बीरभूम ज़िला
वीरभूम
वीरभूम ज़िला, पश्चिमी पश्चिम बंगाल राज्य, पूर्वोत्तर भारत में स्थित है। वीरभूम ज़िला 4, 550 वर्ग किमी क्षेत्रफल में दो भिन्न क्षेत्रों से मिलकर बना है। वीरभूम ज़िले के पश्चिम में लहरदार, आमतौर पर बंजर उच्च भूमि है, जो छोटा नागपुर पठार के पूर्वी छोर का हिस्सा है तथा जिसकी ऊँचाई 900 मीटर तक है। ज़िले का मुख्यालय सिउरी में स्थित है।
वीरभूम ज़िला प्राकृतिक सुन्दरता को संजोए है। कहा जाता है कि वीरभूम वीर और भूमि से मिलकर बना है। और दूसरे मत के अनुसार यह भी माना जाता है कि पहले यहाँ पर वीर राजाओं का साम्राज्य था इसलिए इसका नाम वीरभूम रखा गया है।
यातायात और परिवहन
वीरभूम कोलकाता से केवल 136 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ से बसों और टैक्सियों द्वारा तथा कोलकाता से रेल मार्ग द्वारा शान्ति निकेतन पहुँचकर वहाँ से वीरभूम पहुँचा जा सकता हैं। कोलकाता के शाहिद मन्दिर से बसों द्वारा आसानी से पर्यटक तारापीठ भी पहुँच सकते हैं।
कृषि और खनिज
यहाँ पूर्व में चावल, दलहन, गेहूँ, मक्का और आम उगाई जाने वाली प्रमुख फ़सलें हैं।
उद्योग और व्यापार
वीरभूम ज़िले के पश्चिम में कोयला, चीनी मिट्टी और लौह अयस्क का खनन होता है। ज़िले के प्रमुख उद्योगों में सूती तथा रेशमी वस्त्रों की बुनाई, चावल तथा तेल मिल और धातु तथा मिट्टी के बर्तनों के निर्माण का व्यवसाय होता है।
जनसंख्या
वीरभूम ज़िले की कुल जनसंख्या (2001 की जनगणना के अनुसार) 30,12,546 है।
पर्यटन
वीरभूम ज़िला एक पर्यटन स्थल है। इसके पूर्व में घनी आबादी वाला गंगा के डेल्टा का जलोढ़ मैदान स्थित है।
नदियाँ और जंगल
यहाँ पर पर्यटक ख़ूबसूरत जंगलों की सैर करने के लिए आते हैं। और सर्पीले मोडों वाली नदियों को भी देखने के लिए आते हैं। अजय, मोर, बकरेश्वर, कोपाई, द्वारका, ब्राह्मणी, हिंगलो, चपला, बंसलोई और पगला यहाँ की प्रमुख नदियाँ है। मयूराक्षी नदी पर बनी एक परियोजना से लगभग 2,40,000 हेक्टेयर में सिंचाई होती है और 2,000 किलोवाट बिजली उत्पादन होता है।
शान्ति निकेतन
शान्ति निकेतन बहुत ख़ूबसूरत है। यह संस्कृति और ऐतिहासिक अवशेषों का अनूठा संगम है। यह पर्यटकों में अपनी ख़ूबसूरती के कारण बहुत लोकप्रिय है। शान्ति निकेतन की स्थापना धार्मिक क्रियाकलापों के लिए गुरुदेव महर्षि रबीन्द्रनाथ ठाकुर जी के द्वारा की गयी थी। इन्होंने प्रकृति के पवित्र वातावरण में बच्चों को पढ़ाने के लिए यहाँ पर ब्रह्मचर्य आश्रम की स्थापना भी की थी। यहाँ पर आश्रम के अलावा एक अन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय विश्व-भारती की स्थापना भी की गई थी। यह पूर्वी और पश्चिमी सभ्यता का बाद में एक बड़ा केंद्र बन गया था। रबीन्द्रनाथ ठाकुर ने इस आश्रम की ख़ूबसूरती को बढ़ाने के लिए वृक्षारोपण भी किया था। उनके द्वारा यहाँ पर अनेक उत्सवों का आयोजन भी किया था। इन उत्सवों को हर वर्ष मनाया जाता है इनमें सभी धर्मो से जुड़े लोग बड़े उत्साह के साथ भाग लेते हैं।
तारापीठ
तारापीठ रामपुरहट में स्थित है। इसमें स्थानीय लोगों की बहुत श्रद्धा है। कहते है कि यहाँ पर सती की आँख का तारा गिरा था। और दूसरे मत के अनुसार यह माना जाता है कि यहाँ पर महर्षि वसिष्ठ ने तार के रूप में देवी सती की पूजा की थी। यह एक बहुत ही ख़ूबसूरत जगह है। यहाँ स्थानीय निवासियों के अलावा पर्यटक भी बड़ी संख्या में इस पीठ के दर्शन करने के लिए आते हैं।
बकरेश्वर
बकरेश्वर स्थान शिव लिंग और गर्म पानी के झरनों के कारण पर्यटकों में बहुत ही लोकप्रिय है। यह सब झरने एक-दूसरे के पास ही स्थित है। और ये लगभग 200 मीटर जगह की दूरी पर एक-दूसरे झरने में मिल जाते हैं। यह कहा जाता है कि अनेक असाध्य रोग इन झरनों में स्नान करने से ठीक हो जाते हैं। यह अपनी प्राकृतिक ख़ूबसूरती के लिए भी बहुत प्रसिद्ध हैं।
जोयदेव-केंडुली
जोयदेव-केंडुली बहुत ही ख़ूबसूरत जगह है। यह संस्कृत के महान कवि जयदेव की मातृभूमि है। जयदेव जी का जन्म 12वीं शताब्दी में हुआ था। इन्होंने अपने जीवनकाल में गीत-गोविन्द जी की रचनाऐं की थी। यहाँ पर पौष माह में हर साल मेले का आयोजन किया जाता है। स्थानीय लोगों के अलावा पर्यटक भी बड़े उत्साह के साथ मेले में भाग लेते हैं।
पाथरचापुरी
मोहम्मद संत शाह महबूब जी के लिए पाथरचापुरी स्थान प्रसिद्ध माना जाता है। यहाँ पर उन्होंने अपने जीवनकाल के कई सुनहरे वर्ष व्यतीत किए थे। इनको दाता-साहब के नाम से भी जाना जाता है। कहते है कि उन्हें दैविक शक्तियाँ प्राप्त थीं। जिनकी सहायता से वह असाध्य रोगों का इलाज किया करते थे। उनको श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए यहाँ हर साल एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले में भाग लेने के लिए हर साल लाखों तीर्थयात्री आते हैं।
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