन्म 25 मार्च 1838 को स्कॉटलैंड के इडिनबर्ग में हुआ। वह स्टॉकटिश सीमा के महान वेडरबर्न परिवार से ताल्लुक रखते थे। साल 1859 में उन्होंने भारतीय सिविल परीक्षा में हिस्सा लिया।[1]
न्यायिक कॅरियर
वर्ष 1860 में विलियम वेडरबर्न भारत आए और धारवाड़ में उन्होंने उप-जिलाधीश के रूप में काम करना शुरू किया। वर्ष 1874 में वह सिंध के ज्यूडिशियल कमिश्नर और फिर साधर कोर्ट के न्यायधीश बने। 1882 में वह पूना के ज़िला और फिर सेशन जज बने। साल 1887 में अपनी रिटारमेंट के वक्त वह बम्बई सरकार के मुख्य सचिव थे।[1]
राजनीतिक गतिविधियाँ
भारत में अपने जीवनकाल के दौरान उन्होंने (विलियम वेडरबर्न) भारत के ग्रामीणों की भुखमरी, गरीबी, कृषि ऋण और प्राचीन ग्रामीण पद्धति को पुनर्जीवित करने पर ध्यान दिया। अपने इन्हीं कामों के चलते वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संपर्क में आए। सेवानिवृत्ति के बाद वह पूरी तत्परता से इन कार्यों में लग गए। उन्होंने साल 1889 में बम्बई (अब मुम्बई)में हुए अधिवेशन की अध्यक्षता की, इसी बीच, 1879 में उनके भाई डेविड के निधन के बाद वह बैरोनेट पद के लिये चुने गए। 1893 में वह लिबरल पार्टी की ओर से संसद सदस्य चुने गए और उन्होंने भारतीयों की समस्याओं को ज़ोर-शोर से संसद में उठाया। उन्होंने भारतीय संसदीय कमेटी का गठन किया। 1893 से 1900 तक वह इसके अध्यक्ष रहे।
1895 में विलियम वेडरबर्न ने वेलबाई कमीशन में भारत का प्रतिनिधित्व किया। जून, 1901 में बनीं इंडियन फैमिन यूनियन की गतिविधियों में हिस्सा लेकर उन्होंने भुखमरी के कारणों की जांच की और उन्हें दूर करने के उपाय सुझाए। वर्ष 1904 में बम्बई में कांग्रेस के 20वें सत्र मे भाग लेने के लिए वह भारत आए और उन्होंने इसकी अध्यक्षता की। साल 1910 में 25वें सत्र के लिए उन्हें दोबारा आमंत्रित किया गया। अपनी मृत्यु तक वह कांग्रेस की ब्रिटिश कमेटी के सभापति रहे। एक उदारवादी होने के नाते सर विलियम वेडरबर्न स्वशासन में विश्वास करते थे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापकों के साथ उनका भी मानना था कि भारत का भविष्य ब्रिटिश कॉमनवेलेथ के साथ भागीदारी में ही है।
उन्होंने ब्रिटिश सरकार द्वारा 20 अगस्त, 1917 को घोषित की गई उस नीति का समर्थन किया, जिसमें ये उल्लेख किया गया था कि ब्रिटिश नीति का लक्ष्य भारत में एक प्रगतिशील स्वशासन की स्थापना करना है। अफसरशाही की निंदा करने पर, भारतीयों के लिए आवाज़ उठाने पर, और भारत में संसदीय सुधारों का समर्थन करने पर कुछ पुराने ब्रिटिश सदस्यों ने उन्हें एक निष्ठाहीन अधिकारी बताकर उनकी आलोचना भी की। राष्ट्रीय जनजागरण के प्रचार में विलियम वेडरबर्न का योगदान भारतीय सुधार आंदोलन के लिए किया गया जीवन भर का कार्य है। सर विलियम वेडरबर्न ने मोंटागू-चेम्सफोर्ड सुधारों को उनके द्वारा किया गया उत्कृष्ट कार्य बताया।[1]
निधन
सर विलियम वेडरबर्न का 25 जनवरी, 1918 को निधन हो गया।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 सर विलियम वेडरबर्न (English) inc.in/organization। अभिगमन तिथि: 04 मई, 2017।