टिहरी गढ़वाल

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नरेन्द्रनगर स्थित राजा टिहरी गढ़वाल का क़िला

टिहरी गढ़वाल उत्तरांचल राज्य, उत्तर भारत में स्थित है। इस स्थान को पहले सिर्फ़ 'गढ़वाल' के नाम से जाना जाता था। यह स्थान पर्वतों के बीच स्थित है, जो अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। प्रति वर्ष बड़ी संख्या में पर्यटक यहाँ पर घूमने के लिए आते हैं। टिहरी गढ़वाल धार्मिक स्थल के रूप में भी काफ़ी प्रसिद्ध है। यह नगर भागीरथी नदी पर एक महत्त्वपूर्ण कृषि व्यापार केंद्र के रूप में भी जाना जाता है। आस-पास का लगभग 4,421 वर्ग कि.मी. क्षेत्र पूरी तरह से हिमालय शृंखला में आता है और दक्षिण में गंगा नदी से घिरा हुआ है।

विस्तार

टिहरी गढ़वाल में देहरादून, बदरीनाथ, श्रीनगर और पौड़ी आदि स्थान प्रमुख रूप से उल्लेखनीय हैं। इसकी लंबाई उत्तर में नीती दर्रे से दक्षिण में कोटद्वार तक 170 मील (लगभग 272 कि.मी.) और चौड़ाई रुद्रप्रयाग से समीया तक 70 मील (लगभग 112 कि.मी.) के लगभग है। क्षेत्रफल प्राय: 11900 वर्ग मील है।

पुराण उल्लेख

पुराणों तथा अन्य प्राचीन साहित्य में इस प्रदेश का नाम उत्तराखंड मिलता है। 'गढ़वाल' नया नाम है, जो परवर्ती काल में शायद यहाँ के बावन गढ़ों के कारण हुआ है। कहा जाता है कि आर्य सभ्यता के इस प्रदेश में प्रसार होने से पूर्व यहाँ खस, किरात, तंगण, किन्नर आदि जातियों का निवास था। ऊँचे पर्वतों से घिरे रहने के कारण यह प्रदेश सदा सुरक्षित रहा है और प्राचीन काल में यहाँ के शांत मनोरम वातावरण में अनेक ऋषियों ने अपने आश्रम बनाए थे।

महाभारत से सूचित होता है कि गढ़वाल पर पांडवों का राज्य था और महाभारत युद्ध के पश्चात् वे अपने अंतिम समय में बदरीनाथ के मार्ग से ही हिमालय पर गए थे। यहाँ के अनेक स्थानों की यात्रा अर्जुन तथा अन्य पांडवों ने की थी। बदरीनाथ में महर्षि व्यास का आश्रम भी था। पांडवों से संबंध के स्मारक के रूप में आज भी गढ़वाल के देवताओं में पांडव नामक नृत्य प्रचलित है।

बैद्ध धर्म का प्रसार

बौद्ध धर्म के उत्कर्षकाल में यहाँ अनेक विहार तथा मंदिर स्थापित हुए। उत्तरकाशी तथा बाधन के क्षेत्र में बैद्ध धर्म का सबसे अधिक प्रचार था और कुछ विद्वानों का मत है कि बदरीनाथ का वर्तमान मंदिर पहले बौद्ध मंदिर या विहार था, जिसे हिन्दू धर्म के पुनरुत्थान के समय आदि शंकराचार्य ने बदरीनारायण के मंदिर के रूप में परिवर्तित कर दिया। बाधन का वास्तविक नाम 'बोधायन' कहा जाता है। यह ऐतिहासिक तथ्य है कि जगदगुरु आदिशंकर ने बदरीनाथ में आकर हिन्दू धर्म के पुनर्जागरण का शंखनाद किया था। अनके स्मृतिस्थल यहाँ आज भी हैं।

विभिन्न जातियों का अधिकार

कालांतर में गढ़वाल की राजनीतिक दशा बिगड़ गई और खसों ने यहाँ छोटे–छोटे राजवाड़े क़ायम कर लिए। ये लोग परस्पर लड़ते-भिड़ते रहते थे। तिब्बत से भी इनके झगड़े चलते रहे। खसों के पश्चात् गढ़वाल में नाग जाति का प्रभुत्व हुआ। तत्पश्चात् मालवा के पंवार राजाओं ने उत्तरी गढ़वाल में अपना राज्य स्थापित कर लिया। पंवारों में सबसे प्रसिद्ध राजा अजयपाल था। इसके राज्य में हरिद्वार और कनखल भी शामिल थे। मुस्लिमों के भारत पर आक्रमण के समय जब देश में सर्वत्र अशांति तथा अराजकता छाई हुई थी, राजपूताना, पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र तथा अन्य स्थानों से भागकर बहुत से राजपूत सरदारों तथा अनेक ब्राह्मणों ने गढ़वाल में शरण ली। इसी कारण गढ़वाल के जनजीवन पर राजस्थान, गुजरात, पंजाब, महाराष्ट्र तथा अन्य प्रदेशों की विशिष्ट संस्कृतियों का प्रभाव देखने में आता है।

1800 ई. के लगभग गढ़वाल पर नेपाल के गोरखों ने अधिकार कर लिया और बारह वर्ष तक यहाँ राज्य किया। उनके कठोर तथा अत्याचारपूर्ण शासन की याद में अब तक गढ़वाली लोग उसे 'गोर्खाणी' नाम से पुकारते हैं। त्रस्त होकर गढ़वालियों ने अंग्रेज़ों की सहायता से गोरखों को गढ़वाल से निकाल दिया। नेपाल युद्ध (1814 ई.) के पश्चात् अंग्रेज़ों ने गढ़वाल के दो टुकड़े कर दिए। टिहरी, जहाँ गढ़वालियों की रियासत बसाई गई और गढ़वाल, जिसे अंग्रेज़ों ने ब्रिटिश भारत में मिला लिया।

कृषि और खनिज

यहाँ पैदा होने वाली विभिन्न फ़सलों में चावल, जौ, और तिलहन प्रमुख हैं।

संयुक्त प्रांत

भूतपूर्व टिहरी रियासत को 1947-1948 में संयुक्त प्रांत में शामिल कर लिया गया था, जो बाद में उत्तर प्रदेश कहलाया, लेकिन अब यह 1 नवंबर, 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग कर नवगठित उत्तरांचल राज्य का हिस्सा है।

जनसंख्या

सन 2001 की जनगणना के अनुसार टिहरी गढ़वाल नगर की कुल जनसंख्या 25,425; और टिहरी गढ़वाल ज़िले की कुल जनसंख्या 6,04,608 है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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