परिवर्त्तक

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
रिंकू बघेल (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:46, 3 जुलाई 2017 का अवतरण (रिंकू बघेल ने परिवर्त्तक कर पर पुनर्निर्देश छोड़े बिना उसे परिवर्त्तक पर स्थानांतरित किया)
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

परिवर्त्तक प्राचीन भारत की अर्थव्यवस्था में प्रचलित एक शब्द था, जिसका वर्णन कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में किया है।

  • कौटिल्य के अनुसार एक अनाज देकर उसके बदले दूसरा अनाज लेना परिवर्त्तक कहलाता है।
  • प्राचीन भारतीय अर्थव्यवस्था में निम्नांकित कर भी प्रचलित थे-
  1. सीता कर
  2. राष्ट्र कर
  3. सिंहनिका कर


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ


कौटिलीय अर्थशास्त्रम्‌ |लेखक: वाचस्पति गैरोला |प्रकाशक: चौखम्बा विधाभवन, चौक (बैंक ऑफ़ बड़ौदा भवन के पीछे , वाराणसी 221001, उत्तर प्रदेश |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 157 |

संबंधित लेख