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अनुपम मिश्र (अंग्रेज़ी: Anupam Mishra, जन्म: 1948, महाराष्ट्र; मृत्यु: 19 दिसम्बर, 2016, नई दिल्ली) जाने माने लेखक, संपादक, छायाकार और गाँधीवादी पर्यावरणविद् थे।

परिचय

अनुपम मिश्र का जन्म महाराष्ट्र के वर्धा में सरला मिश्र और प्रसिद्ध हिन्दी कवि भवानी प्रसाद मिश्र के यहाँ सन् 1948 में हुआ। मिश्र के परिवार में उनकी पत्नी, एक बेटा, बड़े भाई और दो बहनें हैं।1969 में कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद वो दिल्ली स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान से जुड़ गए थे। मिश्र पर्यावरण और जल संरक्षण के पारंपरिक तरीकों को बचाने पर जोर देते थे। मिश्र गांधी शांति प्रतिष्ठान के ट्रस्टी एवं राष्ट्रीय गांधी स्मारक निधि के उपाध्यक्ष थे। अनुपम मिश्र का अपना कोई घर नहीं था। वह गांधी शांति फाउंडेशन के परिसर में ही रहते थे। 2001 में उन्होंने टेड टेक्नोलॉजी एंटरटेनमेंट एंड डिजाइन द्वारा आयोजित एक सम्मेलन को संबोधित किया था। इस ज़माने में भी बग़ैर मोबाइल, बग़ैर टीवी, बग़ैर वाहन के अनुपम रहते थे। वे सिर्फ दो जोड़ी कुर्ते-पायजामे और झोले वाले इंसानों में से एक माने जाते हैं। सरल, सपाट टायर से बनी चप्पल पहनने वाले अनुपम एक दम शांत स्वभाव के थे। गांधी मार्ग के पथिक और गांधी मार्ग के सम्पादक भी थे।

कार्यक्षेत्र

अनुपम मिश्र जाने माने गांधीवादी पर्यावरणविद् हैं। पर्यावरण के लिए वह तब से काम कर रहे हैं, जब देश में पर्यावरण का कोई विभाग नहीं खुला था। बगैर बजट के मिश्र ने देश और दुनिया के पर्यावरण की जिस बारीकी से खोज-खबर ली है, वह करोड़ों रुपए बजट वाले विभागों और परियोजनाओं के लिए संभव नहीं हो पाया है। गांधी शांति प्रतिष्ठान में उन्होंने पर्यावरण कक्ष की स्थापना की। वे इस प्रतिष्ठान की पत्रिका गाँधी मार्ग के संस्थापक और संपादक भी है। उन्होंने बाढ़ के पानी के प्रबंधन और तालाबों द्वारा उसके संरक्षण की युक्ति के विकास का महत्वपूर्ण काम किया है। वे 2001 में दिल्ली में स्थापित सेंटर फार एनवायरमेंट एंड फूड सिक्योरिटी के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं। चंडी प्रसाद भट्ट के साथ काम करते हुए उन्होंने उत्तराखंड के चिपको आंदोलन में जंगलों को बचाने के लिये सहयोग किया था। उनकी पुस्तक आज भी खारे हैं तालाब ब्रेल सहित 13 भाषाओं में प्रकाशित हुई जिसकी 1 लाख से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी हैं।

जल संरक्षण के लिए लड़ी लड़ाई

मिश्र ने अपना पूरा जीवन जल संरक्षण की लड़ाई मे लगा दिया था।वो अंतिम समय तक इसके लिए लड़ते रहे। उन्होंने समाज को कुदरत की कीमत समझाने के लिए देश भर के गांवों का दौरा किया और रेन वाटर हारवेस्टिंग के गुर सिखाए। ऐसा माना जाता हैं की जब देश में पर्यावरण रक्षा का कोई विभाग नहीं खुला था। उन्हीं के अथक प्रयास के कारण ही सूखाग्रस्त अलवर में जल संरक्षण का काम शुरू हुआ था। उन्होंने उत्तराखण्ड और राजस्थान के लापोड़िया में परंपरागत जल स्रोतों के पुनर्जीवन की दिशा में काफी काम किया था। चंडी प्रसाद भट्ट के साथ काम करते हुए उन्होंने उत्तराखंड के चिपको आंदोलन में जंगलों को बचाने के लिये सहयोग किया था। वह जल-संरक्षक राजेन्द्र सिंह की संस्था तरुण भारत संघ के लंबे समय तक अध्यक्ष भी रहे थे।

लेखक

‘’तालाब राजस्थान की रजत बूंदें’’ जैसी अनुपम मिश्र द्वारा लिखी किताबें जल संरक्षण की दुनिया में मील के पत्थर की तरह हैं। उनकी किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’ की 13 भाषाओं में भी अनुवाद हो चुका है। वो गांधी शांति प्रतिष्ठान से निकलने वाली द्विमासिक पत्रिका गांधी मार्ग का संपादन करते थे। उनके द्वारा लिखी गई एक अन्य किताब ‘’हमारा पर्यावरण ‘’ भारत में पर्यावरण के ऊपर लिखी गई एकमात्र किताब है। वह जयप्रकाश नारायण के भी करीबी मित्र थे। गांधी शांति प्रतिष्ठान में उन्होंने अलग से एक श्पर्यावरण कक्ष की भी स्थापना की।[1]

पुरस्कार

वे राजेन्द्र सिंह के बनाये तरूण भारत संघ के लंबे समय तक अध्यक्ष रहे, 2007-2008 में उन्हें मध्यप्रदेश सरकार के चंद्रशेखर आज़ाद राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्होंने 2009 में टेड (टेक्नोलॉजी एंटरटेनमेंट एंड डिजाइन) द्वारा आयोजित सम्मेलन को संबोधित किया। 2011 में उन्हें देश के प्रतिष्ठित जमनालाल बजाज पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1996 में उन्हें देश के सर्वोच्च 'इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार' से भी सम्मानित किया जा चुका है।

  1. अनुपम मिश्र (हिंदी) samwad24.com। अभिगमन तिथि: 1 अगस्त, 2017।